पंजाब में भाजपा की बड़ी रणनीति, गैर जट्ट सिख पर खेला दांव , पार्टी को नए समीकरण की तलाश

Punjab BJP पंजाब भाजपा ने राज्‍य में अपनी सियासी जमीन मजबूत करने के लिए नई रणनीति तैयार की है। इसके तहत पार्टी ने राज्‍य में गैर जट्ट सिख नेता पर दांव खेला है। भाजपा ने इकबाल सिंह लालपुरा का संसदीय बोर्ड का सदस्‍य बनाकर पार्टी नए समीकरण तलाश रही है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Publish:Thu, 18 Aug 2022 06:19 PM (IST) Updated:Fri, 19 Aug 2022 08:35 AM (IST)
पंजाब में भाजपा की बड़ी रणनीति, गैर जट्ट सिख पर खेला दांव , पार्टी को नए समीकरण की तलाश
भाजपा ने पंजाब में इकबाल सिंह लालपुरा के बहाने बड़ा दांव खेला है। (जागरण)

चंडीगढ़, [इन्द्रप्रीत सिंह]। पंजाब में भाजपा ने अपनी सियासी जमीन को मजबूत करने के लिए नई रणनीति बनाई है। पार्टी ने गैर जट्ट सिख पर दांव खेला है और इसके जरिये नया समीकरण बनाना चाहती है दरअसल  पूर्व पुलिस अधिकारी और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन इकबाल सिंह लालपुरा को भारतीय जनता पार्टी ने संसदीय बोर्ड का सदस्य बनाकर सभी को हैरत में डाल दिया है।

इकबाल सिंह लालपुरा को भाजपा संसदीय बोर्ड का सदस्‍य बनाकर सबको हैरत में डाला

लालपुरा पार्टी से लंबे समय से जुड़े होने के बावजूद ऐसा चेहरा कभी नहीं रहे जिसे लोगों का नेता कहा जाता हो। तो फिर लालपुरा को ही यह दूसरा बड़ा मौका क्यों दिया गया है जबकि पार्टी ने उन्हें पहले से ही राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का चेयरमैन लगाया हुआ है।

भाजपा ने एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश की 

पार्टी से जुड़े सूत्रों की मानें तो भाजपा ने एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश की है। तीन कृषि कानूनों को लेकर जट्ट समुदाय ने जिस प्रकार से भाजपा और खासतौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपना आंदोलन चलाया उससे पार्टी यह भली भांति जानती है कि जट्ट समुदाय 2024 में भी पार्टी को कभी वोट नहीं करेगा।

शिरोमणि अकाली दल के साथ होने के चलते पार्टी को तब यह दिक्कत नहीं होती थी क्योंकि जट्ट सिख समुदाय अकाली दल को वोट दे देता था जो अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा को ही मिलता था। लेकिन, जब से शिरोमणि अकाली दल और भाजपा का गठबंधन टूटा है, भाजपा अपने स्तर पर पंजाब में पांव जमाने की कोशिश में लगी हुई है। शिरोमणि अकाली दल के साथ न होने के कारण पार्टी को एक बड़ा नुकसान यह भी हुआ है कि भाजपा सिख समुदाय में अपनी खुद की पैठ नहीं जमा पाई। पार्टी के पास अपने बड़े सिख चेहरे नहीं हैं।

किसान विंग के पूर्व प्रधान हरजीत ग्रेवाल , अल्प संख्यक आयोग के सदस्य रहे मनजीत सिंह राय,अमृतसर से राजिंदर मोहन सिंह छीना जैसे कुछ चेहरों को छोड़ दिया जाए तो ऐसे चेहरों की कमी है जिन्हें लीडर के रूप में उभारा जा सके। दूसरा, ये सारे चेहरे जट्ट सिख समुदाय से हैं जो भाजपा से दूर हो चुका है। ऐसे में पंजाब में दूसरे सबसे बड़े समुदाय के रूप में पिछड़े वर्ग के लोग हैं। इनकी पंजाब में अच्छी खासी गिनती है।

इकबाल सिंह लालपुरा पिछड़ा वर्ग से आते हैं। इसी वजह से उन पर पार्टी ने दांव लगाया है। पार्टी नेताओं का मानना है कि यदि पिछड़ा वर्ग (बीसी) और अनुसूचित जाति वर्ग एकजुट होकर भाजपा के साथ खड़ा हो जाता है तो वह 2024 में कड़ी टक्कर देने की स्थिति में आ सकती है।

पंजाब विधानसभा के चुनाव में जब भाजपा पहली बार अपने दम पर मैदान में उतरी थी तो 6.60 फीसदी वोट ले गई थी। इन चुनाव में आम आदमी पार्टी की लहर के कारण यह उन्हें अप्रत्याशित वोट मिलने के कारण भाजपा के प्रयासों को झटका जरूर लगा था लेकिन 2024 के संसदीय चुनाव के लिए जिस तरह से पार्टी ने पहले से ही तैयारी शुरू कर दी है और इकबाल सिंह लालपुर को संसदीय बोर्ड जैसे संगठन में अहम स्थान दिया है , उससे भाजपा के इरादे से साफ नजर आ रहे हैं।

इकबाल सिंह लालपुरा सिख मुद्दों पर एक दर्जन से ज्यादा किताबें लिख चुके हैं और अल्पसंख्यक आयोग का चेयरमैन बनने से पहले वह चार जिलों में एसएसपी और लंबा समय तक इंटेलिजेंस विभाग में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं।

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