संतान की लंबी उम्र और उनकी मंगल कामना के लिए रखा अहोई अष्टमी का व्रत

अहोई अष्टमी का त्योहार वीरवार को जिलेभर में श्रद्धापूर्वक मनाया गया। इस दौरान महिलाओं ने अपनी संतान की लंबी उम्र और उनकी मंगल कामना के लिए व्रत रखा।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 28 Oct 2021 11:09 PM (IST) Updated:Thu, 28 Oct 2021 11:09 PM (IST)
संतान की लंबी उम्र और उनकी मंगल कामना के लिए रखा अहोई अष्टमी का व्रत
संतान की लंबी उम्र और उनकी मंगल कामना के लिए रखा अहोई अष्टमी का व्रत

जासं, बठिडा : अहोई अष्टमी का त्योहार वीरवार को जिलेभर में श्रद्धापूर्वक मनाया गया। इस दौरान महिलाओं ने अपनी संतान की लंबी उम्र और उनकी मंगल कामना के लिए व्रत रखा। मंदिरों में पूजा अर्चना करने के बाद संतान के दीर्घायु व स्वस्थ रहने की कामना की। इससे पहले कथा का आयोजन किया गया। कार्तिक महीना में कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को अहोई पर्व मनाया जाता है। उत्तर व मध्य भारत में इस त्योहार का खूब प्रचलन है। पुत्रवती महिलाओं के लिए यह व्रत अत्यंत महत्वपूर्ण है। माताएं अहोई अष्टमी के व्रत में दिनभर उपवास रखती हैं। महिलाओं द्वारा विभिन्न मंदिरों व घरों में अहोई अष्टमी पर कथाएं सुनी गई। यह व्रत तारों और चंद्रमा के दर्शन के बाद ही अहोई अष्टमी का व्रत खोला गया। हिदू शास्त्रों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि अहोई अष्टमी का व्रत रखने से अहोई माता खुश होकर बच्चों की सलामती और मंगलमय जीवन का आशीर्वाद देती हैं। हर वर्ष अहोई अष्टमी का व्रत करवा चौथ के चार दिन बाद और दीपावली से आठ दिन पहले रखा जाता है। इस दिन मथुरा के राधा कुंड में लाखों श्रद्धालु स्नान करने के लिए पहुंचते हैं। अहोई का अर्थ अनहोनी को होनी बनाना होता है। इस दिन अहोई माता की पूजा की जाती है। अहोई अष्टमी का व्रत दिनभर निर्जल रखा गया। अहोई अष्टमी के दिन माता पार्वती की पूजा की जाती है। उत्तर भारत के विभिन्न अंचलों में अहोई माता का स्वरूप वहां की स्थानीय परंपरा के अनुसार बनता है। त्योहार व रीति-रिवाजों का न केवल धार्मिक महत्व है, बल्कि ये हमें एक-दूसरे से जोड़े रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। संतान के लिए व्रत रखना न केवल माता को अच्छा लगता है बल्कि उनकी दीर्घायु की भावना भी इससे जुड़ी है।

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