गुरु नानक देव जी के 500वें प्रकाश पर्व पर स्थापित की गई थी जीएनडीयू, आज दुनिया भर में है नाम

उत्तर भारत में कई शिक्षण संस्थान और विश्वविद्यालय हैं।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 25 Jun 2022 12:12 AM (IST) Updated:Sat, 25 Jun 2022 02:30 PM (IST)
गुरु नानक देव जी के 500वें प्रकाश पर्व पर स्थापित की गई थी जीएनडीयू, आज दुनिया भर में है नाम
गुरु नानक देव जी के 500वें प्रकाश पर्व पर स्थापित की गई थी जीएनडीयू, आज दुनिया भर में है नाम

हरीश शर्मा, अमृतसर: उत्तर भारत में कई शिक्षण संस्थान और विश्वविद्यालय हैं। इनमें अमृतसर शहर में स्थित गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी की अपनी अलग पहचान और एतिहासिक महत्व है। बहुत कम लोग जानते हैं कि इस विश्वविद्यालय को सिखों के प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव जी के 500वें प्रकाशोत्सव के मौके स्थापित करने का एलान किया गया था। उसी वर्ष इसका नींव पत्थर रखा गया था। इसी वजह से ही इसका नाम गुरु साहिब के नाम पर रखा गया है।

देश-विदेश में मुकाम हासिल कर चुकी गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी (जीएनडीयू) इस समय स्वच्छता में भी देश में पहले स्थान पर पहुंच चुकी है। इस यूनिवर्सिटी की स्थापना साल 1969 में की गई थी। पंजाब सरकार ने श्री गुरु नानक देव जी के 500वें प्रकाश पर्व के मौके वर्ष 1969 में गुरु साहिब के नाम पर यूनिवर्सिटी स्थापित करने का एलान किया था। 24 नवंबर 1969 को यूनिवर्सिटी का नींव पत्थर रखा गया था। तब पहले से यहां एक-दो इमारतें थीं जहां पर कक्षाएं शुरू की गईं। फिर यूनिवर्सिटी स्थापित करने का प्रोजेक्ट तैयार किया था। धीरे-धीरे विश्वविद्यालय के अलग-अलग विभागों की इमारतें तैयार करनी शुरू की गई। तब से लेकर अब तक जीएनडीयू लगातार बुलंदियां छू रही है और देश के विकास में भी अहम योगदान दे रही है। यहां पर कई अहम शोध चल रहे हैं। इनमें कैंसर की दवाइया, खेती में नए अवसर तलाशने, केले की खेती को बढ़ावा देने, सेब की खेती अमृतसर में ही करने, अश्वगंधा सहित कई ऐसे चीजों पर रिसर्च चल रही है जिनकी पैदावार अमृतसर में नहीं हो सकती। बावजूद इसके उन सभी को यहा के मौसम के मुताबिक किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए तैयार किया जा रहा है।

गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी की स्थापना के लिए सरकार ने 500 एकड़ भूमि दी थी। 1969 में कोट खालसा गाव होता था, तब उसी के पास यह यूनिवर्सिटी बनाने का काम शुरू हुआ था। अब तो यह शहर का ही हिस्सा बन चुका है और आसपास पूरी तरह आबादी बस चुकी है। जब यूनिवर्सिटी शुरू हुई थी तब कुछ ही विभाग यहां पर होते थे, मगर अब यहां पर 37 अकादमिक विभाग चल रहे हैं। इतना ही नहीं जीएनडीयू का अमेरिका, न्यूजीलैंड, कनाडा, इंग्लैंड सहित कई देशों की यूनिवर्सिटियों के साथ शिक्षा के क्षेत्र में करार हो चुके हैं। इस कारण जीएनडीयू के विद्यार्थी विदेश की यूनिवर्सिटियों में जाकर भी शोध कर सकते हैं। स्वच्छता में योगदान: राज्य की पहली जीरो डिस्चार्ज यूनिवर्सिटी

स्वच्छता में लगातार पहला स्थान हासिल करने वाली गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी राज्य की पहली जीरो डिस्चार्ज बन चुकी है। कैंपस में हर रोज सीवरेज का दो लाख लीटर पानी को ट्रीट करके लगभग डेढ़ सौ एकड़ जमीन की सिंचाई होती है। कैंपस में गीले सूखे कूड़े करकट को अलग करके हरेक महीने तीन क्विंटल जैविक खाद तैयार होती है, जिसे कैंपस के ही पेड़ पौधों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। जीएनडीयू प्रबंधन को वार्षिक सात लाख रुपये की बचत होती है, जोकि पेड़ पौधों के पालन पोषण के लिए इस्तेमाल की जाने वाली खाद पर खर्च होने से बचते हैं। यही नहीं सूखे कूड़े करकट को बेचने के बाद जीएनडीयू के खजाने में सवा करोड़ रुपये जमा होता है। जीएनडीयू को आर्थिक तौर पर मुनाफा दिलाने के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण और दो महिलाओं सहित सात नए लोगों को रोजगार मुहैया करवाने के लिए सालिड लिक्विड रिसोर्स मैनेजमेंट (एलएलआरएम) प्रोजेक्ट एक वरदान साबित हुआ है। कृषि में नए आयाम: अमृतसर जिले में शुरू होगी सेब की खेती

गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी के कृषि विभाग ने सेब की खेती शुरू कर दी है। जीनएडीयू परिसर में सेब का एक पूरा बाग तैयार किया गया है। इसके तहत अब अमृतसर के मौसम में भी सेब की खेती को संभव बनाया जा रहा है। जीएनडीयू के प्रो. प्रताप कुमार पत्ती की मानें तो साल 2023 के अंत तक अमृतसर जिले में सेब की खेती शुरू हो जाएगी। इससे छोटे किसान अपनी जमीन पर सेब के बाग लगाकर बड़ा मुनाफा कमा सकते हैं, क्योंकि मौजूदा समय में हिमाचल, जम्मू-कश्मीर से सेब की सप्लाई होती है। अब बहुत जल्द अमृतसर में भी सेब तैयार होगा। पर्यावरण संरक्षण में भूमिका: लुप्त पौधों की किस्मों को बचाने के लिए लगा रहे जंगल

गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी में पर्यावरण को लेकर बहुत गंभीरता दिखाई जाती है। इसका नतीजा है कि जीएनडीयू परिसर में एक जंगल तैयार किया जा रहा है। खास बात यह है कि इस जंगल में ऐसे पौधे लगाए जा रहे हैं जिनकी किस्में या तो लुप्त हो चुकी हैं या फिर लुप्त होने की कगार पर हैं। ऐसे में उन पौधों की संभाल करके कई किस्म की दवाइयों में उनका प्रयोग होगा। इसके अलावा समय-समय पर विश्वविद्यालय की ओर से सेमिनार लगाकर और जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को पर्यावरण संरक्षण में योगदान के लिए प्रेरित किया जाता है।

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