AP Legislative Assembly: राज्यों में कितनी जरूरी द्विसदनीय व्यवस्था, जानें पक्ष-विपक्ष के तर्क

Andhra Pradesh Legislative Assembly उच्च सदन के पक्ष में रहने वालों का तर्क है कि इसके अस्तित्व में आने से बेहतर बहस हो सकेगी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Fri, 24 Jan 2020 08:57 AM (IST) Updated:Fri, 24 Jan 2020 09:00 AM (IST)
AP Legislative Assembly: राज्यों में कितनी जरूरी द्विसदनीय व्यवस्था, जानें पक्ष-विपक्ष के तर्क
AP Legislative Assembly: राज्यों में कितनी जरूरी द्विसदनीय व्यवस्था, जानें पक्ष-विपक्ष के तर्क

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। आंध्रप्रदेश विधानसभा में सत्ताधारी वाइएसआर कांग्रेस ने तीन राजधानियां बनाने के प्रस्ताव को प्रचंड बहुमत (175 में से 151 सीटें) के चलते निम्न सदन से पारित तो करा लिया लेकिन इसे विधान परिषद (विधान मंडल का उच्च सदन) ने अस्थायी रूप से रोक दिया है। विधानसभा में जहां जगनमोहन रेड्डी सरकार बहुमत में हैं। वहीं विधान परिषद में मुख्य विपक्षी पार्टी तेलगुदेशम के पास 58 में से 28 सीटें हैं।

माना जा रहा है कि अब राज्य सरकार उच्च सदन को ही खत्म करने पर विचार कर रही है। दूसरी ओर, देश के चार बड़े राज्य ओडिशा, राजस्थान, असम और मध्यप्रदेश उच्च सदन स्थापित करने की कोशिशों में जुटे हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि राज्यों के लिए कितने सदन वाली व्यवस्था बेहतर है और इनकी मौजूदा दौर में कितनी प्रासंगिकता है।

यहां हैं उच्च सदन

संसद में लोकसभा और राज्यसभा की तरह ही संविधान ने राज्यों को द्विसदनीय व्यवस्था का अधिकार दिया है। यद्यपि छह राज्यों में ही उच्च सदन की व्यवस्था है। इनमें आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, कर्नाटक, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश शामिल हैं। विधान परिषद के सदस्यों की संख्या राज्य विधानसभा के सदस्यों की एक तिहाई से ज्यादा और चालीस से कम नहीं होनी चाहिए। राज्यसभा की तरह इसके सदस्य सीधे विधायकों या स्थायी निकायों द्वारा चुने जाते हैं अथवा राज्यपाल द्वारा मनोनीत किए जाते हैं।

पक्ष-विपक्ष के तर्क

उच्च सदन के पक्ष में रहने वालों का तर्क है कि इसके अस्तित्व में आने से बेहतर बहस हो सकेगी और बहुमत की सरकारों के जल्दबाजी में लिए निर्णयों को जांचा जा सकेगा। इसके साथ ही उनका कहना है कि यह व्यवस्था मनोनीत पेशेवरों को विधान प्रकिया से जुड़ने की आज्ञा देती है। यद्यपि जो लोग दूसरे सदन के विरोध में हैं वो अक्सर तर्क देते हैं कि इससे कानून बनने में देरी होती है। इस सदन को राजनीतिक व्यक्तियों से भरा जाता है जो चुनाव नहीं जीत सकते हैं। साथ ही यह सरकारी कोष की बर्बादी है।

संसद के पास अधिकार

संसद के पास राज्य में विधान परिषद की स्थापना और समाप्त करने का अधिकार होता है। संविधान के अनुच्छेद 169 के तहत राज्य विधानसभा दो तिहाई बहुमत से संकल्प पारित कर केंद्र को भेजती है। आंध्रप्रदेश में 1958 से उच्च सदन है, इसे 1985 में समाप्त कर दिया गया था। हालांकि इसे एक बार फिर 2007 में पुनर्गठित किया गया। राजस्थान और असम के विधान परिषद गठन के प्रस्ताव संसद में अटके हुए हैं।

स्थायी सदन है विधान परिषद

राज्यसभा की तरह ही विधान परिषद स्थायी सदन है। इसके सदस्यों में से एक तिहाई हर दो साल की अवधि में कार्यमुक्त हो जाते हैं। यद्यपि विधानसभाओं को इनके सुझावों को न मानने का अधिकार होता है।

करोड़ों का बजट

ओडिशा ने प्रस्तावित उच्च सदन के लिए वार्षिक करीब 35 करोड़ रुपये का बजट रखा है। इसके साथ ही राजस्थान सरकार ने एकमुश्त 100 करोड़ रुपये और असम ने 19 करोड़ रुपये वार्षिक के साथ ही 69 करोड़ का खर्चा बताया है।

आंध्रप्रदेश की तीन राजधानियां

आंध्रप्रदेश विधानसभा ने तीन राजधानियां बनाने का प्रस्ताव किया है। दक्षिण अफ्रीका की तर्ज पर विशाखापत्तनम को कार्यकारी, अमरावती को विधायी और कुर्नूल को न्यायिक राजधानी बनाने का प्रस्ताव है। वहीं दक्षिण अफ्रीका में प्रीटोरिया कार्यकारी, केपटाउन विधायी और ब्लोमफोंटेन न्यायिक राजधानी है। वाइएसआर कांग्रेस का कहना है कि सिर्फ एक बड़ी राजधानी बनाने का अर्थ दूसरे हिस्सों को नजरअंदाज करना है।

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