त्वरित टिप्पणी: जब हमलावर ने ही खुद सबूत दे दिया, तो इमरान किस मुंह से सबूत मांगते हैं

अगर भारत की बात करें तो देश के अंदर गुस्सा उबाल पर है। वह पड़ोसी की घिनौनी हरकत को सहने के लिए अब और तैयार नहीं है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Tue, 19 Feb 2019 09:26 PM (IST) Updated:Wed, 20 Feb 2019 01:11 AM (IST)
त्वरित टिप्पणी: जब हमलावर ने ही खुद सबूत दे दिया, तो इमरान किस मुंह से सबूत मांगते हैं
त्वरित टिप्पणी: जब हमलावर ने ही खुद सबूत दे दिया, तो इमरान किस मुंह से सबूत मांगते हैं

प्रशांत मिश्र। अल्ला का नाम लेकर आइएसआइ और आतंकी की भाषा पाकिस्तान के पीएम इमरान खान की जुबां पर पूरी तरह चढ़ गई है। उन्हें हकीकत का अहसास है, पता है कि पाकिस्तान छलावा का जो खेल खेलता रहा है उस पर कोई विश्वास करने को तैयार नहीं है। विश्व में कोई भी देश खुलकर उसके साथ खड़ा होने को तैयार नहीं है। यही कारण है कि भारत का डर उन्हें सता रहा है, घबराए भी हैं, लेकिन अभी भी सबूत मांग रहे हैं।

जब खुद पाकिस्तान के सुरक्षा घेरे में बैठा जैश मुखिया मसूद अजहर ने दावा किया कि भारत में उसने हमारे जवानों को मारा है तो और सबूत क्या चाहिए। अब पाकिस्तान के बारे में हर कोई जानता है कि वह ओसामा बिन लादेन को एबोटाबाद में छिपाए रखा और दुनिया से कहता रहा कि उसे आतंक से नफरत है।

हास्यास्पद तो यह है कि वह गुनहगारों को सजा देने की गारंटी दे रहे हैैं, जबकि इसकी गारंटी नहीं है कि उन्हें वहां की सेना और आइएसआइ कब तक प्रधानमंत्री मानते हैं। देश के पास सेना होती है, लेकिन पाकिस्तान ऐसा मुल्क है जो सेना के पास है।

सच्चाई यह है कि पिछले वर्षो में पाकिस्तान के छद्म लोकतंत्र ने जितने भी प्रधानमंत्री देखे हैं उसमें सबसे कमजोर या फिर कहा जाए कि रीड़ विहीन इमरान ही हैं। नवाज शरीफ की कथनी और करनी कभी मिली नहीं, लेकिन कभी कभार ही सही उनमें थोड़ी मंशा दिखती थी। इमरान की कंपकपी दिखती है।

यह अच्छा है कि भय वश ही सही उन्होंने यह माना कि पहले आतंक पर बात होनी चाहिए, लेकिन क्या इसके लिए उन्हें अपनी सेना और आइएसआइ से मंजूरी ले ली है। कोई भुला नहीं सकता है कि रिश्तों को सुधारने की कोशिशें जब परवान पर थीं तो नवाज ने एकबारगी पलटी मार दी थी। वह दिल का आपरेशन कराने विदेश गए और पूरा दिल ही बदल गया। भारत तो तब भी बातचीत से रिश्ते सुधारने की कोशिश कर रहा था। पाकिस्तान ने पानी फेर दिया।

क्या ऐसे में इमरान पर भरोसा किया जा सकता है। वह सबूत की बात कर रहे हैं, भारत की ओर से तो उन्हें मसूद अजहर के घर का पता तक दे दिया गया है। पठानकोट में किस तरह पाकिस्तानी सेना की भूमिका थी उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी लोग जानते हैं। हमने सहयोग दिखाते हुए उनकी टीम को भारत तक आने दिया, लेकिन वह पलट गए।

सच्चाई यह है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान के खिलाफ बने माहौल और भारत के क्रुद्ध जनमानस और केंद्र सरकार के रुख को देखते हुए पाकिस्तान सहमा हुआ है। वह जानता है कि आज का भारत बदला हुआ भारत है जो सर्जिकल स्ट्राइक करता है और अब सेना को खुली छूट दे चुका है कि अपने वीरों का बदला ले लो। यही कारण है कि वह भयभीत है, लेकिन अकड़ है कि कार्रवाई के जवाब में कार्रवाई की बात कर रहा है।

इमरान का डर वाजिब है। वह आर्थिक तंगहाली के गर्त में चले गए पाकिस्तान को निकालने की कोशिश कर रहे हैं। पिछले एक साल में डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी रूपये का 50 फीसदी अवमूल्यन हो चुका है। पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार 17 अरब डॉलर से भी नीचे चला गया है। अंतरराष्ट्रीय कंपनियां वहां निवेश को तैयार नहीं है। यहां तक कि चीनी कर्ज के मकड़जाल में फंस चुके पाकिस्तान को निकालने से आइएमएफ ने इनकार कर दिया है। ऐसे में भारत की ओर से किसी कार्रवाई को संभालने की स्थिति में पाकिस्तान नहीं है।

इमरान और सेना व आइएसआइ के उनके आका जानते हैं कि पुराने कर्ज का ब्याज लौटाने के लिए कर्ज लेने वाला पाकिस्तान युद्ध के झटके में टूटकर बिखर जाएगा। यही कारण है कि आतंक पर बातचीत, परमाणु युद्ध की परोक्ष धमकी या फिर संयुक्त राष्ट्र में गुहार लगाकर इमरान सरकार संकट को किसी तरह टालने की कोशिश कर रहे हैं।

अगर भारत की बात करें तो देश के अंदर गुस्सा उबाल पर है। वह पड़ोसी की घिनौनी हरकत को सहने के लिए अब और तैयार नहीं है। सेना क्या सोच रही है, सरकार के दिलो दिमाग में क्या चल रहा है यह आने वाला वक्त ही बताएगा।

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