Maharashtra and Haryana election: बड़ी रोचक है यह जीत-हार, जानें दोनों राज्यों में क्या बदल गया

महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके है। पिछली बार इन दोनों राज्यों में भाजपा ने बड़ी जीत हासिल की थी। लेकिन इस बार इन दोनों राज्यों में कुछ बदल गया है।

By Ayushi TyagiEdited By: Publish:Fri, 25 Oct 2019 09:37 AM (IST) Updated:Fri, 25 Oct 2019 09:41 AM (IST)
Maharashtra and Haryana election: बड़ी रोचक है यह जीत-हार, जानें दोनों राज्यों में क्या बदल गया
Maharashtra and Haryana election: बड़ी रोचक है यह जीत-हार, जानें दोनों राज्यों में क्या बदल गया

प्रशांत मिश्र। पांच साल पहले इसी वक्त भाजपा ने महाराष्ट्र और हरियाणा में एक रिकार्ड बनाया था। दोनों राज्यों में भाजपा ने न सिर्फ गौरव के साथ बड़ी जीत हासिल की थी बल्कि पहली बार अपना मुख्यमंत्री बनाया था। वह जीत केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार बनने के चार महीने बाद हुई थी। केंद्र में तो दोबारा नरेंद्र मोदी सरकार और बड़ी संख्या से जीतकर आ गई लेकिन इन दो राज्यों में क्या बदल गया? जीत तो इस बार भी हुई।

सरकार भी बनने जा रही है लेकिन बहुत कुछ बदला-बदला सा है। दरअसल, इस बार चेहरा बदल गया। पिछली बार राज्यों में भी चेहरा मोदी ही थे। इस बार देवेंद्र फडणवीस और मनोहर लाल खट्टर चेहरा थे और जनता ने स्पष्ट कर दिया कि उन्हें उनके प्रदर्शन, उनकी विश्वसनीयता पर परखा जाएगा। दोनों फिर से मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं लेकिन शक्ति थोड़ी कम हो गई है। जो नतीजे आए हैं वह विपक्ष की निष्कि्रयता के बावजूद हैं। अनुमान लगाया जा सकता है कि अगर विपक्ष स्थानीय मुद्दों के साथ आक्रामक होता और भाजपा में अभियान की कमान मोदी और अमित शाह जैसे सशक्त लोगों पर केंद्रित न होती तो क्या होता।

अगर कांग्रेस की बात की जाए तो कहा जा सकता है कि राहुल गांधी से कमान लेने के बाद सोनिया गांधी ने समझदारी के फैसले लेने की शुरआत की है। अगर राहुल की लीक पर ही हरियाणा में भूपेंद्र हुड्डा को दूर रखा जाता तो कांग्रेस इस मुकाम पर नहीं पहुंचती कि उत्साह का संचार हो। महाराष्ट्र में अपेक्षा से काफी नीचे प्रदर्शन की अलग-अलग दलीलें दी जा सकती हैं। कहा जा सकता है कि अलग-अलग ल़़डे होते तो ज्यादा अच्छा प्रदर्शन होता क्योंकि तब त्रिकोणीय ल़़डाई होती और भाजपा के पास आजमाने को ज्यादा सीटें होतीं। अब उस शिवसेना पर निर्भरता ब़़ढ गई है जिसने रझान आने के साथ आंखें भी दिखानी शुरू कर दी हैं।

सरकार तो बन गई लेकिन वहां मंत्रिमंडल गठन में कितनी खींचतान होगी यह समझा जा सकता है। और हरियाणा..? अभी-अभी लोकसभा चुनाव में भाजपा का जो प्रदर्शन था उसके अनुसार भाजपा 80 सीटें जीतती। लेकिन नतीजा आया तो कांटे की टक्कर में फंस गई। वह भी उस कांग्रेस से जो मन से चुनाव हार चुकी थी। आखिर क्या कारण था। प्रदेश नेतृत्व ने केंद्र को सच्चाई नहीं बताई थी? क्या खेमेबाजी फिर हावी रही? या फिर प्रदेश के प्रभावी जाट समुदाय के लिए यह संदेश कि भाजपा में उनके लिए फिलहाल ब़़डा स्थान नहीं है, यह भारी प़़डा। ये सभी कारण हो सकते हैं। और केंद्रीय नेतृत्व को इस सभी के जवाब ढूंढ़ने होंगे वरना आश्चर्य नहीं कि दूसरे राज्यों में भी इसका असर दिखे। खासकर दिल्ली में जहां अगले कुछ महीनों में ही चुनाव हैं। और उससे पहले झारखंड में जहां विपक्ष फिलहाल बिखरा हुआ तो है लेकिन मौजूद है।

इन दोनों राज्यों के लिए भाजपा को रणनीति तय करनी होगी। भाजपा को एक बात और याद रखनी होगी कि विधानसभा चुनावों में स्थानीय मुद्दों की ज्यादा अहमियत होती है। अगर यह कहा जाए कि केंद्र सरकार के हाल में अनुच्छेद 370 हटाने जैसे फैसले की चर्चा नहीं होती तो स्थिति और खराब हो सकती थी तो गलत नहीं होगा। अगर विपक्ष के नजरिए से देखा जाए तो उनके लिए पीठ थपथपाने की बात नहीं है क्योंकि भूमिका जनता की है विपक्ष तो खुद हैरत में है। विपक्ष की ओर से ऐसा कुछ नहीं किया गया इसके लिए उन्हें श्रेय दिया जाए।

जनता ने प्रदेश सत्ता के खिलाफ थोड़ी नाराजगी जताई। नजारा मतदान के वक्त ही दिख गया था जब लगभग आठ फीसदी कम मतदान हुए थे। यह जागने का वक्त है। भाजपा के लिए भी और विपक्ष के लिए भी। भाजपा को अतिविश्वास से बाहर आकर झांकना होगा और विपक्ष को यह अहसास करना होगा कि जमीनी ल़़डाई में मजबूती से डटने के लिए संगठन से लेकर नेतृत्व तक मजबूत करने होंगे।

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