सोनिया गांधी के मीडिया को लेकर विचित्र सुझाव में दिखी आपातकाल वाली मानसिकता

सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कोरोना के लिए धन जुटाने के कुछ ऐसे सुझाव दिए हैं जो अतार्किक और विचित्र तो हैं हीं प्रतिशोध व वैमनस्य भी दर्शाते हैं।

By Arun Kumar SinghEdited By: Publish:Wed, 08 Apr 2020 07:44 PM (IST) Updated:Wed, 08 Apr 2020 11:08 PM (IST)
सोनिया गांधी के मीडिया को लेकर विचित्र सुझाव में दिखी आपातकाल वाली मानसिकता
सोनिया गांधी के मीडिया को लेकर विचित्र सुझाव में दिखी आपातकाल वाली मानसिकता

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। कोरोना वायरस जैसे संक्रमण के काल में कांग्रेस ने विचित्र रुख का प्रदर्शन किया है। वैश्विक स्तर पर एकजुटता की कवायदों के बीच भी कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की तरफ से राजनीति नहीं रुक रही है। कोरोना से जंग के लिए सांसदों के वेतन से तीस फीसद की कटौती और सांसद निधि स्थगित किए जाने से बौखलाई कांग्रेस ने जागरूकता और जानकारी के प्रसार के लिए जरूरी मीडिया पर हमला करने की कोशिश की है। आश्चर्य की बात यह है कि यह प्रयास खुद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की ओर से हो रहा है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर धन जुटाने के कुछ ऐसे सुझाव दिए हैं, जो अतार्किक और विचित्र तो हैं हीं, प्रतिशोध व वैमनस्य भी दर्शाते हैं। 

सोनिया गांधी का रुख मीडिया के महत्‍व को घटाने वाला 

उनका सबसे पहला सुझाव मीडिया को लेकर है। सोनिया ने कहा कि दो साल के लिए सरकार को प्रिंट, टेलीविजन और ऑनलाइन मीडिया को कोई विज्ञापन नहीं देना चाहिए। सोनिया का यह आश्चर्यजनक रुख उस मीडिया के महत्व को जानबूझकर घटाने वाला है जिससे मिलने वाली सूचनाओं पर पूरा देश आश्रित रहता है। कोरोना जैसी आपात स्थिति में मीडिया इसीलिए आवश्यक सेवा में भी शामिल है।

कोरोना वायरस से जंग की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मीडिया से संवाद कर जागरूकता का अभियान छेड़ा था। समाचार पत्र इस मुश्किल वक्त में अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए हर पल इस कोशिश में जुटे हैं कि लोगों तक सही जानकारी पहुंचे। जनता की परेशानी और योजनाओं के क्रियान्वयन में कमियां रेखांकित हों। इसके लिए मीडिया में कार्यरत हजारों पत्रकार जान की परवाह छोड़ रोजाना घर से बाहर निकलते हैं। 

कांग्रेस की मीडिया को एक बार फिर नष्ट करने की मानसिकता

इन पत्रकारों की जीविका भी बहुत कुछ विज्ञापनों पर निर्भर होती है। सोनिया इसकी भी अनदेखी करतीं नजर आ रही हैं। मीडिया के प्रति सोनिया का यह रुख संभवत: इसलिए है, क्योंकि कोरोना के इस संकट के दौर में भी कांग्रेस की राजनीति करने की कोशिशें अखबारों और अन्य माध्यमों में बेनकाब हो गई हैं। तमाम ऐसे माध्यमों में कांग्रेस आलोचना का पात्र बनी है। कांग्रेस इतिहास दोहराती नजर आ रही है।

आपातकाल की तरह ही मीडिया को फिर नष्ट करने की मानसिकता पार्टी पर हावी हो रही है। संप्रग सरकार के समय बाहर से रहकर खुद सोनिया गांधी ने सरकार को दस साल तक नियंत्रित किया था। वह जानती हैं कि जागरूकता फैलाने के लिए मीडिया को मिलने वाले विज्ञापनों में बहुत बड़ी राशि नहीं जाती है। इसके विपरीत समय-समय पर मीडिया घरानों की ओर से राहत कोष में योगदान दिया जाता है। 

अफवाहों के बीच प्रिंट मीडिया सबसे सशक्‍त माध्‍यम 

स्वतंत्रता संग्राम के काल से लेकर अब तक देश के निर्माण में मीडिया की अहम भूमिका रही है। सोशल मीडिया की अफवाहों के बीच विश्वसनीय जानकारी पहुंचाने का खासतौर से प्रिंट मीडिया सबसे प्रमुख माध्यम है। ध्यान रहे कि एक दिन पहले ही सरकार ने फैसला लिया है कि सांसदों को हर साल मिलने वाली पांच करोड़ की सांसद निधि दो साल के लिए स्थगित रहेगी। इसका कांग्रेस की ओर से विरोध हुआ है। बदले में पैसे जुटाने के लिए सोनिया गांधी ने कुछ और भी सुझाव दिए हैं। लेकिन उनके दो पन्नों के पत्र में वैमनस्य और निराशा की झलक ही अधिक मिलती है।

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