चुनाव आयोग बोला, राजनीतिक दल आरटीआइ एक्ट से बाहर
केंद्रीय सूचना आयुक्त (सीआइसी) के 2013 के फैसले के तहत राजनीतिक दल आरटीआइ के दायरे में आ चुके हैं।
style="text-align: justify;">नई दिल्ली, प्रेट्र। चुनाव आयोग का कहना है कि राजनीतिक दल सूचना अधिकार कानून (आरटीआइ) के दायरे में नहीं आते हैं। आयोग ने एक एक आरटीआइ के जवाब में यह बात कही है। उल्लेखनीय है कि केंद्रीय सूचना आयुक्त (सीआइसी) के 2013 के फैसले के तहत राजनीतिक दल आरटीआइ के दायरे में आ चुके हैं।
पुणे निवासी विहार धु्रवे ने सूचना अधिकार कानून (आरटीआइ) के जरिये जानने की कोशिश की थी कि प्रमुख राजनीतिक दलों भाजपा, कांग्रेस, माकपा, भाकपा, बसपा, सपा व रांकापा ने चुनावी बांड से कितना चंदा एकत्र किया है। आयोग ने अपने जवाब में कहा कि ये सारा रिकार्ड उसके पास नहीं है। 2017-18 के दौरान चुनावी बांड से एकत्र किए गए चंदे का ब्योरा 30 सितंबर तक आएगा। सीपीआइओ (केंद्रीय जन सूचना अधिकारी) का कहना था कि वैसे भी राजनीतिक दल आरटीआइ के दायरे से बाहर हैं। आयोग की फर्स्ट अपीलेट अथॉरिटी केएम विलफ्रेड ने भी अपने फैसले में माना कि वह सीपीआइओ के फैसले से सहमत हैं।
पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त एएन तिवारी का कहना है कि जून 2013 में केंद्रीय सूचना आयुक्त (सीआइसी) के फैसले के तहत, राजनीतिक दलों को आरटीआइ एक्ट के तहत जवाबदेह माना गया था। अभी तक इस फैसले को किसी भी हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट से खारिज नहीं किया गया है। लिहाजा चुनाव आयोग को हर हाल में आरटीआइ के तहत चंदे की जानकारी देनी चाहिए। आरटीआइ कार्यकर्ता वेंकटेश नायक ने कहा कि आयोग ने अपनी सीमाओं की उल्लंघना की है। उसे आरटीआइ का जवाब देना ही चाहिए। विलफ्रेड ने फोन पर एक सवाल के जवाब में कहा कि उनका आशय यह था कि सभी राजनीतिक दल आरटीआइ के दायरे में नहीं हैं। हालांकि उनका दस्तखत किया गया फैसला इसका समर्थन नहीं करता।
पुणे निवासी विहार धु्रवे ने सूचना अधिकार कानून (आरटीआइ) के जरिये जानने की कोशिश की थी कि प्रमुख राजनीतिक दलों भाजपा, कांग्रेस, माकपा, भाकपा, बसपा, सपा व रांकापा ने चुनावी बांड से कितना चंदा एकत्र किया है। आयोग ने अपने जवाब में कहा कि ये सारा रिकार्ड उसके पास नहीं है। 2017-18 के दौरान चुनावी बांड से एकत्र किए गए चंदे का ब्योरा 30 सितंबर तक आएगा। सीपीआइओ (केंद्रीय जन सूचना अधिकारी) का कहना था कि वैसे भी राजनीतिक दल आरटीआइ के दायरे से बाहर हैं। आयोग की फर्स्ट अपीलेट अथॉरिटी केएम विलफ्रेड ने भी अपने फैसले में माना कि वह सीपीआइओ के फैसले से सहमत हैं।
पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त एएन तिवारी का कहना है कि जून 2013 में केंद्रीय सूचना आयुक्त (सीआइसी) के फैसले के तहत, राजनीतिक दलों को आरटीआइ एक्ट के तहत जवाबदेह माना गया था। अभी तक इस फैसले को किसी भी हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट से खारिज नहीं किया गया है। लिहाजा चुनाव आयोग को हर हाल में आरटीआइ के तहत चंदे की जानकारी देनी चाहिए। आरटीआइ कार्यकर्ता वेंकटेश नायक ने कहा कि आयोग ने अपनी सीमाओं की उल्लंघना की है। उसे आरटीआइ का जवाब देना ही चाहिए। विलफ्रेड ने फोन पर एक सवाल के जवाब में कहा कि उनका आशय यह था कि सभी राजनीतिक दल आरटीआइ के दायरे में नहीं हैं। हालांकि उनका दस्तखत किया गया फैसला इसका समर्थन नहीं करता।