Dynastic Politics: यूं ही नहीं कांग्रेस में रार, जितनी सीट उससे ज्यादा रिश्तेदार; देखें लिस्‍ट

कांग्रेस में हार के बाद की लड़ाई का बड़ा कारण है कि बड़े नेता मोर्चा छोड़ना नहीं चाहते। छह महीने में होनेवाले विधानसभा चुनाव के लिए उनके रिश्तेदारों की लंबी फौज माथे पर खड़ी है।

By Alok ShahiEdited By: Publish:Sun, 02 Jun 2019 03:06 PM (IST) Updated:Mon, 03 Jun 2019 10:14 AM (IST)
Dynastic Politics: यूं ही नहीं कांग्रेस में रार, जितनी सीट उससे ज्यादा रिश्तेदार; देखें लिस्‍ट
Dynastic Politics: यूं ही नहीं कांग्रेस में रार, जितनी सीट उससे ज्यादा रिश्तेदार; देखें लिस्‍ट

रांची, राज्य ब्यूरो। कहने को तो कांग्रेस (Congress) पूरे देश में लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election  2019) हारी है और दक्षिण को छोड़ दिया जाए तो कोई ऐसा राज्य नहीं जहां पार्टी की मिट्टी पलीद न हुई हो। इसके बावजूद झारखंड (Jharkhand Congress) जैसे छोटे राज्य में पार्टी नेताओं की लड़ाई चरम पर है और शिकवे-शिकायतों का दौर नियमित चल रहा है। ददई दुबे सरीखे नेताओं ने तो खुलकर नाराजगी व्यक्त कर दी थी तो रामेश्वर उरांव जैसे नेताओं की निष्क्रियता के तौर पर नाराजगी दिखी। अब सुबोधकांत सहाय और कीर्ति झा आजाद ने खुले तौर पर कांग्रेस आलाकमान तक अपनी शिकायत पहुंचा दी है। ऐसे में मामला अब और आगे बढ़ता ही दिख रहा है।

लोकसभा चुनाव में हारने के बाद पार्टी के पुराने नेताओं की नजर विधानसभा चुनाव के लिए टिकट पर अस्तित्व बचाए रखने के लिए अभी से शुरू है लड़ाई ताकि आगे जाकर सीटें मिलने की संभावना बनी रहे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के खाते में 20-25 सीटें मिलने का अनुमान तो इससे अधिक रिश्ते आ गए

सूत्र बताते हैं कि लड़ाई सिर्फ लोकसभा चुनाव में हार और असहयोग का नहीं है। यहां छह महीने बाद विधानसभा चुनाव है और लड़ाई इसी चुनाव में सीटों को अपने कब्जे में करने की है। पहले से जीतते रहे मठाधीश पार्टी में अपने परिजनों के लिए सीट सुनिश्चित करा लेना चाहते हैं और यह हिस्सेदारी लड़कर ही मिलेगी। लोकसभा चुनाव 2019 में झारखंड से एक ही प्रत्याशी गीता कोड़ा को जीत मिली है और उसमें भी उनका अपना योगदान अधिक है।

गीता कोड़ा फिलहाल अपने पति पूर्व सीएम मधु कोड़ा के लिए भी लॉबिंग नहीं कर रही हैं और किसी प्रत्याशी की पैरवी भी नहीं लेकिन उनके अलावा हारे हुए सभी नेता कुछ न कुछ हिस्सेदारी चाहते हैं। विधानसभा चुनाव में महागठबंधन बना रहा तो कांग्रेस के खाते में 20 से 25 सीटें आएंगी और इससे कहीं अधिक दावेदारी बड़े नेताओं के रिश्तेदारों की है।

राहुल गांधी के संकेतों से डरनेवाले नहीं
लोकसभा चुनाव के बाद तीन वरीय नेताओं के खिलाफ राहुल गांधी का गुस्सा सार्वजनिक तौर पर सभी देख रहे हैं लेकिन इससे कोई डरनेवाला दिख भी नहीं रहा है। राहुल ने राजस्थान के सीएम गहलोत और मध्यप्रदेश के सीएम कमलनाथ को आड़े हाथों लिया था लेकिन इसका संकेत कांग्रेस की राज्य इकाई तक नहीं पहुंचा है। एक कांग्रेस नेता कहते हैं कि जो खुद परिवार की बदौलत अध्यक्ष बने वे दूसरों को परिवार के लिए मना कैसे कर सकते हैं।

वर्षों से झंडा ढो रहे कार्यकर्ता कहां जाएंगे
कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि वर्र्षों से झंडा ढो रहे कार्यकर्ताओं के लिए जगह नहीं निकल पा रही है। यही कारण है कि चुनाव में मात होती है। कुछ महीनों पूर्व एक साधारण कार्यकर्ता नमन विक्सल कोंगाड़ी को सिमडेगा के कोलेबिरा से चुनाव लड़ाया गया तो उसने बड़े-बड़ों को मात दे दी लेकिन इससे कांग्रेसी सीख लेते नहीं दिख रहे। 

इन्हें है अपने सगे-संबंधियों की चिंता

सुबोधकांत सहाय : स्वयं एवं भाई के लिए। हटिया सीट सुरक्षित कराना चाहते हैं। गोपाल साहू : स्वयं एवं भाई के लिए। दोनों चुनाव लड़ चुके हैं। सुखदेव भगत : स्वयं विधायक। मौका मिलने पर नप अध्यक्ष पत्नी के लिए भी टिकट का इंतजाम करेंगे। गीताश्री उरांव : स्वयं दावेदार हैं। पुलिस सेवा से आए अरुण उरांव भी टिकट के दावेदारों में शामिल हैं। राजेंद्र सिंह : स्वयं एवं दोनों पुत्रों को टिकट दिलाना चाहते हैं। मन्नान मल्लिक : स्वयं अथवा पुत्र के लिए धनबाद सीट से दावेदारी कर रहे हैं। ददई दुबे : स्वयं एवं पुत्र के लिए। खुद बोकारो तो बेटा पलामू के विश्रामपुर से बेटे के लिए टिकट चाहते हैं। फुरकान अंसारी : स्वयं भी लडऩा चाहते हैं और पुत्र तो विधायक होने के कारण प्रबल दावेदार हैं हीं। आलमगीर आलम : स्वयं एवं पुत्र के लिए लगे हुए हैं। प्रदीप कुमार बलमुचू : स्वयं एवं पुत्री के लिए। पुत्री को पिछले चुनाव में टिकट भी दिलवा चुके हैं। तिलकधारी सिंह : अपने पुत्र धनंजय के लिए प्रयासरत हैं। समरेश सिंह : दोनों बहू कांग्रेस में शामिल हुई हैं, एक विधायक तो दूसरी निगम चुनाव लडऩे की आस में।

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