शिक्षक, पत्रकारिता और फिर राजनीति की ऊंचाइयां छूने वाले नेता- डॉ. रमेश पोखरियाल 'निशंक'

बतौर शिक्षक अपने करियर की शुरुआत कर डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने साहित्य पत्रकारिता और राजनीति में झंडे गाड़े। निशंक ने अपने पत्रकारिता करियर की शुरुआत दैनिक जागरण से की थी।

By Shashank PandeyEdited By: Publish:Thu, 20 Jun 2019 09:18 AM (IST) Updated:Thu, 20 Jun 2019 09:33 AM (IST)
शिक्षक, पत्रकारिता और फिर राजनीति की ऊंचाइयां छूने वाले नेता- डॉ. रमेश पोखरियाल 'निशंक'
शिक्षक, पत्रकारिता और फिर राजनीति की ऊंचाइयां छूने वाले नेता- डॉ. रमेश पोखरियाल 'निशंक'

विकास धूलिया, देहरादून। बात 1982-83 के आसपास की है। सरस्वती शिशु मंदिर उत्तरकाशी में एक युवा आचार्य सेवारत थे। नाम था रमेश। शिक्षण में निपुण लेकिन सबसे बड़ा गुण यह कि वह अपने छात्रों के घर जाकर उनकी शिक्षा और रुचि को लेकर अभिभावकों से संवाद करते थे। आज लगभग 36 साल बाद वही डॉ. रमेश पोखरियाल 'निशंक' केंद्र सरकार में मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में देश की शिक्षा व्यवस्था की बागडोर अपने हाथों में संभाले हुए हैं। बतौर शिक्षक अपने करियर की शुरुआत कर निशंक ने इसके बाद साहित्य, पत्रकारिता, फिर राजनीति में कदम रखा और सफलता के तमाम सोपान तय करते हुए इस मुकाम तक पहुंचे।

अत्यंत गरीबी में गुजरा बचपन
डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक का बचपन अत्यंत गरीबी में गुजरा। पौड़ी गढ़वाल जिले के पिनानी गांव, जहां जन्म हुआ, वहीं प्राथमिक शिक्षा ली। रोजाना 15-16 किमी पैदल पहाड़ी रास्ता तय करना पड़ता था। इस दौरान दो बार मौत से भी सामना हुआ। पहली बार एक पहाड़ी नदी में बहे, किसी तरह दूसरे गांव की महिलाओं की मदद से नदी से निकले। दूसरी बार सर्दियों में बर्फ के बीच स्कूल जाते हुए अचानक सामने बाघ आ गया। मृत्यु निश्चित मान चुपचाप खड़े रहे। पांच मिनट बाद बाघ खुद ही जंगल की ओर चला गया।

शिक्षण के बाद पत्रकारिता
शिक्षण के साथ निशंक साहित्यिक गतिविधियों में भी सक्रिय रहे। डॉ. शंकर दयाल शर्मा उप राष्ट्रपति थे, तब उन्होंने निशंक की पहली पुस्तक 'समर्पण' का लोकार्पण किया। कोटद्वार की साहित्यांचल संस्था ने वर्ष 1990 के आसपास 'निशंक' उपनाम दिया। निशंक ने अपने पत्रकारिता करियर की शुरुआत 'दैनिक जागरण' से की। कोटद्वार में हिमालयी सरोकारों पर आधारित पत्रिका 'नव राह, नव चेतना' निकाली और फिर 1986-87 में सीमांत वार्ता समाचार पत्र आरंभ किया।

अटल जी के कहने पर राजनीति में प्रवेश
निशंक के मुताबिक, '1990 में अटल जी ने बुलाया और उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव लड़ने को कहा। कर्णप्रयाग सीट दिग्गज कांग्रेस नेता डॉ. शिवानंद नौटियाल की थी, वह नजदीकी रिश्तेदार भी थे। अपने परिवार के विरोध के बाद भी उनके खिलाफ चुनाव मैदान में उतरा और जीत दर्ज की। यह जिंदगी का दूसरा अहम पड़ाव था और यहीं से राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई।'

28 वर्ष का सक्रिय राजनीतिक जीवन
निशंक वर्ष 1991 में पहली बार कर्णप्रयाग क्षेत्र से उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए। 2012 तक पांच बार, पहले उत्तर प्रदेश और फिर उत्तराखंड विधानसभा के सदस्य रहे। 1997 व 1999 में उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री, वर्ष 2000 में अलग राज्य बनने के बाद उत्तराखंड की अंतरिम सरकार में कैबिनेट मंत्री और फिर 2007 में भी उत्तराखंड सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। वर्ष 2009 में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने और इस पद पर लगभग सवा दो साल रहे। वर्ष 2014 में हरिद्वार सीट से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए और पूरे पांच साल लोकसभा की सरकारी आश्वासन समिति के सभापति के रूप में दायित्व संभाला। इस आमचुनाव में हरिद्वार से लगातार दूसरी बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए और केंद्र सरकार में मानव संसाधन विकास मंत्रलय जैसी अहम जिम्मेदारी मिली।

साहित्यिक सफर
1983 में निशंक की पहली कविता संग्रह 'समर्पण' प्रकाशित हुई। अब तक 14 कविता संग्रह, 12 कहानी संग्रह, 11 उपन्यास, चार पर्यटन ग्रंथ, छह बाल साहित्य, चार व्यक्तित्व विकास सहित पांच दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। देश-विदेश में कई भाषाओं में उनके साहित्य का अनुवाद हुआ है। युगांडा, नेपाल, मॉरीशस, श्रीलंका, जर्मनी, हॉलैंड, रूस, नार्वे, जापान, इंडोनेशिया, भूटान सहित यूरोपीय देशों में सम्मान मिला है। देश-विदेश की 300 से अधिक साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा राष्ट्र गौरव, भारत गौरव, प्राइड ऑफ उत्तराखंड एवं यूथ आइकन अवार्ड दिए गए हैं।

पहाड़ के लिए समर्पित व्यक्तित्व
शिक्षक से लेकर सियासत की ऊंचाईयां छूने तक के निशंक के सफर को प्रसिद्ध पर्यावरणविद् पद्मश्री डॉ.अनिल प्रकाश जोशी ने बेहद करीब से देखा है। डॉ. जोशी ने बताया, 'निशंक से मेरा परिचय 1979 में तब हुआ, जब मैं राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय कोटद्वार में शिक्षक था। 1991 में वे पहली बार कर्णप्रयाग सीट पर कांग्रेसी दिग्गज शिवानंद नौटियाल को टक्कर देने चुनाव में उतरे थे। तब हम सभी ने निशंक का मजाक उड़ाया कि वह किस दिग्गज से लोहा ले रहे हैं। चुनाव में निशंक ने अपने विस क्षेत्र के कोने-कोने का दौरा कर एक-एक घर को छाना, मैं इसका साक्षी हूं। निशंक की मेहनत रंग लाई और वह चुनाव जीत गए। निशंक एक ऐसा व्यक्तित्व है, जो अपनी धुन में लगा रहता है और हमेशा पहाड़ के लिए समर्पित भाव से जुटे रहना उनकी सबसे बड़ी खासियत है।'

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