टैलेंट तो होना ही चाहिए

फिल्म हिम्मतवाला, हमशकल्स और एंटरटेनमेंट में काम कर चुकी अभिनेत्री तमन्ना भाटिया की तमन्ना चैलेंजिंग किरदार करने की है। हिंदी फिल्मों के साथ-साथ वह साउथ की फिल्मों में भी काम कर रही हैं। तेलुगू फिल्म 'पइय्या' से स्टार बनीं तमन्ना ने कम उम्र में ही एक्टिंग की राह पकड़ ली

By Edited By: Publish:Mon, 15 Sep 2014 11:18 AM (IST) Updated:Mon, 15 Sep 2014 11:18 AM (IST)
टैलेंट तो होना ही चाहिए

फिल्म हिम्मतवाला, हमशकल्स और एंटरटेनमेंट में काम कर चुकी अभिनेत्री तमन्ना भाटिया की तमन्ना चैलेंजिंग किरदार करने की है। हिंदी फिल्मों के साथ-साथ वह साउथ की फिल्मों में भी काम कर रही हैं। तेलुगू फिल्म 'पइय्या' से स्टार बनीं तमन्ना ने कम उम्र में ही एक्टिंग की राह पकड़ ली थी। फिल्म इंडस्ट्री को वह अभिनेत्री के लिए सबसे सुरक्षित जगह मानती हैं। तमन्ना की जिंदगी से जुड़ी कुछ खास बातें..

एक्ट्रेस सबसे प्रोटेक्टेड

अगर आप प्रोटेक्शन की बात करते हैं तो एक्ट्रेस फिल्म सेट पर सबसे प्रोटेक्टेड लेडी होती हैं। एक्ट्रेस के आसपास हमेशा दस लोग होते हैं। किसी और प्रोफेशन में आप अपनी फैमिली को साथ लेकर नहीं जा सकते, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री ऐसी इंडस्ट्री है जिसमें आप अपने पैरेंट्स, मैनेजर्स को लेकर जा सकते हैं। जब मैं तेरह साल की थी तब मैंने काम शुरू किया था। बच्ची थी तो मुझे पैरेंटल सपोर्ट चाहिए था। अभी भी जब मुझे पैरेंट्स की जरूरत होती है तो वे मेरे साथ होते हैं। जब विदेश जाती हूं तो उन्हें अपने साथ ले जाती हूं। इसलिए नहीं कि मुझे प्रोटेक्शन की जरूरत होती है, बल्कि इसलिए कि जब हम शूट करते हैं तो लगातार तीस-चालीस दिन तक घर नहीं जा पाते हैं। ऐसे में हमें घर जैसे माहौल की जरूरत होती है। मेंटल स्टैबिलिटी चाहिए होती है। इसलिए मैं पैरेंट्स को साथ ले जाती हूं। मैं समझती हूं कि हमारे देश में फिल्म इंडस्ट्री किसी और प्रोफेशन के मुकाबले कहीं ज्यादा सेफ है।

चलती हैं महिला प्रधान फिल्में

ऐसा नहीं है कि हिंदी फिल्मों में हीरोइनों के करने के लिए कुछ नहीं है। स्थितियां बदल रही हैं। 'मैरी कॉम' और 'क्वीन' आ चुकी हैं। बहुत सी महिला प्रधान फिल्में बन रही हैं और लोग इन्हें देखना भी चाहते हैं। बॉलीवुड के अलावा अन्य फिल्म इंडस्ट्रीज में भी मेल ओरिएंटेड फिल्में ज्यादा बनती हैं।

डिमांड व सप्लाई पर इंडस्ट्री

मेरा मानना है कि फिल्में बनती ही हैं एंटरटेनमेंट के लिए। वे समाज को बदलने या संदेश देने के लिए नहीं बनती हैं। पहले के जमाने में तो फिल्में मनोरंजन के लिए ही देखी जाती हैं, जो फिल्में चलती हैं उनमें ही तो प्रोड्यूसर पैसा लगाएंगे। फिल्म इंडस्ट्री भी तो डिमांड व सप्लाई के बेस पर ही चलती है।

स्कूल में साइन की फिल्म

जब मैं स्कूल में थी तभी जिस प्रोड्यूसर ने मुझे सबसे पहले साइन किया उनके बच्चे भी उसी स्कूल में पढ़ रहे थे। वह चाहते थे मुझे अपनी फिल्म में। मेरी टीचर ने मुझे इंट्रोड्यूस किया। वह एक हिंदी फिल्म 'चांद सा रोशन चेहरा' थी। इसके बाद मैंने साउथ की फिल्मों में भी काम किया।

फॉलो किया पैरेंट्स को

मैंने हमेशा अपने पैरेंट्स की गाइडेंस को माना है तभी तो इतनी दूर आ सकी हूं। आज भी मैं उनकी बात सुनकर ही फैसले लेती हूं, लेकिन मानती हूं कि अपना भी कॉन्फिडेंस होना चाहिए। बड़ों के पास अनुभव होता है जिससे आप काफी कुछ सीख सकते हैं। मैं अपने सीनियर्स की भी ओपिनियन लेती हूं और उसे मानती भी हूं। जब फिल्म इंडस्ट्री में आई तो मुझे वजन कम करने के लिए कहा गया। मैंने पॉजिटिव लिया और अपनी जीवनशैली बदली।

फ्लॉप फिल्में नो रिग्रेट

कुछ फिल्में बॉक्स ऑफिस पर चलती हैं कुछ नहीं भी। मेरी कई फिल्में फ्लॉप हुई हैं, लेकिन मुझे अपने किसी फैसले पर रिग्रेट नहीं है। अगर आपका काम अच्छा है और लोग चाहते हैं कि आप फिल्मों में चलें तो आपके इर्द गिर्द कुछ भी चल रहा हो, आपको काम मिलता रहेगा। मेरी पहली फिल्म नहीं चली, लेकिन इससे मुझे दूसरी या तीसरी फिल्म मिलने में कोई परेशानी नहीं हुई। मेरे अगेंस्ट कोई पॉलिटिक्स नहीं हुई। जब तक लोगों को आप पर विश्वास है कि आप कुछ कर सकते हैं तब तक आपको काम मिलता रहेगा।

हर फिल्म का एक नसीब

एक्स फैक्टर क्या होता है किसी को पता नहीं। नसीब की बात होती है। कुछ चीजें चलती हैं। मेरे कॅरियर में मेरी साउथ की जो भी फिल्में चलीं उनमें किस्मत का काफी योगदान रहा है। हम काम करते हैं, मेहनत करते हैं और हर पिक्चर में उसी लगन से काम करते हैं, लेकिन कोई चलती है कोई नहीं। हमारा नजरिया फिल्मों के लिए अलग नहीं होता, लेकिन हर फिल्म का एक नसीब होता है, एक लक होता है। कोई कंट्रोवर्सी होती है तो वह एक अच्छी फिल्म को हेल्प जरूर कर सकती है, लेकिन वह एक बुरी फिल्म को चला नहीं सकती।

सीखीं तमिल, तेलगू

जब मैं जब बहुत छोटी थी, तब मैंने साउथ की फिल्में करना शुरू किया था। वह एक ऐसी उम्र होती है जब आपमें सीखने की काफी क्षमता होती है। उस वक्त मैंने तमिल, तेलुगू सीखी और आज मैं दोनों भाषाओं में बात कर सकती हूं। भाषाओं के आने से वहां काम करना और आसान हो गया। अब हिंदी में काम कर रही हूं, लेकिन कोई मुश्किल नहीं। इस भाषा में भी कंफर्टेबल हूं।

अगर एक्टर नहीं होती

शायद जूइॅल्रि डिजाइन कर रही होती। जूइॅल्रि में मेरा बहुत इंट्रेस्ट है। पढ़ाई में भी मेरी काफी रुचि थी, लेकिन काम करने के कारण ज्यादा पढ़ नहीं सकी। वैसे मेरे परिवार में कई डॉक्टर हैं। इसलिए हो सकता है डॉक्टर बन जाती।

चाहिए चैलेंजिंग किरदार

बतौर एक्टर आप अलग-अलग तरह की भूमिकाएं करना चाहते हैं, लेकिन मेरी हिंदी फिल्में एक ही जोनर की रही हैं। मैं चाहती हूं कि अब जो फिल्में करूं वे अलग जोनर की हों। मुझे चैलेंजिंग किरदार मिले। मेरी आगे की फिल्में कुछ अलग ही होंगी। मैं अपने आपको रिपीट नहीं करना चाहती। अभी तो काफी सारी साउथ की फिल्में हिंदी में बन रही हैं। इन दिनों फिल्म 'बाहुबली' कर रही हूं। यह एक एपिक ड्रामा है। यह बाइलिंगुअल है। शूट तो तेलगू और तमिल में हुई है, लेकिन उम्मीद है कि जब वह रिलीज होगी तो हर भाषा में होगी। मैं उसमें बहुत अच्छा रोल कर रही हूं, प्रिसेंस वॉरियर का।

कायल माधुरी-श्रीदेवी की

जब मैं बड़ी हो रही थी तब माधुरी दीक्षित, करिश्मा और श्रीदेवी की फिल्मों से बहुत इंस्पायर हुई। मैं उनके स्टाइल से ही नहीं, बल्कि उनकी एक्टिंग स्किल्स और वे स्क्रीन पर जैसी दिखती थीं, उससे मैं प्रभावित हुई थी।

(यशा माथुर)

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