रिलेशनशिप में बैलेंस जरूरी है: गौतमी कपूर

एक अरसे के बाद स्मॉल स्क्रीन पर नजर आने वाली अभिनेत्री गौतमी कपूर अगली पारी खेलने के लिए तैयार हैं। घर, बच्चे और पति के साथ काम के बैलेंस को अहम् मानने वाली गौतमी कहती हैं कि फैमिली के लिए थोड़ी ज्यादा मेहनत करनी पड़े भी तो क्या मुश्किल है

By Babita kashyapEdited By: Publish:Sat, 11 Apr 2015 03:19 PM (IST) Updated:Sat, 11 Apr 2015 03:23 PM (IST)
रिलेशनशिप में बैलेंस जरूरी  है: गौतमी कपूर

एक अरसे के बाद स्मॉल स्क्रीन पर नजर आने वाली अभिनेत्री गौतमी कपूर अगली पारी खेलने के लिए तैयार हैं। घर, बच्चे और पति के साथ काम के बैलेंस को अहम् मानने वाली गौतमी कहती हैं कि फैमिली के लिए थोड़ी ज्यादा मेहनत करनी पड़े भी तो क्या मुश्किल है

आपके बच्चे अभी छोटे हैं, आप अदाकारी में लौट आईं हैं। कैसे मैनेज कर रही हैं सब कुछ?

मैं अपनी आम जिंदगी में बहुत ज्यादा ऑर्गेनाइज्ड हूं। मैंने सात साल सब कुछ व्यवस्थित करने में ही इनवेस्ट किए हैं। इन सात सालों में बच्चों का रूटीन और प्रोग्राम सब सेट कर दिया है। मुझे पता था कि मुझे काम करना है। आज नहीं तो कल काम करना ही है। यह क्लियर था। मेरे घर के स्टाफ को मेरे बच्चों का रूटीन, शेड्यूल पता है। बच्चे कब स्कूल जाते हैंं, कब आते हैं वे जानते हैं। फिर मैं दो-दो घंटे पर घर पर फोन करती हूं कि सब कुछ ठीक है ना। बेशक मैं फिजिकली घर पर नहीं रहती, लेकिन मन से हर समय घर पर ही होती हूं। मेरे बच्चों को पता है कि मैं उनसे एक फोन कॉल की दूरी पर हूं। मैंने उन्हें यह कॉन्फिडेंस दिया है और मैं कॉन्फिडेंट हूं कि सब ठीक चलता रहेगा।

गृहस्थी की गाड़ी कैसी चल रही है? राम के साथ अपनी बॉडिंग के बारे में बताएं।

उनके साथ बॉडिंग जबरदस्त हैं। हम पहले दोस्त हैं, दोस्त रह चुके हैं और आज भी दोस्त ही हैं। यही राज है हमारी सक्सेसफुल शादीशुदा जिंदगी का। बारह साल हो गए हैं हमारी शादी को। इसी वैलेंटाइंस डे पर हमने अपनी बारहवीं मैरिज एनीवर्सरी मनाई है। उन्होंने कभी मेरे काम में दखलअंदाजी नहीं की है। मैं बच्चों की परवरिश कैसे कर रही हूं इसमें भी वे इंटरफेयर नहीं करते। मैं सात साल से घर पर थी। वे काम पर रहते। बच्चों से जुड़े सारे फैसले मैं लेती हूं और काम से जुड़े फैसले वे लेते हैं। हमारी बाउंड्रीज बहुत क्लियर हैं। उसमें एक-दूसरे की कोई इंटरफेयरेंस नहीं है।

सुना है कि आपके पति और आपका अपोजिट सा नेचर है। क्या यह सच है?

हम लोग बाहर से अलग दिख सकते हैं, लेकिन हमारा कोर, हमारा विजन एक है। हम जिंदगी से जो चाहते हैं या एक-दूसरे से जो चाहते हैं या बच्चों से जो चाहते हैं वह कॉमन है। इसमें अगर डिस्कनेक्ट होता तो हम साथ नहीं रहते और इतने सालों तक तो साथ रह ही नहीं पाते। हमारे विजन क्लियर हैं। हमने साथ में जो फ्यूचर देखा और हमारी आगे की जो प्लानिंग है उसमें कोई अंतर नहीं है। हां, बाहर से देखें तो वे बहुत मजाकिया हैं, बहुत एक्स्ट्रोवर्ट हैं। मुझे इस मोड़ में आने में टाइम लगता है। मैं फिटनेस फ्रीक हूं, वे नहीं। मैं बहुत जल्दी गुस्सा हो जाती हूं, लेकिन शांत भी बहुत जल्दी हो जाती हूं। वे जब गुस्सा होते हैं तो बिल्कुल बात नहीं करते। यही अंतर हैं हमारे, लेकिन अच्छे हैं। हम कॉम्पलिमेंट करते हैं एक-दूसरे से। मैं जब ज्यादा गुस्सा होती हूं तो वे मुझे बैलेंस करते हैं और जब वे गुस्सा होते हैं तो मैं उन्हें। यह बैलेंस ही हमारी शादीशुदा जिंदगी में काम कर रहा है।

क्वालिटी टाइम कैसे मैनेज करते हैं आप दोनों?

मुझे लगता है कि क्वालिटी टाइम के लिए एफर्ट दोनों तरफ से होना जरूरी है। चूंकि हम दोनों एक प्रोफेशन से हैं और मैं उनकी लिमिटेशंस पहचान सकती हूं। उन्हें समझ सकती हूं। दोनों में अंडस्टेंडिंग हो, थोड़ा सा कंप्रोमाइज हो तो कोई मुश्किल नहीं रहती। किसी भी रिलेशनशिप में गिव एंड टेक बहुत जरूरी है। हमारे बीच आज तक दोस्ती बरकरार है। इसलिए सब कुशल मंगल है। जब मैं घर पर थी और राम काम पर बिजी थे तो उन्हें जितना भी टाइम मिलता, वे हमारे साथ ही स्पेंड करते। वह क्वालिटी टाइम था। जब चौबीसों घंटे घर पर रहकर मैं तंग आ जाती तो राम के शूटिंग से लौटने पर मुझे बाहर जाने का मन करता। हां, कभी-कभी मुझे लगता भी कि मैं बाहर जाना चाहती हूं और उनका मूड नहीं, परंतु हमारे बीच तकरार नहीं हुई।

तेरे शहर में... तीन बेटियों की मां बनी हैं। कैसे कनेक्ट कर रही हैं?

मां बनी हूं स्क्रीन पर और फील करती हूं अपने बच्चों को। स्नेहा माथुर नाम है मेरे किरदार का। शो में मेरी तीन बेटियां हैं। मेरी अपने स्क्रीन हस्बैंड से नोंक-झोंक चलती रहती है, क्योंकि वे मेरी बीच वाली बेटी अमाया को बहुत ज्यादा स्पॉइल कर रहे हैं। हम बनारस से आए हैं। हमारे रूट्स बनारस के हैं। पति सक्सेसफुल हैं। बिजनेस टाइकून हैं। स्नेहा माथुर सोशलाइट हैं, लेकिन मां हैं और जमीन से जुड़ी हैं। वे पति को समझाती हैं कि बच्चों को पैसे की अहमियत पता होनी चाहिए। ऐशो-आराम दो, लेकिन स्पॉइल मत करो। बहुत प्यारा करेक्टर है, लेकिन जिंदगी की कठिनाइयों को भी रेखांकित करता है।

आप अपनी बेटी सिया को मॉडर्न बनाना चाहेंगी या ट्रेडीशनल?

मेरी बेटी सिया नौ साल की है। बेटा अक्स छोटा है। मेरा यह मानना है कि हमारा इंडियन कल्चर इतना स्ट्रॉन्ग है कि एक औरत को मॉडर्न होते हुए भी उसमें ढालना बहुत जरूरी है। मैं मॉडर्न हूं, लेकिन अपने विचारों में इंडियन भी बहुत हूं। मैं रेडिकल नहीं हूं। कुछ बदलना नहीं चाहती, लेकिन यह चाहती हूं कि औरतें पढ़ें। मेरी बेटी बहुत ज्यादा पढ़े। उस पर शादी का प्रेशर न डालूं। वह जब चाहे तब शादी करे। वह अपने कॅरियर को खुद चूज करे। इन सब चीजों में मैं उसे पूरी तरह से सपोर्ट करना चाहती हूं। कल को अगर मेरी बेटी कोई अलग प्रोफेशन चूज करेगी तो मैं तो उसे पूरा सपोर्ट करूंगी, लेकिन उससे यह जरूर कहूंगी कि जब तुम शादी के लिए तैयार हो और अपने लाइफ पार्टनर को चूज करो तो शादी के बाद इस चीज का भी ध्यान रखना कि सभी लिमिटेशंस के साथ फॉरवर्ड कैसे बनो। इनका बैलेंस होना किसी भी औरत की दुनिया में बहुत-बहुत जरूरी है। कोशिश करूंगी कि जिसे मैं फॉलो करती हूं, उसे मेरी बेटी भी फॉलो करे।

स्नेहा के किरदार में क्या टीनएज बच्चों की समस्याओं को समझ पा रही हैं?

मैं एक मां हूं। जब छोटी थी और अपनी मां को तंग करती थी तो वह कहती थीं कि जब तुम मां बनोगी तब समझोगी। अब मेरी समझ में आ रहा है कि वह क्या कहना चाहती थीं। बच्चे हमेशा बच्चे ही होते हैं, एक बार आप मां बन जाते हो तो परेशानियां कभी कम नहीं होतीं। जब बच्चे छोटे होते हैं तो परेशानियां अलग किस्म की होती हैं। जब वे टीनएज हो जाते हैं तो अलग और जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो मुश्किलें भी उसी तरह से बढ़ जाती हैं।

क्या वाकई में शादी में लोगों की रुचि खत्म हो रही है?

मैं ऐसा नहीं कहूंगी कि रुचि कम हो रही है, बल्कि यह कहूंगी कि आजकल टेंप्टेशंस बहुत ज्यादा बढ़ गई हैं। हमारी जेनरेशन को देखें, सब फिट हैं, सब काम कर रहे हैं। औरतों को इकोनॉमिक इंडडिपेंडेंस मिल रही है। बीस साल पहले ऐसा नहीं था। बहुत सारी औरतें हाउस वाइफ बन जाती थीं और सिर्फ शादी ही निभाती थीं, लेकिन अब औरतें बच्चे होने के बाद भी काम पर जा रही हैं। इकोनॉमिक इंडडिपेंडेंस की वजह से टेंप्टेशंस बहुत ज्यादा बढ़ गई हैं। इसलिए शादियां शेकी हो रही हैं। औरतों में एम्पावरमेंट आ गई है। अगर थोड़ा बैलेंस रखें और रिलेशनशिप में गिव ऐंड टेक को महत्वपूर्ण समझें तो सब ठीक रहता है। मैं कंप्रोमाइज के लिए तो नहीं कहूंगी, लेकिन हमें यह मानना ही होगा कि औरत को थोड़ा ज्यादा करना है। हमें घर, बच्चे, पति और काम को भी संभालना है। हमें मल्टीटास्क करना है। यह हमारी क्वालिटी भी है। मर्द शायद हमारी तरह मल्टीटास्क नहीं कर सकते। हम थोड़ा बैलेंस रखें तो सब ठीक ही रहेगा।

रियल गौतमी और रील लाइफ की स्नेहा माथुर में क्या समानताएं हैं?

हां, बहुत समानता है। मैंने जो भी रोल आज तक किए हैं, उसमें अपने आपको ढालने की कोशिश की है, क्योंकि जब मैंने ऐसा किया है तो वह भूमिका मेरे लिए सहज हो गई। नेचुरल हो गई। मैं आसानी से सीन्सकर पाई। स्नेहा माथुर के रोल के लिए भी मैंने कुछ अलग नहीं सोचा। जैसी आम जिंदगी में हूं वैसे ही ढालने की कोशिश की है। सीन में जब मैं बच्चों के साथ होती हूं तो ठीक वैसे ही होती हूं जैसे घर में अपने बच्चों के साथ होती हूं। यहां तीन बेटियां हैं और घर में दो बच्चे हैं तो सेट को भी घर की तरह ही महसूस करती हूं। अगर आप सीरियल देखेंगी तो आपको लगेगा कि अरे हम भी यही करते हैं घर पर। मेरी कोशिश होती है कि मैं कैरेक्टर को नेचुरल कर दूं। रियल फील करती हूं, रील के सीन्स में भी।

क्या कहना चाहेंगी पाठिकाओं से?

आपके अपने विजन हैं आपकी अपनी एंबीशंस है उन्हें शादी और बच्चों के बाद भी मत छोड़िए। ड्रीम्स और विजन को फुलफिल करना जरूरी है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि आप सब कुछ त्याग करें या समझौता करें। बस थोड़ा सा बैलेंस करें। तरक्की जरूर मिलेगी।

यशा माथुर

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