यहां गाय मां है, आस्था है, भक्ति है

जागरण संवाददाता, राउरकेला : गो सेवा अगर व्रत है तो इस व्रत का पालन राउरकेला की वेदव्यास गो

By Edited By: Publish:Fri, 12 Aug 2016 02:53 AM (IST) Updated:Fri, 12 Aug 2016 02:53 AM (IST)
यहां गाय मां है, आस्था है, भक्ति है

जागरण संवाददाता, राउरकेला : गो सेवा अगर व्रत है तो इस व्रत का पालन राउरकेला की वेदव्यास गोशाला पूरी आस्था के साथ कर रही है। श्री वेदव्यास गोशाला में दान के पैसे से बीमार व बूढ़ी गाय और गो वंश की सेवा हो रही है। चार दशक के लंबे इतिहास में सामाजिक सहयोग से संचालित यह गोशाला गोवंश के संरक्षण-संवर्धन की नई मिसाल पेश कर रही है। गाय में देवी-देवताओं का वास होने के धार्मिक सिद्धांत पर आस्था रखने वाले गो भक्त इनकी सेवा के लिए दान करते रहे हैं। एक हजार से अधिक सदस्य व आजीवन सदस्य तथा दानदाताओं के सहयोग से वर्तमान में 628 वंश की सेवा हो रही है। गोशाला के सुव्यवस्थित संचालन में गृहस्थी परिवार के प्रमुख एव वेदव्यास गोशाला समिति के अध्यक्ष गणेश प्रसाद बगड़िया की महत्वपूर्ण भूमिका है। इस गोशाला में नये गोवंश के आगमन पर मिठाई बांटी जाती है। माहौल उत्सव सा होता है।

गौरवशाली रहा है इतिहास

वेदव्यास मंदिर के पुजारी गदाधर देहुरी ने आश्रम एवं गोशाला के लिए स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती को 1956 में 2.76 एकड़ जमीन दान में दी थी। इस जमीन पर गोशाला की स्थापना की गई।14 अप्रैल 1971 को ओसीएल इंडिया लिमिटेड के प्रमुख जयहरि डालमिया के हाथों इस गोशाला का उद्घाटन किया गया था। तब से इस गोशाला में बीमार, बूढ़ी एवं लावारिश गो वंशों की सेवा की जा रही है। वेदव्यास गोशाला समिति इस गोशाला का संचालन करती है। गोशाला की स्थापना के बाद से ही गो सेवकों के दान के पैसे से इसका संचालन हो रहा है। गोशाला समिति में एक हजार से अधिक गो-भक्त आजीवन सदस्यत बने हैं। वे अपनी इच्छा से गायों के लिए नगद व चेक में राशि तथा गो ग्रास, दाना आदि दान करते हैं। कोई सेवक गोशाला में गाय दान देता है तो उसकी सेवा के एवज में सालाना 11 हजार रुपये लिये जाते हैं। व्यापारी व व्यवसायी अपने घरों व प्रतिष्ठानों में दान पेटी रखे हैं। इसमें विभिन्न अवसर पर लोग गो सेवा के दिए स्वेच्छा से दान करते हैं। इस राशि की संग्रह भी गोशाला के लिए होती है। दानदाताओं मिलने वाली राशि व खर्च का पूरा हिसाब रखा जाता है। इतना ही नहीं इसका ऑडिट कर सरकार को रिपोर्ट भी जाती है। हर महीने औसत 10.70 लाख रुपये का खर्च आता है। विभिन्न श्रोत से मिली राशि इसके लिए कम पड़ती है, सक्रिय सदस्य स्वेच्छा से दान की राशि बढ़ाकर इसकी भरपाई करते हैं। इसमें गृहस्थी परिवार की अहम भूमिका होती है।

सात सौ गायों के लिए शेड

श्री वेदव्यास गोशाला परिसर में सात सौ गोवंश के लिए शेड का निर्माण किया गया है। इसके लिए गर्मी, बरसात और जाड़े के मौसम में गायों की रक्षा होती है। वर्तमान में इस गोशाला में 628 गोवंशों को रखा गया है। यहां दूध देने वाली, स्वस्थ, बीमार, बूढ़ी गाय एवं बछड़ों के लिए अलग-अलग शेड बनाये गये हैं। अधिकतर गायें लावारिस, बीमार एवं दुर्घटना में घायल होने के बाद गोशाला लाई गई हैं। सभी गोवंश एक साथ चारा खा सकें इसके लिए नांद बनाये गये हैं। गोशाला में गो वंश को नहीं बांधा जाता है, वे चारा खाने के बाद खुले मैदान में घूमते फिरते रहते हैं।

गायों को दिया जाता है दाना व चोकर

गोशाला में गोवंश को चारा के रूप में बिचाली, दाना, चोकर, पीसा हुआ मक्का, मूग चुन्नी, चना चुन्नी मिलाकर दिया जाता है। सप्ताह में केवल एक दिन यहां गुड़ खिलाने की व्यवस्था है। दान दाता गो सेवा के लिए स्वेच्छा से दाना, चोकर आदि गौशाला को दान करते हैं। गोसेवा के लिए लोगों में जागरूकता आने के साथ साथ दानदाताओं की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है।

बीमार गायों के इलाज के लिए दो चिकित्सक

गोशाला में बीमार व घायल गायों के इलाज के लिए दो पशु चिकित्सक डा. किशन केरकेटा व डा. इमेल टोप्पो हर दिन आते हैं। यहां चिकित्सा कक्ष बना है एवं विभिन्न प्रकार की दवा रखी जाती है। बीमार व घायल गायों को विभिन्न क्षेत्रों से गोशाला तक लाने के लिए विशेष वाहन की व्यवस्था है। गोवंश की देखभाल के लिए 35 श्रमिक भी नियोजित हैं,जिन्हें गोशाला से पारिश्रमिक दी जाती है। इलाज के लिए दान दाता ही दवा एवं पैसे देते हैं।

केवल आठ गायें देती हैं दूध

गोशाला में अधिकतर बूढ़ी, बीमार व घायल गायें हैं। जिनका दूध नहीं होता है। केवल आठ गायें हैं जिनसे हर दिन 14 से 15 किलो दूध मिलता है। गोशाला की ओर से यह दूध गुरुकुल वैदिक आश्रम, वेदव्यास मंदिर ट्रस्ट को मंदिरों में पूजा के लिए दान कर दिया जाता है। बीमार व जरूरतमंद बस्ती इलाके के लोग भी कभी कभी गोशाला आकर मुफ्त में दूध लेकर जाते हैं। दूध से गोशाला को किसी प्रकार की आय नहीं होती है। केवल गोबर से हर साल 70 से 80 हजार की आय होती है। यहां से किसान अपने खेतों में उपयोग के लिए गोबर लेते हैं। बछड़े भी किसानों को ही कम कीमत पर बेचे जाते हैं।

मृत गायों की होती है अंत्येष्टि

वेदव्यास गोशाला में गो वंश की मृत्यु के बाद इनकी अंत्येष्टि की जाती है। परिवेश दूषित न हो इसके लिए वेदव्यास गोशाला में कार्यरत श्रमिक मृत गोवंश को गोशाला से दूर जंगल में कब्र खोद कर उसमें उसमें एक कुंतल से अधिक नमक डाल कर उसे दफनाने के साथ साथ अन्य कर्म भी करते हैं।

:::::::::::::::::::::गोशाला की स्थापना केवल गौ वंश की सेवा के लिए की जाती है। शहर में वृद्ध, लावारिस, घायल व बीमार हालत में पाये जाने वाले गौ वंश को निजी वाहन से गौशाला तक लाया जाता है। यहां उनका इलाज एवं सेवा होता है। गोशाला का उद्देश्य दूध बेचकर पैसा कमाना नहीं बल्कि सेवा का अवसर देना है।

-सुशील तिवारी, व्यवस्थापक, श्री वेदव्यास गोशाला

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