तीनों रथों पर सम्पन्न की गई महाप्रभु की अधरपणा नीति: चतुर्धा विग्रहों का होगा निलाद्री बिजे

पुरी में चतुर्धा विग्रहों का तीनों रथों पर अधरपणा नीति सम्पन्न की गई। 23 जुलाई शुक्रवार को महाप्रभु का नीलाद्री बिजे होगा इसके बाद महाप्रभु रत्न सिंहासन पर विराजमान हो जाएंगे। बुधवार को पुरी जगन्नाथ धाम में प्रभु जगन्नाथ प्रभु बलभद्र एवं देवि सुभद्रा जी का सोनावेश किया गया था।

By Babita KashyapEdited By: Publish:Fri, 23 Jul 2021 07:26 AM (IST) Updated:Fri, 23 Jul 2021 07:26 AM (IST)
तीनों रथों पर सम्पन्न की गई महाप्रभु की अधरपणा नीति: चतुर्धा विग्रहों का होगा निलाद्री बिजे
23 जुलाई शुक्रवार को महाप्रभु का नीलाद्री बिजे होगा

भुवनेश्वर/ पुरी, जागरण संवाददाता। जगन्नाथ धाम पुरी में चतुर्धा विग्रहों का तीनों रथों पर एक दिन पहले सोना वेश सम्पन्न होने के बाद गुरुवार को चतुर्धा विग्रहों की अधरपणा नीति सम्पन्न की गई है। इसके लिए श्री विग्रहों की अधर (होंंठ) की ऊंचाई तक अधर हांडी (मिट्टी पात्र) तैयार कर रखा गया। इसी पात्र में पानी, चीनी, कर्पूर, दूध औ छेना को मिलाकर अधरपणा तैयार किया गया। इस अधरपणा को तीनों रथों में तीन-तीन के हिसाब से 9 मिट्टी के पात्र में भगवान के मुख के सामने रखा गया।

इस अधरपणा को तैयार करने के लिए सिंहद्वार के सामने मौजूद छाउंणी मठ के कुएं से पाणिया सेवक पानी लाए। इसके बाद उक्त सामग्री से सुआर-महासुआर सेवकों ने अधरपड़ा तैयार किया। अधरपणा तैयार हो जाने के बाद पूजा पंडा सेवकों के द्वारा महाप्रभु को समर्पित किया गया। इसे अधरपणा नीति कहते हैं। इस नीति का उद्देश्य रथ के ऊपर विराजमान 33 करोड़ देवि देवता को संतुष्ट करना होता है, जिसके लिए अधरपणा नीति की जाती है। महाप्रभु की अधरपणा नीति सम्पन्न होने के बाद 23 जुलाई शुक्रवार को महाप्रभु का नीलाद्री बिजे होगा। शुक्रवार को महाप्रभु रत्न सिंहासन पर विराजमान हो जाएंगे।

गौरतलब है कि इससे एक दिन पहले यानी बुधवार को पुरी जगन्नाथ धाम में कड़ी सुरक्षा के बीच प्रभु जगन्नाथ, प्रभु बलभद्र एवं देवि सुभद्रा जी का सोनावेश किया गया है। तीनों रथों के ऊपर सिंहारी, पालिया, खुंटिया, भंडार मेकाप, चांगड़ा मेकाप सेवकों ने नाना प्रकार के आभूषण से चतुर्धा विग्रहों को सजाया। हालांकि रथयात्रा एवं बाहुड़ा यात्रा की ही तरह भक्तों को चतुर्धा विग्रहों के इस अनुपम वेश का साक्षात दर्शन करने की अनुमति नहीं थी ऐसे में भक्त अपने-अपने घरों में बैठकर टेलीविजन के माध्यम से महाप्रभु के सोना वेश का दर्शन किया।

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