आंदोलन से तबाह नेपाल का पर्यटन

नेपाल में भूकंप ने सैलानियों की राह पहले ही रोक दी थी। अब मधेशी आंदोलन ने रही सही कसर पूरी कर दी है। भिन्न-भिन्न भाषा, रंग-रूप और अलग-अलग देशों के पर्यटकों से गुलजार रहने वाला गोरखपुर-भैरहवां (नेपाल) मार्ग उजाड़ दिखता है।

By Murari sharanEdited By: Publish:Thu, 01 Oct 2015 05:53 PM (IST) Updated:Thu, 01 Oct 2015 06:02 PM (IST)
आंदोलन से तबाह नेपाल का पर्यटन

जंगल ट्रीट, (गोरखपुर-भैरहवां मार्ग)। नेपाल में भूकंप ने सैलानियों की राह पहले ही रोक दी थी। अब मधेशी आंदोलन ने रही सही कसर पूरी कर दी है। भिन्न-भिन्न भाषा, रंग-रूप और अलग-अलग देशों के पर्यटकों से गुलजार रहने वाला गोरखपुर-भैरहवां (नेपाल) मार्ग उजाड़ दिखता है।

नेपाल जाने वाले ट्रकों के सोनौली (महराजगंज) में रोके जाने से भारतीय सीमा में लगे लंबा काफिले से हंसी, खुशी, उमंग, उत्साह सब कुछ लुप्त है। आंदोलन के चलते नेपाल के सबसे खास पर्यटन उद्योग की कमर टूट गयी है और इस जख्म की टीस भारत में भी महसूस होने लगी है।

सोनौली की ओर से चलने पर गोरखपुर जिले की सीमा शुरू होते ही दायीं तरफ जंगल ट्रीट ढाबे में पर्यटकों के वाहनों के साथ ही परिवहन निगम की बसें रुकती हैं। रोजमर्रा का सफर करने वालों का आना-जाना चालू है। यहां नेपाली और भारतीय मूल के लोग मिलते हैं।

सभी संशय में हैं कि कैसे मंजिल पर पहंुचेंगे। एक दूसरे से मुश्किलों का हल पूछते हैं। नारायण घाट जा रहे राजू शाह और रमित रंगा कहते हैं कि हमारे मुल्क को किसी की नजर लग गयी है वरना ऐसी दिक्कतें कभी नहीं देखी।

रोजी रोटी पर संकट के बादल नेपाल में एक ओर बर्फ से ढकी पहाडि़यां हैं और दूसरी ओर देवस्थान। काठमांडू में पशुपति नाथ का मंदिर, होटलों में कसीनो, चकाचौंध भरी रातें, पोखरा का विहंगम दृश्य, भगवान बुद्ध की जन्मस्थली लुंबिनी, राष्ट्रीय उद्यान रायल चितवन जैसे अनेक पर्यटन स्थल हैं जो सैलानियों को लुभाते हैं।

भूकंप के बाद सैलानियों ने पोखरा और काठमांडू जाना कम कर दिया था। आंदोलन से मैदानी क्षेत्र का भी पर्यटन प्रभावित हो गया है। भैरहवां के तीन होटलों में कसीनो है जहां उप्र के अलावा कई राज्यों के लोग पहंुच रहे थे लेकिन डेढ़ माह से वहां भी जाना बंद है।

गाइड, टैक्सी, होटल और अन्य कारोबार भी प्रभावित हैं। सोनौली बार्डर पर टूरिस्ट गाइड विपिन जायसवाल, राजू सोनी, सरदार जसवीर सिंह और पलटू गाइड की रोजी पर ग्रहण लग गया है। सामान्य दिनों में देशी-विदेशी पर्यटकों की प्रतिदिन 18 से 20 गाडि़यां नेपाल की ओर जाती थी लेकिन सितंबर में पर्यटकों की कुल 16 गाडि़यां ही नेपाल गयीं।

पर्यटकों ने बदली दिशा गोरखपुर के ट्रेवेल लिंक के संचालक फैज अहमद गुड्डू बताते हैं कि भूकंप और नेपाल के संविधान ने पर्यटकों की दिशा बदल दी है। बौद्ध सर्किट के पर्यटकों के अलावा दशहरा, दीपावली की छुट्टियों में हर साल पूर्वी उत्तर प्रदेश के काफी लोग काठमांडू और पोखरा जाते थे। इस बार भी तैयारी थी लेकिन बहुतों ने अपनी बुकिंग निरस्त करा दी और अब वह गोवा, दार्जिलिंग, रामेश्र्वरम और कुल्लू-मनाली जाने की तैयारी में हैं।

बौद्ध परिपथ का कारोबार मंदा बौद्ध परिपथ पर दुनिया भर के पर्यटक आते हैं। वह नेपाल में गौतमबुद्ध की जन्म स्थली लुंबिनी के अलावा उप्र के सिद्धार्थनगर में कपिलवस्तु, कुशीनगर, सारनाथ और बिहार के बोधगया जाते हैं।

इस परिपथ की वजह से 75 से 80 हजार विदेशी पर्यटक प्रतिवर्ष नेपाल से भारत और इतने ही भारत से नेपाल की ओर प्रवेश करते हैं। भूकंप के बाद इसमें 70 फीसद गिरावट आयी। इससे कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुआ। कुशीनगर में बुद्ध की निर्वाण स्थली होने से यहां पर्यटकों की रुझान रहता है। कुशीनगर में तीन थ्री स्टार होटल हैं जहां बौद्ध अनुयायियों का आगमन होता है।

गोरखपुर के क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी अरविन्द कुमार राय बताते हैं कि जहां औसत इन होटलों से प्रतिमाह एक से डेढ़ लाख रुपये राजस्व वसूली होती थी वहीं अब 12 से 15 हजार कर मिल पा रहा है। जब सरकार के राजस्व को इतनी क्षति हुई तो होटल कारोबार और उससे जुड़े लोगों को कितनी क्षति हुई होगी।

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