संयुक्त राष्ट्र का दावा- बजता रहेगा सेवा क्षेत्र में भारत का डंका

सेवा क्षेत्र में भारत का स्वर्ण युग जल्द खत्म होने वाला नहीं है। इस क्षेत्र में भारत का डंका 2050 तक बजने की उम्मीद है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Publish:Thu, 28 Apr 2016 04:40 AM (IST) Updated:Thu, 28 Apr 2016 05:10 AM (IST)
संयुक्त राष्ट्र का दावा- बजता रहेगा सेवा क्षेत्र में भारत का डंका

संयुक्त राष्ट्र। सेवा क्षेत्र में भारत का स्वर्ण युग जल्द खत्म होने वाला नहीं है। इस क्षेत्र में भारत का डंका 2050 तक बजने की उम्मीद है। इस दौरान एशिया-प्रशांत क्षेत्र में एक अरब से ज्यादा लोग नौकरियों के लिए तैयार होंगे जिनमें से ज्यादातर भारत के होंगे। यह बात संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की रिपोर्ट में कही गई है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों में इस समय काम करने वाली उम्र के सबसे ज्यादा लोग हैं। इन देशों में 68 प्रतिशत लोग नौकरी करने की उम्र में हैं जबकि 32 प्रतिशत उन पर आश्रित हैं। सन 2050 तक इस इलाके की जनसंख्या बढ़कर 4.84 अरब होने की संभावना है। पूरी दुनिया की नौकरियों में 58 प्रतिशत लोग इन्हीं देशों के होंगे। इन देशों के हिस्से में आई नौकरियों व कामकाज में चीन और भारत का सन 2015 में 62 प्रतिशत हिस्सा रहा। चीन में काम करने वालों की संख्या 100 करोड़ और भारत में इन कामगारों की संख्या 86 करोड़ है।

यूएनडीपी के मुख्य अर्थशास्त्री थंगावेल पलनिवेल के अनुसार बड़ी आबादी के काम करने और उनके कर देने या बचाने से पूरे देश की अर्थव्यवस्था को लाभ होता है। ऐसे देशों में स्वास्थ्य सुविधा, पढ़ाई, ऊर्जा परियोजनाओं, आधारभूत संरचना और भवन निर्माण की परियोजनाओं के लिए ज्यादा धन मिल पाता है। रिपोर्ट के अनुसार चीन में कामगारों की संख्या में अब कमी आनी शुरू हो गई है जबकि भारत में यह संख्या साल दर साल बढ़ रही है। सन 2050 भारत में कामगारों की संख्या बढ़कर 110 करोड़ होने की संभावना है। 2055 तक भारत दुनिया में सर्वाधिक नौकरियां पाने वाला देश हो जाएगा। अनुमान है कि यह संख्या 160 करोड़ होगी। दक्षिण एशिया में जितने कामकाजी हैं, उतनेदुनिया के किसी अन्य हिस्से में नहीं हैं।

लेकिन सबको नहीं मिलेगी नौकरी
भारत में काम करने लायक लोग भले ही खड़े हो जाएं लेकिन सभी को नौकरी मिलना पक्का नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार सन 1991 से 2013 के बीच भारत में काम करने के योग्य लोगों की संख्या 30 करोड़ थी लेकिन नौकरी पा सके उनमें से आधे लोग। चीन में स्थिति थोड़ी अलग है। वहां पर काम करने वालों को भारत की तुलना में ज्यादा काम मिलता है।

सस्ता श्रम बड़ी समस्या
एशिया-प्रशांत के देशों में सस्ता श्रम एक बड़ी समस्या है। रिपोर्ट के अनुसार भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश में काम करने वाले 80 फीसद लोग 260 रुपये प्रतिदिन से कम वेतन या मजदूरी पाते हैं। यह इन देशों की गरीबी की एक बड़ी वजह भी है।

पढ़ेंः ओला ने 48 शहरों में माइक्रो सर्विस का विस्तार किया

chat bot
आपका साथी