यमुना के भगीरथ बन जाओ

आगरा, [जितेंद्र शर्मा]। यमुना के लिए प्रदूषण कायम है, लेकिन अब आप भगीरथ बन जाओ सरकार। पर्यावरण संरक्षण की तमाम कसरतों के बाद भी कलुषित हो गई कालिंदी की उम्मीदें अब प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से जुड़ गई हैं। इसके लिए बस इतना भर करना है कि यमुना के हक को प्रदेश सरकार दिल्ली में दस्तक दे। पर्यटन उद्यमी और विशे

By Edited By: Publish:Thu, 27 Sep 2012 03:22 PM (IST) Updated:Thu, 27 Sep 2012 04:17 PM (IST)
यमुना के भगीरथ बन जाओ

आगरा, [जितेंद्र शर्मा]। यमुना के लिए प्रदूषण कायम है, लेकिन अब आप भगीरथ बन जाओ सरकार। पर्यावरण संरक्षण की तमाम कसरतों के बाद भी कलुषित हो गई कालिंदी की उम्मीदें अब प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से जुड़ गई हैं। इसके लिए बस इतना भर करना है कि यमुना के हक को प्रदेश सरकार दिल्ली में दस्तक दे। पर्यटन उद्यमी और विशेषज्ञ ही नहीं, प्रदेश के मुखिया अखिलेश यादव ने स्वयं भी यमुना के लिए फिक्त्र जताई है। ताज के करीब यमुना में गिरते नालों को रोकने की हिदायत भी दी। वजह यही है कि आगरा में यमुना की लहरें पर्यटन को भी नई हिलोरें दे सकती हैं। ऐसे में जरूरत है कि यमुना के जख्मों का इलाज कोख से ही किया जाए।

वर्तमान में दिल्ली और उ.प्र. के बॉर्डर स्थित ओखला बैराज से यमुना में 101 क्यूसेक पानी छोड़ा जाना निर्धारित है। इतने पानी के साथ यमुना हरियाणा के कई शहरों की प्यास और औद्योगिक इकाइयों की जरूरतें पूरी करती हुई गोकुल

बैराज पहुंचती है। सिंचाई विभाग के आकड़े ही कहते हैं कि गोकुल बैराज से आगरा की ओर 1200 क्यूसेक डिस्चार्ज होता है। खुद समझ लें कि ओखला से बहे 101 क्यूसेक पानी में से यहा कितना बचा होगा। फिर गोकुल से 1200 क्यूसेक पानी कैसे छोड़ा जा सकता है। अब कागजी रिकॉर्ड कुछ भी कहें, लेकिन हकीकत यह है कि गोकुल के अपस्ट्रीम पर हरनाल एस्केप से मिल रहे मात्र 80-90 क्यूसेक गंगाजल (आवंटन 150 क्यूसेक का है) को हरियाणा, मथुरा, वृंदावन, गोकुल आदि के नालों में मिलाकर आगरा के हिस्से में करीब 600 क्यूसेक पानी यमुना में छोड़ा जा रहा है। ऐसे में जरूरत है कि प्रदेश सरकार केंद्र सरकार के सामने आकड़े पेश कर यमुना के लिए यूपी के हक का पानी मागे।

तलहटी में पहुंची योजनाओं को निकालो

कालिंदी के जख्म भरने को जापानी पद्धति अपनाने की बात हुई थी। अक्टूबर 2011 में तय हुआ था कि यमुना को शुद्ध जल से लबालब करने के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लाटों के साथ ही बासों के जाल लगाकर प्रदूषण रोका जाएगा। साथ ही तटीय क्षेत्रों में खाली पड़ी जमीन पर चंडीगढ़ के रॉक गार्डन की तर्ज पर जेन गार्डन योजना पर भी अध्ययन होगा। योजना के तहत यमुना किनारे पड़े खाली स्थान और इसमें समाने वाले नालों के किनारे उद्यान विकसित किए जाने हैं। विशेषज्ञों का दावा था कि तीन से चार साल के भीतर इसका असर दिखने लगेगा। जापानी टीम के जिन सदस्यों ने प्रोजेक्ट के सिलसिले में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का अध्ययन किया, उसी का एक ग्रुप आगरा और वृंदावन में भी निरीक्षण कर जरूरत की जानकारिया ले गया। उसके बाद यह योजना तलहटी में डूब गई।

सूत्रों की मानें तो प्रोजेक्ट फाइल अब तक पर्यावरण मंत्रालय में पड़ी धूल खा रही है।

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