व्यर्थ की कवायद है अविश्वास प्रस्ताव, इससे सरकार का कुछ नहीं बिगड़ने वाला

माना जा रहा है कि टीडीपी का इरादा सिर्फ आंध्र प्रदेश के मतदाताओं को यह संदेश देना है कि उसका एकमात्र लक्ष्य प्रदेश के लोगों का व्यापक हित है।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Mon, 19 Mar 2018 10:49 AM (IST) Updated:Mon, 19 Mar 2018 10:49 AM (IST)
व्यर्थ की कवायद है अविश्वास प्रस्ताव, इससे सरकार का कुछ नहीं बिगड़ने वाला
व्यर्थ की कवायद है अविश्वास प्रस्ताव, इससे सरकार का कुछ नहीं बिगड़ने वाला

नई दिल्ली [शाहिद ए चौधरी]। तेलुगु देसम पार्टी (टीडीपी) द्वारा केंद्र सरकार और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी राजग से अलग होने के बाद पहले आंध्रप्रदेश से वाईएसआर कांग्रेस की ओर से लोकसभा सचिवालय को केंद्र सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया गया और उसके बाद टीडीपी ने भी ऐसी ही घोषणा कर दी। यह सोमवार यानी 19 मार्च, 2018 को संसद में पेश किया जाएगा। सवाल है कि इस अविश्वास प्रस्ताव का सरकार की सेहत पर क्या असर होगा? क्या इससे सरकार गिर जाएगी? क्या इससे सरकार संकट में आएगी? निश्चित रूप से ऐसा कुछ भी नहीं होगा। तो क्या इस कवायद से विपक्ष एकजुट होगा? हो सकता है इसकी कोशिश हो, लेकिन अगर अविश्वास प्रस्ताव की समूची कवायद को राजनीतिक नजरिये से देखें तो यह एक बेकार की नतीजारहित कवायद ही होगी। इससे न तो विपक्ष मजबूत होगा और न ही उसकी इस कवायद से विपक्षी एकता को कोई रचनात्मक ऊर्जा मिलेगी। उल्टे आशंका है कि इसे आम जनता के बीच भाजपा विपक्ष द्वारा सरकार को काम न करने देने के आरोप के रूप में भुनाने की कोशिश करे।

दरअसल पिछले कई महीनों से आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू सरकार पर दबाव डाल रहे थे कि आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाए। अगर सरकार ऐसा करती तो वे आगामी लोकसभा चुनाव में इसे अपनी उपलब्धि के रूप में पेश करते और टीडीपी इसका जन समर्थन के रूप में फायदा उठाने की कोशिश करती, लेकिन माना जा रहा है कि केंद्र सरकार का नेतृत्व कर रही भाजपा ने आंध्र प्रदेश के इस प्रस्ताव को दो वजहों से नहीं माना। एक तो वह दुविधाग्रस्त थी कि आगामी लोकसभा चुनाव के लिए तेलुगु देसम से गठबंधन किया जाए या वाईएसआर कांग्रेस के साथ। दूसरी बात यह थी कि केंद्र सरकार को डर है कि अगर वह चंद्रबाबू नायडू के दबाव में आ गई तो चुनावी साल के पहले कई राज्य विशेष दर्जे की मांग कर सकते हैं, जिसे देना सरकार के लिए संभव नहीं होगा। इस वजह से वह आंध्र प्रदेश को ऐसा दर्जा देकर बर्र के छत्ते में हाथ देना नहीं चाहती।

लेकिन टीडीपी इस मौके को अपने शहीद हो जाने के रूप में भुनाना चाहती थी। इसलिए उसने चार साल तक सत्ता में रहने के बाद आखिरकार उससे बाहर आ गई। अब टीडीपी आंध्र प्रदेश की दुहाई देकर सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव ला रही है और चाह रही है कि इसके जरिये विपक्ष को एकजुट करने की कवायद करे, जिसका अंतिम रूप से इरादा सिर्फ और सिर्फ आंध्र प्रदेश के मतदाताओं को यह संदेश देना है कि टीडीपी की राजनीति का एकमात्र लक्ष्य आंध्र प्रदेश के लोगों का व्यापक हित है। अब चूंकि आंध्र प्रदेश में उनके साथ कई दूसरी राजनीतिक पार्टियों का भी भविष्य दांव पर लगा हुआ है इसलिए वे इस अविश्वास प्रस्ताव के साथ कदम से कदम मिला रहे हैं। मोदी सरकार जिस किस्म की आक्रामक राजनीति का प्रदर्शन करती है, उसके चलते विपक्ष वैसे भी दबा-दबा सा रहता है, उसे पब्लिक के बीच कोई स्पेस ही नहीं हासिल हो पाता।

शायद यह कारण भी है कि इस अविश्वास प्रस्ताव को तुरंत कांग्रेस, सीपीएम, तृणमूल कांग्रेस जैसी पार्टियों का साथ मिल गया। लेकिन सवाल है क्या इसका कोई नतीजा निकलेगा? आंकड़ों के नजरिये से देखें तो इससे मोदी सरकार की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। जब तक टीडीपी राजग के साथ थी तो राजग के सांसदों की कुल संख्या 328 थी। अब चूंकि टीडीपी के 16 सांसद राजग छोड़ चुके हैं तो भी उनकी संख्या 312 है। जबकि मोदी सरकार को बने रहने के लिए कुल 268 सांसदों की ही जरूरत है। मोदी सरकार किस कदर सुरक्षित है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भाजपा के पास खुद अकेले 274 सांसद हैं, जो बहुमत से 5 ज्यादा हैं। इस तरह देखा जाए तो अगर एनडीए का हर सदस्य सरकार के खिलाफ हो जाए तो भी मोदी सरकार गिरने वाली नहीं है।

सवाल है ऐसे में इस कवायद का विपक्ष के लिए क्या फायदा होगा? क्या इससे विपक्षीय एकजुटता का हौसला बढ़ेगा, निश्चित रूप से नहीं, क्योंकि आम मतदाता भले भावुक होकर सोचता हो, लेकिन राजनीतिक पार्टियां तो हमेशा संख्याओं के समीकरण के हिसाब से ही सोचती हैं, इसलिए उन पर यह प्रक्रिया अचानक कुछ कर गुजरने के लिए भावनात्मक दबाव नहीं डालती। उल्टे इस कवायद का विपक्ष को यह नुकसान हो सकता है कि मोदी सरकार विपक्ष की इस गैर जरूरी एकता के विरुद्ध आम जनता की सहानुभूति हासिल कर ले। ऐसा बहुत संभव है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्ष की पूरी कवायद को यह कहकर प्रचारित करें कि मैं तो देश की तमाम परेशानियों को हटाना चाहता हूं, लेकिन विपक्ष तो सिर्फ मोदी को हटाना चाहता है।

विपक्ष की नजरों में देश के मतदाताओं द्वारा बहुमत देकर चुनी गई सरकार खटक रही है। इस तरह वह विपक्ष के सारे तमाशे को अपनी सरकार को काम न करने देने की कवायद बता सकते हैं। इसलिए विपक्ष को इस नतीजा रहित कवायद से कुछ हासिल नहीं होने जा रहा है। उल्टे डर है कहीं वह जनता की नजरों में इस बात को लेकर न गिर जाए कि विपक्ष सरकार को काम नहीं करने देना चाहता। इसलिए तेलुगु देसम पार्टी को भले सरकार के विरुद्ध इस गुस्से का फायदा मिले, लेकिन बाकी राजनीतिक पार्टियों को लेकर आम मतदाता यह भी सोच सकता है कि ये दल मोदी सरकार को काम नहीं करने देना चाहते हैं। इसका लब्बोलुआब यह है कि एक ऐसा अविश्वास प्रस्ताव जिससे तस्वीर जरा भी नहीं बदलने वाली हो, उसे लाने के लिए विपक्ष में इतनी होड़ क्यों मची है। अगर विपक्ष को कुछ करना ही है तो कुछ मूलभूत मुद्दों विशेषकर बेरोजगारी, कृषि समस्या और सामाजिक तानेबाने पर लटकते सांप्रदायिक संकट को लेकर पूरे देश में आंदोलन करना चाहिए, जिससे सरकार की असलियत और उसकी मंशा का खुलासा हो सके।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं) 

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