संसद हमला: जानें- आतंकियों ने क्‍यों चुना था संसद पर हमले के लिए 13 दिसंबर का दिन, कैसे हुआ पटाक्षेप

2001 Parliament Attack आतंकी चाहते थे कि वो संसद के सत्र में मौजूद अधिक से अधिक सांसदों को अपना निशाना बना सकें। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। उनकी इस गलती की सजा सुरक्षाकर्मियों ने उन्‍हें ढेर करके दी। उसके बाद संसद की सुरक्षा और बढ़ा दी गई।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Mon, 13 Dec 2021 10:14 AM (IST) Updated:Mon, 13 Dec 2021 12:31 PM (IST)
संसद हमला: जानें- आतंकियों ने क्‍यों चुना था संसद पर हमले के लिए 13 दिसंबर का दिन, कैसे हुआ पटाक्षेप
हमले के बाद संसद की सुरक्षा बढ़ा दी गई।

नई दिल्‍ली (जेएनएन)। दो दशक पहले भारत की संसद पर हुए हमले ने पूरे देश ही नहीं बल्कि दुनिया को झकझोड़ कर रख दिया था। पाकिस्‍तान स्थित आतंकी संगठन जैश ए मोहम्‍मद के आतंकियों द्वारा किए गए इस हमले सरकार और सुरक्षा एजेंसियों को इस बात पर सोचने के लिए मजबूर किया कि आखिर इनके लिए कौन सी पुख्‍ता रणनीति अपनाई जाए। दो दशक बाद भी पाकिस्‍तान में इस हमले का खाका खींचने वाले आतंकियों के मुखिया आजाद घूम रहे हैं।  

13 दिसंबर 2001 को जब सभी लोग अपने रोजमर्रा की दिनचर्या में मशगूल थे, तभी एक खबर ने सभी का ध्‍यान अपनी तरफ खींच लिया था। ये खबर संसद पर हुए हमले से जुड़ी थी। इसके बाद सभी की नजरें टीवी सेट पर आने वाली पलपल की खबर पर ही जमी रही थीं। पहली बार देश की संसद पर आतंकियों ने हमला किया था। इनसे निपटने संसद के सुरक्षाकर्मियों ने अपनी जिंदगी दांव पर लगा दी थी।

45 मिनट तक आतंकियों के साथ सुरक्षाकर्मियों की मुठभेड़ जारी रही और अंत में सभी आतंकियों को मार गिराया गया था। इस हमले को जैश ए मोहम्‍मद के पांच आतंकियों ने अंजाम दिया था। हमले के लिए संसद को यूं ही नहीं चुना गया था, बल्कि इसके पीछे आतंकी ये जताना चाहते थे कि वो कहीं भी कुछ भी करने की गलती कर सकते हैं। उन्‍हें ये नहीं पता था कि इस हमले में उनका क्‍या हाल होगा।

संसद पर हमला करने आए इन आतंकियों का मकसद संसद के मुख्‍य भवन में प्रवेश कर वहां मौजूद सांसदों को निशाना बनाना था, लेकिन इसमें वो कामयाब नहीं हो सके थे। सभी आतंकियों को सुरक्षाबलों ने संसद के बाहर ही ढेर कर दिया था। इस हमले में दिल्ली पुलिस के पांच जवान, सीआरपीएफ की एक महिला कांस्टेबल और संसद के दो गार्ड भी शहीद हो गए थे। इसके अलावा कुल 16 जवान भी घायल हुए थे।

जिस दिन इस हमले को अंजाम दिया गया उस वक्‍त संसद सत्र चल रहा था और अधिकतर सांसद सदन में मौजूद थे। उस दिन संसद में ताबूत घोटाला को लेकर हंगामा चल रहा था। इसकी वजह से कुछ देर के लिए संसद के दोनों ही सदनों को स्‍थगित करना पड़ा था। पीएम अटल बिहारी वाजपेयी और और लोकसभा में विपक्ष की नेता सोनिया गांधी भी हमले से पहले अपने आवास के लिए निकल चुके थे। हालांकि, तत्‍कालीन गृहमंत्री लाल कृष्‍ण आडवाणी संसद भवन में ही थे। 

कुछ देर बाद ही जैश के आतंकी सफेद एंबेसडर कार से तेजी से संसद भवन की तरफ आए। इस कार पर गृह मंत्रालय  का स्‍टीकर भी लगा था। ये गाड़ी संसद के मेन एंट्रेंस पर लगे बैरिकेड को तोड़ती हुई करीब 11 बजकर 29 मिनट पर संसद के प्रांगण में पहुंची। कार में से निकलते ही सभी पांच आतंकियों ने एके-47 से गोलियों की बौछार शुरू कर दी। संसद में मौजूद सांसदों और दूसरे कर्मियों को उस वक्‍त ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई पटाखे छोड़ रहा था, लेकिन जल्‍द ही सभी असलियत का अंदाजा हो गया था। सुरक्षाकर्मियों ने तुरंत मोर्चा संभाला और सदन में एंट्री का गेट बंद कर दिया। आमने-सामने की मुठभेड़ में सभी आतंकियों को मार गिराया गया। 

इस हमले के साजिश रचने वाले मुख्य आरोपी अफजल गुरु को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया उसने पाकिस्तान में आतंकी ट्रेनिंग भी ली थी। 2002 में दिल्‍ली हाईकोर्ट और 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने उसको फांसी की सजा सुनाई। तत्‍कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा उसकी दया याचिका खारिज किए जाने के बाद 9 फरवरी 2013 की सुबह अफजल गुरू को दिल्ली के तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई। 

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