सीएम को इतना क्यों सताती है खांसी?

दिल्ली की सियासत की जंग जीतकर देश में अलग तरह की राजनीति के अगुवा बने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की खांसी आखिर खत्म क्यों नहीं हो रही है? लोगों के मन में यह सवाल कौंध रहा होगा। लंबे समय तक खांसी टीबी की बीमारी का कारण बनती है, लेकिन केजरीवाल को टीबी नहीं है। उन्हें ब्रांकोस्पॉज्म है। लंबे समय

By Edited By: Publish:Sat, 18 Jan 2014 10:18 AM (IST) Updated:Sat, 18 Jan 2014 01:16 PM (IST)
सीएम को इतना क्यों सताती है खांसी?

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली की सियासत की जंग जीतकर देश में अलग तरह की राजनीति के अगुवा बने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की खांसी आखिर खत्म क्यों नहीं हो रही है? लोगों के मन में यह सवाल कौंध रहा होगा। लंबे समय तक खांसी टीबी की बीमारी का कारण बनती है, लेकिन केजरीवाल को टीबी नहीं है। उन्हें ब्रांकोस्पॉज्म है। लंबे समय से खांसी के कारण फेफड़ों की नसें सिकुड़ने की बीमारी ब्रांकोस्पॉज्म है। इसका इलाज संभव है, लेकिन एलर्जी के कारण खासी जड़ से खत्म नहीं हो सकती। यह ताउम्र रहेगी। अरविंद केजरीवाल का इलाज कर रहे डॉक्टर विपिन मित्तल का कहना है कि केजरीवाल को बचपन से खांसी रहती है। इस वजह से उन्हें सांस की भी परेशानी है। इलाज के लिए वे आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति (नेचुरोपैथी) का सहारा ले चुके हैं। लेकिन फिर भी उनकी खांसी ठीक नहीं हुई। उन्हें धूल या प्रदूषण से होने वाले एलर्जिक संक्रमण के कारण खांसी होती है।

केजरीवाल का इलाज करने वाले एक अन्य डॉ. नरेश गुप्ता ने बताया कि केजरीवाल को टाइप-2 मधुमेह है। मुख्यमंत्री पद के शपथ ग्रहण समारोह के दिन ठंडी हवा चलने व ठंड में अधिक देर तक काम करने के कारण उनकी खांसी बढ़ गई थी। उन्होंने कहा कि खुद केजरीवाल बताते हैं कि अक्सर उन्हें खांसी हो जाती है, जो जल्दी ठीक नहीं होती। खांसी ठीक होने में 15 दिन से एक महीने का समय लगता है। इसके कारण छाती के अंदर फेफड़े में सांस की नसें सिकुड़ जाती हैं और इस वजह से सांस में रुकावट होने लगती है। कई बार छाती से सीटी जैसी आवाज आती है। उन्हें एंटी-बायोटिक दवा के अलावा नेबुलाइजर व इनहेलर की मदद से सांस की नली में सीधे दवा दी जाती है। मधुमेह के लिए इंसुलिन इंजेक्शन व अन्य दवाएं भी दी जा रही हैं। दमा (अस्थमा), न्यूमोनिया या हृदयाघात जैसी बीमारी होने पर ब्रांकोस्पॉज्म होता है। यदि बचपन में कोई बच्चा किसी कठोर वस्तु को निगल ले और वह फेफड़े में फंस जाए तो भी यह परेशानी आती है।

-डॉ. अतुल गोगिया, फिजीशियन, गंगाराम अस्पताल

बचपन में लंबे समय तक खांसी या वायरल न्यूमोनिया से ही ब्रांकोस्पॉजम जैसी परेशानी शुरू होती है। फेफड़े की नसें सिकुड़ने के कारण दमा होता है और सांस फूलने लगती है। जो घटती-बढ़ती रहती है। ठंड में अक्सर परेशानी बढ़ जाती है। इसमें घबराने जैसी कोई बात नहीं होती।

-डॉ. रणवीर गुलेरिया, प्रोफेसर, एम्स, पलमोनरी मेडिसन

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