Farmers Protest: हरियाणा और पंजाब से दिल्ली आ रहे किसान क्यों हैं परेशान? क्या हैं उनकी मांग? पढ़ें

किसानों के अलावा सरकार के अंदर भी इन बिल पर समर्थन हासिल नहीं हुआ। केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने इनके विरोध में कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया। पंजाब और हरियाणा समेत अन्य राज्यों से आए किसान भारी विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। दिल्ली की ओर अग्रसर।

By Nitin AroraEdited By: Publish:Thu, 26 Nov 2020 02:39 PM (IST) Updated:Thu, 26 Nov 2020 05:14 PM (IST)
Farmers Protest: हरियाणा और पंजाब से दिल्ली आ रहे किसान क्यों हैं परेशान? क्या हैं उनकी मांग? पढ़ें
दिल्ली की ओर कूच कर रहे किसानों की परेशानी।

नई दिल्ली, एएनआइ।इस साल जून के महीने में मोदी सरकार कृषि सुधार से जुड़े तीन अध्यादेश लेकर आई थी। हालांकि, सितंबर महीने में इन अध्यादेशों की जगह सरकार ने संसद में तीन बिल पेश किए। तीनों बिल पास हो गए और राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई। किसानों के अलावा सरकार के अंदर भी इन बिल पर समर्थन हासिल नहीं हुआ। केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने बिल के विरोध में कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया। वहीं, तब से लेकर अब तक पंजाब और हरियाण में लगातार विरोध प्रदर्शन देखने को मिला है। अब जहां दोनों राज्यों समेत उत्तर प्रदेश और देश के कई हिस्सों में कृषि से जुड़े विधेयकों को लेकर विरोध प्रदर्शन तेज हो गया और आज गुरुवार को भारत बंद का ऐलान किया गया। पंजाब-हरियाणा के किसान 'दिल्ली चलो' मार्च निकाल रहे हैं। दिल्ली को घेरने की तैयारी में किसानों को सीमा पर रोका जा रहा है। हालांकि, सवाल यहां यह उठता है कि दिल्ली की ओर कूच कर रहे किसान आखिर परेशान क्यों हैं और क्या है उनकी मांग?

तीनों बिलों के मुख्य प्रावधान और किसानों को कैसे है नुकसान?

1. कृषि उत्पाद व्यापार व वाणिज्य कानून-2020: राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के बाद इस कानून के तहत अब किसान देश के किसी भी हिस्से में अपना उत्पाद बेचने के लिए स्वतंत्र हैं। इससे पहले की फसल खरीद प्रणाली उनके प्रतिकूल थी।

किसानों के मुताबिक और इस बिल से जुड़ी बड़ी बातें

-इच्छा के अनुरूप उत्पाद को बेचने के लिए आजाद नहीं है।

-भंडारण की व्यवस्था नहीं है, इसलिए वे कीमत अच्छी होने का इंतजार नहीं कर सकते।

-खरीद में देरी पर एमएसपी से काफी कम कीमत पर फसलों को बेचने के लिए मजबूर हो जाते हैं।

-कमीशन एजेंट किसानों को खेती व निजी जरूरतों के लिए रुपये उधार देते हैं। औसतन हर एजेंट के साथ 50-100 किसान जुड़े होते हैं।

-अक्सर एजेंट बहुत कम कीमत पर फसल खरीदकर उसका भंडारण कर लेते हैं और अगले सीजन में उसकी एमएसपी पर बिक्री करते हैं।

-नए कानून से किसानों को ऐसे होगा लाभ अपने लिए बाजार का चुनाव कर सकते हैं।

-अपने या दूसरे राज्य में स्थित कोल्ड स्टोर, भंडारण गृह या प्रसंस्करण इकाइयों को कृषि उत्पाद बेच सकते हैं।

-फसलों की सीधी बिक्री से एजेंट को कमीशन नहीं देना होगा।

-न तो परिवहन शुल्क देना होगा न ही सेस या लेवी देनी होगी।

-इसके बाद मंडियों को ज्यादा प्रतिस्पर्धी होना होगा।

2. मूल्य आश्वासन व कृषि सेवा कानून-2020: इसके कानून बनने के बाद किसान अनुबंध के आधार पर खेती के लिए आजाद हो गए हैं। हालांकि, इन कारणों से हो रहा विरोध

-किसानों का कहना है कि फसल की कीमत तय करने व विवाद की स्थिति का बड़ी कंपनियां लाभ उठाने का प्रयास करेंगी।

-बड़ी कंपनियां छोटे किसानों के साथ समझौता नहीं करेंगी।

-मौजूदा अनुबंध कृषि का स्वरूप अलिखित है। फिलहाल निर्यात होने लायक आलू, गन्ना, कपास, चाय, कॉफी व फूलों के उत्पादन के लिए ही अनुबंध किया जाता है।

-कुछ राज्यों ने मौजूदा कृषि कानून के तहत अनुबंध कृषि के लिए नियम बनाए हैं।

3.आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून-2020: इस बिल के तहत अनाज, दलहन, तिलहन, खाने वाले तेल, प्याज व आलू को आवश्यक वस्तु की सूची से बाहर करने का प्रावधान है। इसके बाद युद्ध व प्राकृतिक आपदा जैसी आपात स्थितियों को छोड़कर भंडारण की कोई सीमा नहीं रह जाएगी।

क्यों हो रहा विरोध

-असामान्य स्थितियों के लिए कीमतें इतनी अधिक हैं कि उत्पादों को हासिल करना आम आदमी के बूते में नहीं होगा।

-आवश्यक खाद्य वस्तुओं के भंडारण की छूट से कॉरपोरेट फसलों की कीमत को कम कर सकते हैं।

सरकार-किसान-कमीशन एजेंट-राज्य सरकारें-राजनीतिक दल का क्या है कहना

सरकार कह रही है कि ये बिल किसानों की भलाई के लिए हैं। इनसे उनकी आमदनी बढ़ेगी। वहीं, किसानों का मानना है कि नए कानूनों से एमएसपी प्रणाली खत्म हो जाएगी। किसान वैधानिक गारंटी चाहते हैं। वहीं, कमीशन एजेंट का कहना है कि उनका एकाधिकार और बंधा हुआ मुनाफा खत्म हो जाएगा। उधर राज्य सरकारों का कहना था कि उन्हें मंडी शुल्क के रूप में मोटा राजस्व प्राप्त होता है। खासकर पंजाब, हरियाणा व पश्चिमी उत्तर प्रदेश क्षेत्र में। राजनीतिक दल कह रहे हैं कि राज्यों में सत्तारूढ़ दल मंडी शुल्क नहीं खोना चाहते हैं। दूसरी तरफ, कमीशन एजेंट प्रायोजित तरीके से सत्तारूढ़ व विपक्षी दलों के नेताओं से प्रदर्शन करवा रहे हैं।

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