हैरत में डाल रही आलू-प्‍याज की महंगाई, टमाटर तो रहता ही है लाल, आखिर क्‍या है कारण

लगातार बढ़ती आलू प्‍याज की कीमतों से हर कोई हलकान है। वहीं टमाटर की बात करें तो वो भी लाल हो रहा है। ऐसे में इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि नए कृषि कानून और पेट्रोल-डीजल की कीमत में हुई बढ़ोतरी की वजह से ऐसा हुआ है।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Tue, 10 Nov 2020 09:13 AM (IST) Updated:Tue, 10 Nov 2020 09:13 AM (IST)
हैरत में डाल रही आलू-प्‍याज की महंगाई, टमाटर तो रहता ही है लाल, आखिर क्‍या है कारण
आलू प्‍याज की बढ़ती कीमतों से हर कोई परेशान है।

उमेश चतुर्वेदी। इन दिनों आलू-प्याज और टमाटर की कीमतें आसमान छूने लगी हैं। अब तक शायद ही कभी आलू की कीमतें पचास रुपये के पार पहुंची हों। लेकिन इस बार प्याज के साथ आलू भी प्रतियोगिता करते नजर आ रहा है। टमाटर तो बारिश के दिनों में अक्सर लाल होता रहा है। इसलिए उसकी महंगाई से हैरत नहीं हुई है। आलू-प्याज की इस बार की महंगाई अचंभा में डाल रही है। क्योंकि कड़े लॉकडाउन के दौरान सब्जियों की कीमतें इतनी नीचे आ गई थीं कि किसान से लेकर कारोबारी तक हलकान थे। महाबंदी के दौरान जब प्रशासन ने सब्जियों की बिक्री के लिए कुछ राहत दी तो सब्जी बेचने वालों की बाढ़ आ गई। क्या गांव, क्या शहर, हर जगह घर के सामने ही सब्जियां बेहद सस्ती कीमतों पर मिलने लगी थीं।

कई ऐसी खबरें भी आईं, जब फिल्म और टीवी की दुनिया के चमकते सितारे तक ठेले पर सब्जियां बेचते दिखे। महाबंदी के दौरान चूंकि बहुत सारे लोगों के रोजगार ठप पड़ गए थे, लिहाजा इंटरनेट मीडिया पर एक अभियान भी चला कि ठेले पर सब्जियां बेचने वालों से बिना मोलभाव किए ही सब्जियां खरीदी जाएं, ताकि उनका भी रोजगार चल सके। उनके घर का भी चूल्हा नियमित रूप से जलता रह सके। उन दिनों स्थिति ऐसी थी कि दिल्ली जैसे महानगर में भी लगभग सभी सब्जियों की कीमतें कम हो गई थीं। आखिर ऐसा क्या हुआ कि जैसे-जैसे महाबंदी में ढील मिलने लगी, सब्जियों की कीमतें आसमान की ओर बढ़ने लगीं। जैसे-जैसे महाबंदी में ढील मिलती गई, अव्वल तो सब्जियों की कीमतें कम होनी चाहिए थीं या कम से कम उन्हें पहले की तरह ही होना चाहिए था। लेकिन उनमें बढ़ोतरी होने लगी।

एक तर्क दिया जा रहा है कि कीमतों में बढ़ोतरी की वजह कृषि से संबंधित तीन कानूनों में बदलाव व उनकी ढुलाई पर बढ़े खर्च के साथ ही बेमौसम बारिश से फसल खराब होने को बताया जा रहा है। यह ठीक है कि पेट्रोल और डीजल की घटती-बढ़ती कीमतों की वजह से ढुलाई खर्च बढ़ा है। लेकिन यह तर्क देते वक्त यह तथ्य भुला दिया जा रहा है कि महाबंदी के दौरान रेल-ट्रक आदि की परिवहन सेवा पूरी तरह ठप रहने के दौरान सब्जियों की ढुलाई में परेशानी महाबंदी में ढील की तुलना में ज्यादा थी। अव्वल तो उन दिनों ढुलाई का खर्च बढ़ना चाहिए था। तब तो सब्जियां महंगी होनी चाहिए थीं। लेकिन अब तो परिवहन सेवाएं बहाल हो गई हैं। इसलिए सब्जियों की महंगाई के लिए इस तर्क को तो खारिज ही कर दिया जाना चाहिए।

अब सवाल यह है कि क्या सचमुच हाल ही में बनाए गए तीन कृषि कानूनों की वजह से सब्जियों की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है। संसद ने हाल ही में कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन व सरलीकरण) विधेयक 2020 और कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 के साथ ही वस्तु अधिनियम (संशोधन) बिल 2020 पारित किया है। इन कानूनों को बनाते वक्त सरकार ने तर्क दिया था कि इससे किसानों को लाइसेंस, कोटा और परमिट राज से मुक्ति मिल जाएगी। लेकिन मौजूदा महंगाई के लिए तर्क दिया जा रहा है कि इन कानूनों का बिचौलियों ने दुरुपयोग किया है और चूंकि सरकार ने नए कानूनों के तहत आलू-प्याज को जरूरी वस्तुओं की सूची से निकाल दिया है, लिहाजा बिचौलियों ने आलू और प्याज की जमाखोरी कर दी।

आलोचकों का यहां तक तर्क है कि जैसे कीमतें बढ़ने लगीं, तब सरकार ने फिर से जमाखोरी पर रोक लगाने के लिए प्रावधान किए। लेकिन ऐसे तर्क वे ही लोग दे रहे हैं, जिन्होंने इन कानूनों को ठीक से पढ़ा नहीं है। कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य संवर्धन और सरलीकरण अधिनियम में इसका भी प्रावधान है कि जब सरकार को लगेगा कि जमाखोरी बढ़ रही है या फिर कृत्रिम तौर पर कीमतें बढ़ाने की कोशिशें होती हैं तो वह अपनी तरफ से कदम उठा सकती है।

आलू की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह कुछ और ही है। आलू का सबसे प्रमुख उत्पादक उत्तर प्रदेश है। इस साल पूर्वी उत्तर प्रदेश में जाते मानसून में इतनी बारिश हुई कि अभी तक आलू की नई फसल की बोआई शुरू नहीं हो पाई है। इस वजह से इन क्षेत्रों के कोल्ड स्टोरेज में आलू भरा पड़ा है। फिर भी कीमतें बढ़ रही हैं। वैसे इन इलाकों के किसान खुश हैं, क्योंकि उन्हें उनके आलू के बीज के लिए इस बार बड़ी कीमत मिल रही है।

दिल्ली में जो आलू 50 से लेकर 60 रुपये किलो बिक रहा है, पूर्वी यूपी में इसकी कीमत करीब 35 रुपये है। चूंकि बोआई नहीं हो पा रही है, लिहाजा किसान अभी अपने बीज को बाहर नहीं निकाल रहे हैं। कोल्ड स्टोरेज से किसान बीज तब निकालता है, जब उसका खेत बोआई के लिए तैयार हो जाता है। इससे भी उसकी कीमतें नियंत्रण में रहती हैं। इस मौसम में उत्तराखंड और हिमाचल से भी आलू की फसल आती है। लेकिन इस साल नहीं आ रही है। आलू की बढ़ती कीमतों के लिए पिछले साल की तुलना में दस लाख टन कम पैदावार का भी तर्क दिया जा रहा है। लेकिन यह तर्क देने वाले भूल रहे हैं कि आलू का बड़ा हिस्सा थाइलैंड के रास्ते दक्षिण पूर्वी एशिया तक निर्यात होता है। जाहिर है कि निर्यात ज्यादा पैदावार का होता है। कीमतें बढ़ाने में सबसे बड़ा योगदान जमाखोरों का होता है। इन पर पर्याप्त निगरानी आवश्यक है।

(लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं)

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