क्या है 'हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ'? जानिए, इसका प्रयोग सबसे पहले किसने किया?

2003 से 2008 के दौरान देश की विकास दर औसतन 9 प्रतिशत के आस-पास रही।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sun, 11 Nov 2018 05:55 PM (IST) Updated:Sun, 11 Nov 2018 06:26 PM (IST)
क्या है 'हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ'? जानिए, इसका प्रयोग सबसे पहले किसने किया?
क्या है 'हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ'? जानिए, इसका प्रयोग सबसे पहले किसने किया?

हरिकिशन शर्मा, नई दिल्ली। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि 25 साल तक सात प्रतिशत औसत आर्थिक वृद्धि दर शानदार है, लेकिन कुछ अर्थो में यह नयी 'हिन्दू रेट ऑफ ग्रोथ' बन गयी है। भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में 'हिन्दू रेट ऑफ ग्रोथ' का मतलब क्या है? इस शब्दावली का प्रयोग सबसे पहले किसने किया? 'जागरण पाठशाला' के इस अंक में हम यही समझने का प्रयास करेंगे।

............................................. जागरण पाठशाला.........................................

'हिन्दू रेट ऑफ ग्रोथ' शब्दावली का आशय धर्म से नहीं बल्कि अर्थशास्त्र से है। अक्सर लेख और समाचारों इसका प्रयोग होता है। दरअसल 1947 में भारत आजाद हुआ तो देश की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर थी। अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान थी, व्यापक गरीबी थी और ढांचागत सुविधाओं का अभाव था। अगले तीन दशक (1951-52 से 1979-80 तक) विकास दर बेहद धीमी रही। इस अवधि में देश की औसत वार्षिक आर्थिक वृद्धि दर महज 3.5 प्रतिशत के आस-पास थी। यही वजह है कि सत्तर के दशक में जाने माने अर्थशास्त्री प्रोफेसर राज कृष्ण ने इस धीमी विकास दर को 'हिन्दू रेट ऑफ ग्रोथ' नाम दिया। प्रोफेसर राजकृष्ण ने 50 से 70 के दशक तक निम्न आर्थिक वृद्धि के लिए 'हिन्दू रेट ऑफ ग्रोथ' शब्दावली का इस्तेमाल किया था।

उन्होंने कहा कि कुछ भी कर लें, लेकिन हमारी विकास दर इतनी ही रहती है। प्रोफेसर राज कृष्ण हसमुख स्वभाव के थे और उन्होंने हसी-मजाक में यह बात कही थी। यह बात अलग है कि आज तक उनकी इस शब्दावली का व्यापक तौर पर इस्तेमाल हो रहा है।

वास्तव में उस दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था घरेलू बचत के बल पर चल रही थी क्योंकि निवेश का स्तर निम्न था। वहीं जनसंख्या बढ़ने की रफ्तार प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि से अधिक थी। इसलिए विकास दर भी धीमी थी और प्रति व्यक्ति आय बढ़ने की गति भी कम थी। वैसे इस फ्रेज को लेकर प्रोफेसर राजकृष्ण की आलोचना भी हुई। आलोचकों का कहना था कि निम्न विकास दर के लिए तत्कालीन सरकारों की समाजवादी नीतियां जिम्मेदार थीं।

बहरहाल 1991 में आर्थिक सुधार और उदारीकरण की शुरुआत के बाद देश की विकास दर 'हिन्दू रेट ऑफ ग्रोथ' की धीमी चाल को छोड़कर तेजी से बढ़ी। खासकर 2003 से 2008 के दौरान देश की विकास दर औसतन 9 प्रतिशत के आस-पास रही।

वित्त वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही में भारत की विकास दर 8.2 प्रतिशत रही है जो दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सर्वाधिक है। विकास दर के मामले में भारत ने चीन को भी पीछे छोड़ दिया है। 

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