ओमिक्रोन के विरुद्ध पूरी हो हमारी तैयारी, बूस्टर डोज और बच्चों के टीकाकरण में ना हो देरी

हांगकांग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने हाल ही में बताया है कि ओमिक्रोन मनुष्यों के बीच तेजी से फैलता है परंतु रोग की गंभीरता को कम दिखाता है। संक्रामक विषाणुओं में दीर्घकालिक आणविक विकास से ऐसे ही परिणाम प्राप्त होने की उम्मीद होती है।

By Neel RajputEdited By: Publish:Fri, 24 Dec 2021 02:47 PM (IST) Updated:Fri, 24 Dec 2021 02:47 PM (IST)
ओमिक्रोन के विरुद्ध पूरी हो हमारी तैयारी, बूस्टर डोज और बच्चों के टीकाकरण में ना हो देरी
दक्षिण अफ्रीका और कई यूरोपीय देशों के आंकड़े वहां पर इसकी वृद्धि दर दिखाते हैं

डा. यूसुफ अख्तर। कोरोना वायरस का एक नया वैरिएंट ओमिक्रोन पूरी दुनिया में फैलता जा रहा है। ऐसे में सबसे पहले यह समझना होगा कि हम इस विषाणु के ओमिक्रोन वैरिएंट के बारे में क्या जानते हैं? ओमिक्रोन में कोरोना विषाणु के अब तक के पाए गए किसी भी अन्य प्रतिरूप से अधिक म्युटेशन होता है। वुहान में सबसे पहले पाए गए मूल कोरोना विषाणु की तुलना में 50 से अधिक म्युटेशन इसमें होता है। इनमें से 32 म्युटेशन केवल स्पाइक प्रोटीन में पाए गए हैं, जो वायरस की सतह के पार और 10 म्युटेशन स्पाइक प्रोटीन के रिसेप्टर-बाइंडिंग डोमेन में पाए गए। स्पाइक प्रोटीन का यही भाग मानव कोशिकाओं पर पाए जाने वाले रिसेप्टर से मिल कर कोरोना विषाणु को मानव कोशिकाओं में प्रवेश कराता है और इसीलिए कोरोना विषाणु से बचाव के लिए अब तक बने सभी टीकों में इसी स्पाइक प्रोटीन के विरुद्ध बनने वाली एंटीबाडी की भूमिका महत्वपूर्ण है।

दक्षिण अफ्रीका और कई यूरोपीय देशों के आंकड़े वहां पर इसकी वृद्धि दर दिखाते हैं। यूरोप के अनेक देशों में इसका प्रसार डेल्टा वैरिएंट से कई गुना अधिक तेजी से हो रहा है। लेकिन अच्छी खबर यह है कि ओमिक्रोन से संक्रमितों को अस्पताल में भर्ती करने की नौबत अपेक्षाकृत कम आती है। हांगकांग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने हाल ही में बताया है कि ओमिक्रोन मनुष्यों के बीच तेजी से फैलता है, परंतु रोग की गंभीरता को कम दिखाता है। संक्रामक विषाणुओं में दीर्घकालिक आणविक विकास से ऐसे ही परिणाम प्राप्त होने की उम्मीद होती है। कम घातक रहते हुए विषाणु को अधिक संक्रामक बन जाने की क्षमता भविष्य में इस विषाणु की संतानों के अस्तित्व के पक्ष में है।

कई प्रयोगशाला अध्ययनों में यह दर्शाया गया है कि पूर्व में कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके लोग या जिन्होंने कोरोना रोधी टीके की दोनों डोज ले ली है, जब उनके रक्त से सीरम निकाल कर ओमिक्रोन विषाणु के साथ प्रयोग में मिलाया गया तो देखा गया कि सीरम में पाई जाने वाली एंटीबाडी विषाणु कणों को ठीक से बांध नहीं सकी। ऐसी भी रिपोर्ट आई है कि एक खास कोरोना रोधी टीके की प्रभावशीलता पिछले पांच महीनों में, विषाणु के डेल्टा वैरिएंट के मुकाबले 60 फीसद और ओमिक्रोन के मुकाबले लगभग 34 फीसद तक गिर जाती है। वहीं टीके की एक बूस्टर खुराक को डेल्टा के खिलाफ 95 प्रतिशत और ओमिक्रोन के खिलाफ लगभग 75 प्रतिशत अधिक प्रभावी बनाती है। निष्कर्ष यह है कि डेल्टा की तुलना में ओमिक्रोन पहले से संक्रमित हो चुके या टीका ले चुके लोगों में लगभग पांच गुना अधिक संक्रमण कर सकता है।

भारत की स्थिति : जुलाई 2021 तक, चौथे राष्ट्रीय सीरो सर्वे में 67.6 प्रतिशत भारतीयों में कोरोना वायरस के प्रति एंटीबाडी होने का अनुमान लगाया गया था। यह देखते हुए कि तब तक टीकाकरण का दायरा बहुत कम था, निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि इसका अधिकांश भाग प्राकृतिक संक्रमण से आया था। सवा अरब खुराकों वाले प्रभावशाली टीकाकरण के बावजूद, अभी तक लगभग 40 प्रतिशत वयस्क भारतीय आबादी ने दोनों डोज ली है और 59 प्रतिशत ने एक इसकी एक डोज ली है। वैश्विक आंकड़ों से पता चलता है कि अन्य रूपों के साथ पूर्व संक्रमण वाले लोगों में भी ओमिक्रोन से लड़ने की एक न्यूनतम क्षमता होती है। भारत को टीकाकरण की गति भी बढ़ानी चाहिए, ताकि अधिक से अधिक लोगों तक दो खुराक पहुंचाई जा सके। कोविशील्ड की दो खुराक के बीच के अंतर को 16 से 12 सप्ताह तक कम करने से इसमें और तेजी आएगी। भारत को तत्काल बूस्टर टीकाकरण और बच्चों के टीकाकरण करने की दिशा में स्पष्ट नीतियां बनानी चाहिए। किन टीकों का उपयोग किया जा सकता है, कितनी खुराक की आवश्यकता होगी, इन्हें कब दिया जाना चाहिए और किसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए?

भारत में दी जाने वाली अधिकांश खुराक कोविशील्ड की होती है, जो उन लोगों में बूस्टर खुराक के रूप में अच्छी तरह से काम नहीं करेगी, जिन्हें पहले ही इसकी दो खुराक मिल चुकी हैं। अन्य विकल्प क्या हैं? कोवैक्सिन का उपयोग उन लोगों के लिए बूस्टर के रूप में किया जा सकता है जिन्हें कोविशील्ड की दो खुराक दी गई हैं। इसके साथ ही जिन लोगों को कोवैक्सिन की दो खुराकें मिली हैं, उनको कोविशील्ड की बूस्टर खुराक दी जा सकती है। इसके अलावा डीएनए टीका और जाइकोव-डी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। भारत में दो प्रोटीन टीके उपलब्ध हैं जो बूस्टर के रूप में अच्छा काम कर सकते हैं।

सीरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया (एसआइआइ) द्वारा निर्मित कोवोवैक्स टीके ने नैदानिक परीक्षण के तीसरे चरण को पूरा कर लिया है। यह टीका इंडोनेशिया में स्वीकृत है और एसआइआइ ने इसे पांच करोड़ खुराकों का निर्यात किया है। काबरेवैक्स-ई का निर्माण हैदराबाद स्थित बायोलाजिकल-ई द्वारा बायलर कालेज आफ मेडिसिन एंड डायनावैक्स टेक्नोलाजीज (यूएसए) के साथ साझेदारी में किया गया है। दोनों टीके भारत में आपातकालीन उपयोग की मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं। बूस्टर के लिए एक नीति हर चीज की तरह साक्ष्य पर आधारित होनी चाहिए, भावना पर नहीं। वैश्विक आंकड़ों से पता चलता है कि बीमारी से सुरक्षा के लिए दो खुराक आवश्यक हैं और एक बूस्टर खुराक रोगसूचक (सिम्प्टोमैटिक) संक्रमण से आगे, जब अधिक गंभीर बीमारी होती है, तो यह उससे रक्षा करती है, जबकि हम स्थानीय आंकड़ों की प्रतीक्षा कर रहे हैं। वायरस के बदलते प्रतिरूप को देखते हुए हमें जल्द ही सभी के लिए बूस्टर डोज और बच्चों के टीकाकरण की तैयारी में देरी नहीं करनी चाहिए। विश्व के अन्य देशों में घटित हो रहे संक्रमण से हमें सीख लेनी चाहिए और पूरी तैयारी के साथ ओमिक्रोन से लड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए।

कोरोना वायरस के नए वैरिएंट ओमिक्रोन ने पिछले लगभग एक माह से कई देशों में तबाही मचा रखी है। अब तक लगभग 80 देशों में इसके संक्रमण का पता चला है। एक गणितीय माडल आधारित अध्ययन से विशेषज्ञों ने यह अनुमान लगाया है कि अगले वर्ष की पहली तिमाही में इंग्लैंड में इसका व्यापक दुष्प्रभाव सामने आ सकता है। इससे संबंधित अनेक वैश्विक खबरों ने भारत की चिंता भी बढ़ा दी है। ऐसे में इस वैरिएंट से बचाव के लिए हमें अपनी तैयारी को एक बार फिर से मजबूत बनाना होगा।

(असिस्टेंट प्रोफेसर, बायोटेक्नोलाजी विभाग, बीआर आंबेडकर विवि, लखनऊ)

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