बढ़ी यूपी भाजपा के कायाकल्प की आस

भाजपा को यूपी में हासिल एतिहासिक जीत ने अमित शाह को पार्टी में सर्वोच्च मुकाम तो दिलाया है लेकिन उनकी असल परीक्षा भी यूपी में माहौल बनाए रखने से ही होगी। लोकसभा चुनाव की कामयाबी को 2017 के विधानसभा मुकाबले में दोहराने से ही बात बनेगी। यूपी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सीधा जुड़ाव होने से

By Edited By: Publish:Wed, 09 Jul 2014 08:24 PM (IST) Updated:Wed, 09 Jul 2014 08:24 PM (IST)
बढ़ी यूपी भाजपा के कायाकल्प की आस

लखनऊ, राज्य ब्यूरो। भाजपा को यूपी में हासिल एतिहासिक जीत ने अमित शाह को पार्टी में सर्वोच्च मुकाम तो दिलाया है लेकिन उनकी असल परीक्षा भी यूपी में माहौल बनाए रखने से ही होगी। लोकसभा चुनाव की कामयाबी को 2017 के विधानसभा मुकाबले में दोहराने से ही बात बनेगी। यूपी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सीधा जुड़ाव होने से यहां संगठन की मजबूती शाह की प्राथमिकता में रहेगी।

बतौर प्रदेश प्रभारी करीब एक वर्ष के कार्यकाल में शाह स्थानीय नेताओं की थाह ले चुके हैं और मतदाताओं की नब्ज भी पहचानते हैं। जाहिर है अधिकार संपन्न हुए शाह प्रदेश संगठन के कायाकल्प के लिए अपने प्रयोग जारी रखेंगे ताकि भाजपा की आक्रामकता बनी रहे। बूथ तक संगठन का तंत्र मजबूत कराने में केवल समर्पित और सक्रिय कार्यकर्ताओं को तरजीह मिलेगी। शाह ने जिस तरह लोकसभा चुनाव में नामधारी नेताओं के बदले नए चेहरों को आगे कर प्रचार की मुहिम छेड़ी, उम्मीद है कि वह प्रयोग जारी रहेगा। संगठन के महामंत्री राकेश जैन के स्थान पर सुनील बंसल की तैनाती को इसी नजर से देखा जा रहा है। विद्यार्थी परिषद व छात्र संघ की राजनीति से जुडे़ रहे नेताओं को तरजीह मिलेगी। ऐसे में स्वतंत्रदेव सिंह, महेंद्र सिंह, देवेंद्र सिंह चौहान, पंकज सिंह, संतोष सिंह, दयाशंकर सिंह समीर सिंह, अनूप गुप्ता, अशोक कटारिया, अश्वनी त्यागी, अनुपमा जासवाल, सुनील द्विवेदी, मनोज मिश्र, बेबी रानी मौर्य, कौशलेंद्र सिंह, गोपाल टंडन व रविकांत गर्ग जैसे नाम चर्चा में हैं। लंबे भाषणों के बजाए व्यावहारिक सोच वाले आगे बढ़ेंगे। चुनाव में किए तकनीकी प्रयोग को संगठन में इस्तेमाल कर विस्तार लाभ लेंगे।

जातिगत समीकरण भी सधेंगे

लोकसभा चुनाव में पिछड़े व अतिपिछड़ों का मिला जबरदस्त समर्थन भाजपा के लिए संजीवनी बना। संगठन में पिछड़ों के अलावा दलित समाज को अतिरिक्त महत्व देने की उम्मीद लगा रहे राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि पुराने जातीय चेहरों को पार्टी अब और शायद ही मौका देगी। वोटों का समीकरण ध्यान में रखते हुए कुर्मी, कुशवाहा, मौर्य, सैनी पासी, कश्यप, निषाद, जाट, गुर्जर व लोधी समाज को जोड़े रखने के लिए नए नेताओं को उभारा जाएगा। सूत्रों का कहना है कि बदलते हालात में पूर्व प्रदेश अध्यक्षों में से शायद ही किसी की पहले जैसी बहार लौट सके ।

संगठनात्मक अनुशासन बढ़ेगा

भाजपा में अब अनुशासन की सख्ती होगी। शाह के साथ लोकसभा चुनाव में काम चुके भाजपाइयों को इसका बखूबी अहसास है। किस तरह कई बड़े नामधारी नेता हाशिए पर रहे और डर के मारे मुंह नहीं खोला। खेमेबाजी को बढ़ावा देने वाले संगठन में किनारे होंगे। बदलाव की इस बयार में आरएसएस का दबदबा बढ़ेगा। वरिष्ठ प्रचारक शिवप्रकाश का भाजपा में आना आंतरिक समीकरणों को प्रभावित करेगा। सूत्रों का कहना है कि संगठन में मंत्रियों की भूमिका नए सिरे से प्रभावी बनाई जाएगी। समन्वय समितियों को असरकारक बनाने की तैयारी है।

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