Tulsidas Jayanti 2020: सुरक्षित हैं गोस्वामी तुलसीदास के हाथों से टपके मानस मोती

Tulsidas Jayanti 2020 गोस्वामी तुलसीदास का जन्म सन 1511 में हुआ था। उनकी माता का नाम हुलसी और पिता का नाम आत्माराम दुबे था।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Mon, 27 Jul 2020 09:32 AM (IST) Updated:Mon, 27 Jul 2020 09:34 AM (IST)
Tulsidas Jayanti 2020: सुरक्षित हैं गोस्वामी तुलसीदास के हाथों से टपके मानस मोती
Tulsidas Jayanti 2020: सुरक्षित हैं गोस्वामी तुलसीदास के हाथों से टपके मानस मोती

रोहित तिवारी, चित्रकूट। Tulsidas Jayanti 2020 आज से 427 साल पहले गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना की थी, जिसकी मूल पांडुलिपि चित्रकूट से 35 किलोमीटर दूर उनके जन्मस्थान राजापुर (चित्रकूट) में सुरक्षित है। पांडुलिपि के अनेक पन्ने गायब हो चुके हैं। बचे हुए हिस्से को पुरातत्व विभाग ने संरक्षित कर दिया है। इस रामचरित मानस का दर्शन करने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।

हस्तलिखित पांडुलिपि के 170 पृष्ठ राजापुर स्थित तुलसी मंदिर में सुरक्षित: गोस्वामी तुलसीदास का जन्म सन 1511 में हुआ था। उनकी माता का नाम हुलसी और पिता का नाम आत्माराम दुबे था। बचपन में ही विद्वानों की शरण में आने के बाद उन्हें रामबोला कहा जाता था। गोस्वामी जी ने अयोध्या और काशी में अपने प्रवास के दौरान 1587 से रामचरित मानस के लेखन का काम किया था, जिसे पूरा करने में उन्हें दो वर्ष, सात माह और 26 दिन लगे। हस्तलिखित पांडुलिपि के 170 पृष्ठ राजापुर स्थित तुलसी मंदिर में सुरक्षित हैं। इनके पन्नों को तुलसीकालीन ही माना गया, इसीलिए पुरातत्व विभाग ने इनको लैमिनेशन करवाकर मंदिर के पुजारी रामाश्रय त्रिपाठी को सौंप दिया है।

पुजारी रामाश्रय त्रिपाठी कहते हैं कि कागज को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए इंतजाम किए गए हैं। चार-चार पेज करके पुरातत्व विभाग को सौंपा गया था और चार पृष्ठ जब सुरक्षित होकर आते थे तो बाकी दिए जाते थे। वह बताते हैं कि यह अयोध्या कांड की पांडुलिपि है। प्रत्येक पृष्ठ का आकार 11 गुणे पांच है। हर पृष्ठ पर श्री गणेशाय नम: और श्रीजानकी वल्लभो विजयते लिखा है। पुस्तक की सुरक्षा के लिए यहां हर वक्त पुलिस भी मौजूद रहती है।

रामघाट पर हनुमानजी ने गढ़ा था, तुलसीदास चंदन घिसैं... : गोस्वामी तुलसीदास ने अपने आराध्य श्रीराम की अयोध्या और काशी में वास किया, लेकिन दर्शन चित्रकूट के रामघाट में हुए। वह भी तोता रूप में हनुमान जी की मदद से। रामघाट पर वह दो बालकों को चंदन का तिलक लगा रहे थे। इसी बीच तोता रूपी हनुमानजी ने ‘चित्रकूट के घाट में भई संतन की भीड़...तुलसीदास चंदन घिसैं, तिलक देत रघुवीर’ चौपाई गढ़ी थी। तोते के मुख से यह चौपाई सुन तुलसीदास ने बालकों के रूप में खड़े भगवान राम और लक्ष्मण को पहचाना। भाव विभोर होकर अपने आराध्य के पैर पकड़ लिए। तब सिर्फ न श्रीराम और लक्ष्मण ने, बल्कि हनुमानजी ने भी वास्तविक रूप में उन्हें दर्शन दिए। ऐसी मान्यता है कि तुलसीदास ने रामचरित मानस के सात कांडों का लेखन काशी में किया। भगवान राम के दर्शन के लिए चित्रकूट आ गए थे। पर्णकुटी के बगल में एक गुफा में निवास स्थान बनाया था। आज यह स्थान तुलसी गुफा के नाम से प्रसिद्ध है। यहीं पर तोतामुखी हनुमान जी का भी मंदिर है। पर्यटन विभाग इन स्थल को विकसित कर रहा है।

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