दिल्ली विधानसभा चुनाव: चढ़ा सियासी पारा, बेजोड़ होगा मुकाबला

राजधानी में चुनावी बिगुल बज गया है। चुनाव आयोग द्वारा चार अन्य राज्यों के अलावा दिल्ली विधानसभा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के साथ ही सूबे के सियासी दलों की सरगर्मी भी बढ़ गई है। आगामी चार दिसंबर को दिल्ली के मतदाता शहर के कई सूरमाओं की किस्मत का फैसला करेंगे। इस बार का मुकाबला आम आदमी पार्टी [आप] के आने से और दिलचस्प होने के आसार हैं।

By Edited By: Publish:Sat, 05 Oct 2013 09:28 AM (IST) Updated:Sat, 05 Oct 2013 09:34 AM (IST)
दिल्ली विधानसभा चुनाव: चढ़ा सियासी पारा, बेजोड़ होगा मुकाबला

नई दिल्ली [अजय पांडेय]। राजधानी में चुनावी बिगुल बज गया है। चुनाव आयोग द्वारा चार अन्य राज्यों के अलावा दिल्ली विधानसभा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के साथ ही सूबे के सियासी दलों की सरगर्मी भी बढ़ गई है। आगामी चार दिसंबर को दिल्ली के मतदाता शहर के कई सूरमाओं की किस्मत का फैसला करेंगे। इस बार का मुकाबला आम आदमी पार्टी [आप] के आने से और दिलचस्प होने के आसार हैं।

दिल्ली चुनाव में भाजपा की सूची पर कांग्रेस की निगाह

इस चुनाव में जहां मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की लोकप्रियता की परीक्षा होनी है, वहीं भारतीय जनता पार्टी [भाजपा] के प्रदेश अध्यक्ष विजय गोयल के दमखम को भी कसौटी पर कसा जाना है। सबसे दिलचस्प यह देखना होगा कि अन्ना आंदोलन से सुर्खियां बटोर कर दिल्ली के सियासी अखाड़े में कूदे अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी कितना असर छोड़ पाती है। दिल्ली में अब तक जितने भी चुनाव हुए उनमें मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही होता आया है। तीसरी ताकत के तौर पर कभी जनता दल, तो कभी बहुजन समाज पार्टी [बसपा] दो-चार सीटों पर ही अपनी ताकत दिखा पाए हैं।

यह पहला मौका है जब पिछले कई माह से भ्रष्टाचार का मुद्दा समेत दिल्ली के लोगों से सीधे जुड़े जनहित के मामलों में जोर-शोर से आवाज उठाने वाले आम आदमी पार्टी के नेता कांग्रेस व भाजपा के जमे हुए खिलाड़ियों को चुनाव मैदान में चुनौती देने उतरेंगे। इस लिहाज से यह चुनाव बेजोड़ होगा।

दिल्ली के सियासी सफर पर एक नजर

17 मार्च, 1952 को दिल्ली राज्य विधानसभा का गठन किया गया। यह विधानसभा 10 अक्टूबर 1956 को भंग कर दी गई।

दस साल बाद वर्ष 1966 में मेट्रोपोलिटन काउंसिल गठित की गई। इसमें 56 चुने हुए तथा पांच मनोनीत सदस्य थे।

इस काउंसिल का सदस्य बनने के लिए राजनेताओं में चुनावी जंग हुआ करती थी।

वर्ष 1991 में संविधान में संशोधन कर संसद ने 70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा के गठन का मार्ग प्रशस्त किया।

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार, एक्ट 1991 के तहत गठित की गई।

संशोधन के बाद वर्ष 1993 में पहले चुनाव में मदनलाल खुराना की अगुवाई में भाजपा ने 70 में से 49 सीटें जीतकर दिल्ली में सरकार बनाई।

1993 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को महज 14 सीटों पर संतोष करना पड़ा था।

1998 के चुनाव में सियासी गणित उलट गया। भाजपा का गढ़ समझी जाने वाली राजधानी कांग्रेसी किले में तब्दील हो गई।

शीला दीक्षित के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 70 में से 51 सीटें जीतकर भाजपा को जबरदस्त झटका दिया।

1998 के चुनाव में भाजपा 15 सीटों पर सिमट गई।

उसके बाद से अब तक 15 साल बीत चुके हैं और भाजपा खोई सत्ता को हासिल करने में लगातार नाकाम रही है।

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