तंबाकू के सेवन से विश्व में हर साल 70 लाख से अधिक लोगों की मौत, पर्यावरण के लिए भी हानिकारक

Tobacco consumption कई रोगों की जड़ बने तंबाकू की खेती से लेकर उसके उत्पादों का निपटान पर्यावरण को बड़ी क्षति पहुंचाता है। तंबाकू उत्पाद अपनी निर्माण प्रक्रिया और उसके पश्चात भी बड़े पैमाने पर कार्बन डाईआक्साइड का उत्सर्जन करते हैं।

By TilakrajEdited By: Publish:Wed, 21 Sep 2022 03:07 PM (IST) Updated:Wed, 21 Sep 2022 03:07 PM (IST)
तंबाकू के सेवन से विश्व में हर साल 70 लाख से अधिक लोगों की मौत, पर्यावरण के लिए भी हानिकारक
पर्यावरण के लिए भी बेहद हानिकारक तंबाकू

नई दिल्‍ली, सुधीर कुमार। तंबाकू मानव स्वास्थ्य के लिए तो बेहद खतरनाक है, लेकिन इसकी खेती भी पर्यावरण के लिए उतनी ही विनाशकारी है। तमाम असाध्य रोग देने वाले तंबाकू की खेती से मृदा के अनुर्वर होने, वनोन्मूलन, वायु प्रदूषण और जैव विविधता के नष्ट होने का खतरा भी बढ़ जाता है। यानी तंबाकू मानव संसाधन और राष्ट्रीय आय के साथ-साथ बड़े पैमाने पर पारिस्थितिकीय क्षति के लिए उत्तरदायी है।

125 करोड़ लोग तंबाकू का करते हैं सेवन

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, विश्व में करीब 125 करोड़ लोग तंबाकू का सेवन करते हैं। इनमें 15 वर्ष से अधिक आयु के 27 करोड़ भारतीय भी शामिल हैं। चीन के बाद भारत तंबाकू का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता और उत्पादक देश भी है। तंबाकू के सेवन से विश्व में हर साल 70 लाख से अधिक लोगों की मौत होती है। भारत में तंबाकू से मरने वालों की संख्या साढ़े तेरह लाख प्रतिवर्ष है।

ग्लोबल वार्मिंग के लिए यह काफी हद तक जिम्मेदार

एक उत्पाद के रूप में तंबाकू बहुत अहितकारी है। खेतों में इसे उपजाने से लेकर उसके वितरण, खपत और उसके पश्चात कचरे के रूप में यह पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा है। तंबाकू की खेती को आर्थिक समृद्धि और गरीबी दूर करने का जरिया माना जाता है, लेकिन हर साल दो लाख हेक्टेयर जंगलों को तंबाकू की खेती के लिए समतल किया जाता है। यह 60 करोड़ पेड़ों के नष्ट होने के बराबर है। यही नहीं, इसकी खेती के लिए बड़ी मात्रा में पानी और ऊर्जा की भी खपत होती है। तंबाकू उत्पाद अपनी निर्माण प्रक्रिया और उसके पश्चात भी बड़े पैमाने पर कार्बन डाईआक्साइड का उत्सर्जन करते हैं। यह उद्योग हर साल आठ करोड़ टन कार्बन डाईआक्साइड का उत्सर्जन करता है। यानी ग्लोबल वार्मिंग के लिए यह काफी हद तक जिम्मेदार है।

मानव शरीर के लिए बेहद घाटक

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, तंबाकू की खेती में लगे श्रमिक रोजाना 50 सिगरेट के बराबर निकोटिन अवशोषित कर लेते हैं। सिगरेट के इस्तेमाल के बाद जब उसके फिल्टर को फेंका जाता है, तो उसमें मौजूद माइक्रोप्लास्टिक के अंश टूट-टूटकर मिट्टी में मिल जाते हैं, हवा में तैरते हैं या जलस्रोतों में घुल जाते हैं। इसके खतरनाक रसायन बड़ी आसानी से वहा, खाद्य पदार्थों और पेयजल के जरिये मानव शरीर में पहुंचकर आनुवांशिकी परिवर्तन, मस्तिष्क विकास और श्वसन तंत्र की समस्या उत्पन्न करते हैं।

पर्यावरण के लिए भी हानिकारक तंबाकू

हर साल करीब साढ़े चार ट्रिलियन सिगरेट फिल्टर समुद्रों, नदियों, सड़कों और पार्कों को प्रदूषित करते हैं। स्वाभाविक है कि उनकी सफाई में अतिरिक्त मानव श्रम की जरूरत पड़ती है। इसके अवशेष इन स्थानों के सौंदर्य पर भी ग्रहण लगाते हैं। ऐसे में आवश्यक है कि ऐसे उत्पादों के प्रयोग को हतोत्साहित किया जाए। यह मानव स्वास्थ्य ही नहीं, बल्कि पर्यावरण के लिए भी नुकसानदेह है।

(लेखक बीएचयू में शोधार्थी हैं)

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