आइए यहां जानें क्यों टीपू सुल्तान के इतिहास को लेकर इतना विवाद छिड़ा है?

मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने कहा है कि उनकी सरकार टीपू सुल्तान के इतिहास से जुड़ी हर चीज हटाने जा रही है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Fri, 01 Nov 2019 09:07 AM (IST) Updated:Fri, 01 Nov 2019 02:45 PM (IST)
आइए यहां जानें क्यों टीपू सुल्तान के इतिहास को लेकर इतना विवाद छिड़ा है?
आइए यहां जानें क्यों टीपू सुल्तान के इतिहास को लेकर इतना विवाद छिड़ा है?

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। कर्नाटक की सियासत में एक बार फिर टीपू सुल्तान को लेकर चर्चाएं गर्म हैं। मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने कहा है कि उनकी सरकार टीपू सुल्तान के इतिहास से जुड़ी हर चीज हटाने जा रही है। पाठ्यक्रम की किताबों से भी टीपू से जुड़ी सामग्री हटाने पर विचार किया जा रहा है। इससे पूर्व कांग्रेस की सरकार ने पूरे राज्य में 18वीं सदी के मैसूर के इस शासक की जयंती मनाई जाती थी। दूसरी सरकारों में उसकी महिमा के गीत गाए जाते थे। टीपू सुल्तान को लेकर भाजपा का नजरिया बिल्कुल अलग है। आइए यहां समझने की कोशिश करते हैं कि टीपू सुल्तान के इतिहास को लेकर इतना विवाद क्यों छिड़ा है?

जब जल उठा कोडगु

मुख्यमंत्री सिद्दरमैया ने वर्ष 2015 से राज्य स्तर पर टीपू सुल्तान जयंती मनाने की शुरुआत की थी। इसका भाजपा ने जमकर विरोध किया था और इसे सांप्रदायिक तनाव फैलाने वाला कदम बताते हुए वोटबैंक की राजनीति करार दिया था। इस समारोह के विरोध में कोडगु जिले में हिंसा शुरू हो गई थी जिसमें विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता समेत दो लोगों की मौत हो गई थे।

हिंदू विरोधी शासक की छवि

भाजपा टीपू सुल्तान को अत्याचारी और हिंदू विरोधी शासक बताती रही है। एक ऐसा राजा जिसने जबरन धर्मांतरण कराने के साथ मंदिरों को ध्वस्त किया। केरल-कर्नाटक की सीमा पर कोडगु वन क्षेत्र व केरल के कुछ हिस्सों में भी टीपू सुल्तान को नायक के रूप में नहीं देखा जाता है। दरअसल टीपू सुल्तान और उसके पिता हैदर अली की क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाएं काफी अधिक थीं। इसी के तहत मैसूर से बाहर के कई इलाकों पर भी कब्जा किया गया। मालाबार, कोझीकोड, त्रिशूर, कोडगु व कोच्चि पर विजय प्राप्त कर इन्हें मैसूर शासन के अधीन लाया गया। इन सभी स्थानों पर टीपू सुल्तान को एक रक्तपिपासु शासक के रूप में देखा जाता है जिसने शहरों व गांवों को जला दिया। सैकड़ों मंदिरों व चर्चों को जमींदोज कर हिंदुओं का धर्मांतरण कराया।

अब भाजपा टीपू के व्यक्तित्व के इसी पहलू को प्रचारित कर रही है ताकि इसी बहाने मजबूत राजनीतिक ध्रुवीकरण किया जा सके। भाजपा ने इस पर 2016-17 से ही काम करना शुरू कर दिया था क्योंकि 2018 में विधानसभा चुनाव होने थे ताकि तत्कालीन कांग्रेस सरकार के खिलाफ हिंदुओं की सशक्त गोलबंदी की जा सके। उस समय के मुख्यमंत्री अल्पसंख्यकों व पिछड़ा वर्ग को साथ लेकर चुनावी रण में विजय पताका फहराने की रणनीति पर काम कर रहे थे।

मैसूर के शेर की उपाधि

भाजपा से इतर सोच रखने वाले टीपू सुल्तान को मैसूर के शेर के रूप में चित्रित करते हैं जो निडर व बहादुर था, जिसने ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ डटकर संघर्ष किया। टीपू सैनिक हैदर अली का बेटा था जो अपनी योग्यता व काबिलियत के बल पर वाडयार शासन के तहत सेना में ऊंचे ओहदे तक गया। बाद में वह 1761 में मैसूर का शासक बना। टीपू सुल्तान का जन्म 1750 में हुआ और उसने 17 वर्ष की उम्र में ही पहला एंग्लो-मैसूर युद्ध लडा। दूसरे एंग्लो-मैसूर युद्ध के दौरान हैदर अली की मौत हो गई और टीपू सुल्तान ने 1782 में सत्ता संभाली। आम भारतीयों में टीपू की छवि एक साहसी योद्धा, कुशल प्रशासक व सैन्य रणनीतिकार के रूप में रही है जिसने अपने 17 वर्ष के शासनकाल में ईस्ट इंडिया कंपनी को सबसे कठिन चुनौती दी। टीपू ने 1767-99 के बीच पूरी बहादुरी से ईस्ट इंडिया कंपनी का चार बार सामना किया और गवर्नर जनरल कॉर्नवालिस और वेलेस्ली को नाकों चने चबवा दिए। चौथी जंग में टीपू की मौत हो गई। इसके बाद मैसूर ईस्ट इंडिया के अधीन हो गया।

यूरोपीय सेना की तर्ज पर काम

टीपू सुल्तान ने यूरोपियन सेना की तर्ज पर नई तकनीक का इस्तेमाल कर अपनी सेना को पुनर्गठित किया। टीपू की सेना में रॉकेट तक था। उसने कृषि क्षेत्र का विकास किया। नई भू राजस्व प्रणाली विकसित की। पुराने डैम को ठीक कराया तो सिंचाई के लिए आधारभूत संरचना तैयार की। मैसूर में चंदन, रेशम, चावल आदि का कारोबार होता था। इसे देखते हुए टीपू सुल्तान ने विदेश के साथ अपने क्षेत्र में 30 व्यापारिक केंद्र स्थापित किए थे।

सुल्तान एक सुर अनेक

टीपू के जीवन की सकारात्मक बातों से उसकी क्रूरता की कहानियां समाप्त नहीं होती हैं। टीपू एक ऐसा शासक था जिसके बारे में लोगों की अलग-अलग राय है। कांग्रेस व समाजवादी टीपू सुल्तान की राष्ट्रवादी छवि गढ़ते हैं क्योंकि उसने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जंग किया था तो भाजपा उसे हिंदुओं व ईसाइयों के जबरन धर्मांतरण के कारण अत्याचारी कट्टर मुस्लिम शासक के रूप में देखती है। टीपू ने फ्रांस के साथ मिलकर ईस्ट इंडिया का मुकाबला किया ताकि दक्कन व कर्नाटक की राजनीति को नियंत्रित करने की ब्रिटिश कोशिशों को नाकाम किया जा सके।

उसने कोडगु को अपने अधीन इसलिए किया ताकि मंगलौर बंदरगाह को अपने नियंत्रण में लिया जा सके। टीपू ने क्षेत्र में बिना किसी जाति-धर्म की परवाह किए हर जंग को लड़ा। उसकी सेना में हिंदू और मुस्लिम दोनों थे। जब उसने केरल में खून खराबा किया तो मरने वालों में मुसलमान भी बड़ी संख्या में थे। सिद्दरमैया की मानें तो यह कहना गलत होगा कि टीपू राष्ट्रवादी या धर्मनिरपेक्ष था। 18वीं सदी में ऐसी कोई विचारधारा ही नहीं थी। वहीं अगर इसके प्रमाण हैं कि टीपू ने मंदिरों को तोड़ा तो यह भी सच है कि उसकी ओर से मंदिरों तथा पुजारियों को दान व उपहार भी दिए गए। टीपू ने श्रृंगेरी मठ को संरक्षित किया।

यह भी पढ़ें:

कर्नाटक: टीपू सुल्तान की जयंती पर फिर से राजनीति शुरू, CM येदियुरप्पा ने दिया यह बड़ा बयान

chat bot
आपका साथी