सेटेलाइट कार्यक्रम में लगेगा स्वदेशी तड़का, मिसाइल भी पहुंचेगी ठिकाने पर

अब आइआइटी मंडी में स्वदेशी चिप बनेगी। इसरो के प्रोजेक्ट पर आइआइटी मंडी में काम शुरू हो गया है।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Publish:Fri, 31 Aug 2018 06:33 PM (IST) Updated:Fri, 31 Aug 2018 06:33 PM (IST)
सेटेलाइट कार्यक्रम में लगेगा स्वदेशी तड़का, मिसाइल भी पहुंचेगी ठिकाने पर
सेटेलाइट कार्यक्रम में लगेगा स्वदेशी तड़का, मिसाइल भी पहुंचेगी ठिकाने पर

हंसराज सैनी, मंडी। बड़े और ताकतवर देश अब भारत को उस चिप के लिए शर्ते नहीं गिनवाएंगे जो सेटेलाइट को दिशा दिखाती है और मिसाइल को लक्ष्य। इसरो को इसके लिए अब अन्य देशों पर निर्भर रह तीन से चार साल तक का इंतजार नहीं करना होगा। यह मजबूरी भी नहीं होगी कि चिप चाहिए तो सेटेलाइट का एक हिस्सा भी खरीदो। अब आइआइटी मंडी में स्वदेशी चिप बनेगी। इसरो के प्रोजेक्ट पर आइआइटी मंडी में काम शुरू हो गया है।

दरअसल, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन, इसरो) के लिए एएसआइसी चिप अब मेक इन इंडिया के तहत भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) मंडी, हिमाचल प्रदेश में बनेंगी। इसरो ने स्कूल ऑफ कंप्यूटिंग एंड इलेक्टि्रकल इंजीनियरिंग को आधुनिक तकनीक पर आधारित स्वदेशी चिप बनाने के लिए प्रोजेक्ट सौंपा है। आइआइटी के विशेषज्ञ डॉ. सतिंद्र कुमार शर्मा, डॉ. हितेश श्रीमाली व डॉ. राहुल श्रेष्ठा ने चिप पर काम शुरू कर दिया है।

भारतीय चिप की जरूरत क्यों 
-एएसआइसी चिप के लिए इसरो विदेशी कंपनियों पर निर्भर है

-भारत आगे न निकल जाए, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान, रूस व चीन जैसे देश कई तरह का अड़चने डालते हैं

-चिप मिलने में तीन से चार साल तक का समय लगता है

-कई बार विदेशी कंपनियां चिप के बजाय सेटेलाइट का पूरा हिस्सा जबरन बेचती हैं

क्या है एएसआइसी चिप 
एप्लिकेशन स्पेशल इंटीग्रेटिड सर्किट (एएसआइसी) एक माइक्रो चिप है। यह सिस्टम को ऑन करने व उसे दिशा दिखाने का काम करती है। सेटेलाइट को लांच करने में एएसआइसी चिप की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसमें एंप्लीफायर, फिल्टर व एनालॉग डिजिटल सर्किट होते हैं, जो जाइरोस्कोप में लगे सेंसर को संचालित कर सेटेलाइट को सही दिशा दिखा उसे तय केंद्र में स्थापित करने में मदद करते हैं। मिसाइल अपने लक्ष्य पर खरी उतरे उसमें भी एएसआइसी चिप की अहम भूमिका रहती है। जाइरोस्कोप एक दूरदर्शी यंत्र है, जो वस्तु की कोणीय स्थिति (झुकाव) को मापने के काम आता है।

बहुत ही छोटी लेकिन बड़े काम की 
-180 नैनोमीटर की चिप बनेगी शुरुआती चरण में

-65 नैनोमीटर तक होगा बाद में आकार

-चिप की डिजाइन से लेकर फैब्रीकेशन तक, सब मंडी में होगा

-20 नैनो मीटर की चिप अमेरिकी कंपनी इंटेल के लिए पहले ही बना चुकी है यह टीम

वर्जन:-

भारतीय उपग्रह कार्यक्रम में आएगी क्रांति
'मेक इंन इंडिया के तहत आइआइटी मंडी में एएसआइसी चिप का निर्माण होगा। चिप के लिए विदेशी निर्भरता खत्म हो जाएगी। विदेश से मिलने वाली चिप के मुकाबले स्वेदशी चिप सस्ती व ज्यादा कारगर होगी। इस पर शोध शुरू हो गया है। चिप बनने से सेटेलाइट के क्षेत्र में देश में एक नई क्त्रांति आएगी। मंगल व अन्य ग्रह तक पहुंचने वाले सेटेलाइट बनाने में भी आसानी होगी।'

-डॉ. सतिंद्र कुमार शर्मा, एसोशिएट प्रोफेसर, आइआइटी मंडी

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