सुप्रीम कोर्ट तय करेगा, क्या 97वां संविधान संशोधन राज्यों को सहकारी समितियों पर कानून बनाने से रोकता है

पीठ ने कहा कि सरकार ने वास्तव में जो किया है वह यह है कि सहकारी समिति के संबंध में कानून बनाने की राज्यों की शक्ति अब विशिष्ट नहीं रहीं। उसने कहा इस मामले में थोड़ा सा भी हस्तक्षेप राज्यों की शक्ति को विशिष्ट नहीं रहने देगा।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Thu, 08 Jul 2021 12:36 AM (IST) Updated:Thu, 08 Jul 2021 12:36 AM (IST)
सुप्रीम कोर्ट तय करेगा, क्या 97वां संविधान संशोधन राज्यों को सहकारी समितियों पर कानून बनाने से रोकता है
सरकार ने कहा, संशोधन सहकारी समितियों के प्रबंधन में एकरूपता लाने के लिए किया गया

नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इस बात की समीक्षा के लिए सुनवाई शुरू की कि क्या संविधान में 97वें संशोधन ने राज्यों को सहकारी समितियों के प्रबंधन के लिए कानून बनाने की उनकी विशेष शक्ति से वंचित कर दिया है।

सहकारिता को संरक्षण देने के लिए 2011 में संसद में संविधान संशोधन किया गया था

देश में सहकारी समितियों के प्रभावी प्रबंधन से संबंधित मुद्दों से निपटने वाले संविधान के 97वें संशोधन को दिसंबर, 2011 में संसद ने पारित किया था और यह 15 फरवरी, 2012 से लागू हुआ था। संविधान में परिवर्तन के तहत सहकारिता को संरक्षण देने के लिए अनुच्छेद 19(1)(सी) में संशोधन किया गया और उनसे संबंधित अनुच्छेद 43 बी को सम्मिलित किया गया।

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने समीक्षा के लिए सुनवाई शुरू की

न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन, न्यायमूर्ति केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ गुजरात उच्च न्यायालय के 22 अप्रैल, 2013 के उस आदेश के खिलाफ केंद्र और अन्य पक्षों की याचिका पर सुनवाई कर रही है जिसमें अदालत ने संविधान संशोधन के कुछ प्रावधानों को रद कर दिया था।

पीठ ने अटार्नी जनरल से कहा- क्या संशोधन ने राज्य की शक्ति में हस्तक्षेप किया

पीठ ने सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल से कहा कि वह इस बात की जांच करना चाहती है कि क्या संशोधन ने सहकारिता से संबंधित कानून बनाने के संबंध में अनुच्छेद 246 (3) के तहत राज्य की विशेष शक्ति में हस्तक्षेप किया है क्योंकि यह राज्य का विषय है।

वेणुगोपाल ने कहा- संशोधन राज्य की शक्तियों को नहीं छीनता

वेणुगोपाल ने कहा कि संशोधन सहकारी समितियों के प्रबंधन में एकरूपता लाने के लिए किया गया था और यह उनसे संबंधित कानून लागू करने की राज्य की शक्तियों को नहीं छीनता है।

पीठ ने कहा- दो या दो से अधिक राज्यों की सहमति से कानून बनाने की शक्ति है अनुच्छेद 252

पीठ ने कहा कि अगर केंद्र एकरूपता लाना चाहता है, तो इसके लिए एकमात्र रास्ता संविधान के अनुच्छेद 252 के तहत उपलब्ध है जो दो या दो से अधिक राज्यों की सहमति से कानून बनाने की संसद की शक्ति से संबंधित है।

पीठ ने कहा- केंद्र की नजर में राज्यों की शक्ति अब विशिष्ट नहीं रहीं

पीठ ने कहा कि सरकार ने वास्तव में जो किया है, वह यह है कि सहकारी समिति के संबंध में कानून बनाने की राज्यों की शक्ति अब विशिष्ट नहीं रहीं। उसने कहा, 'इस मामले में थोड़ा सा भी हस्तक्षेप राज्यों की शक्ति को विशिष्ट नहीं रहने देगा।' सुनवाई के दौरान किसी फैसले पर नहीं पहुंचा जा सका और यह बृहस्पतिवार को भी जारी रहेगी।

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