Article 370 हटाए जाने का मामला बड़ी बेंच को भेजा जाए या नहीं सुप्रीम कोर्ट सोमवार को देगा फैसला

सुप्रीम कोर्ट की संव‍िधान पीठ अनुच्‍छेद 370 को हटाए जाने की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सोमवार को अपना फैसला देगी कि यह केस बड़ी बेंच को भेजा जाए या नहीं...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Sat, 29 Feb 2020 05:25 PM (IST) Updated:Sat, 29 Feb 2020 05:58 PM (IST)
Article 370 हटाए जाने का मामला बड़ी बेंच को भेजा जाए या नहीं सुप्रीम कोर्ट सोमवार को देगा फैसला
Article 370 हटाए जाने का मामला बड़ी बेंच को भेजा जाए या नहीं सुप्रीम कोर्ट सोमवार को देगा फैसला

नई दिल्‍ली, एएनआइ। जम्‍मू-कश्‍मीर (Jammu and Kashmir) से अनुच्‍छेद 370 (Article 370) को हटाए जाने के मसले पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) एक बड़ा फैसला करेगा। समाचार एजेंसी एएनआइ के मुताबिक, देश के सर्वोच्‍च अदालत की पांच न्‍यायमूर्तियों वाली संव‍िधान पीठ (Constitution bench) अनुच्‍छेद 370 को हटाए जाने की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला देगी कि यह मामला बड़ी बेंच को भेजा जाए या नहीं... मालूम हो कि याचिकाओं में केंद्र सरकार के अनुच्‍छेद 370 को हटाए जाने की वैधानिकता को चुनौती दी गई है। 

A five-judge Constitution bench of the Supreme Court to pronounce its order on Monday on whether petitions challenging the constitutional validity of the Centre's decision to abrogate Article 370 be referred to a larger bench. pic.twitter.com/xlzl2izWhd — ANI (@ANI) February 29, 2020

अनुच्छेद 370 हटाने के केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं में कहा गया है कि केंद्र और जम्‍मू-कश्‍मीर (Jammu and Kashmir) को एक-दूसरे से जोड़ने का एकमात्र रास्ता संविधान का यही प्रावधान था जिसे केंद्र सरकार ने हटा दिया है। पक्षकार प्रेमशंकर झा की ओर से पेश वरिष्ठ वकील दिनेश द्विवेदी ने जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता में पांच जजों की संविधान पीठ (Constitution bench of five judges) से गुजारिश की है कि इस मामले को सात जजों की पीठ द्वारा देखा जाना चाहिए... 

पिछले महीने अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में सरकार की ओर से लगाई गई पाबंदियों के विरोध में दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपने फैसले में कहा था कि एक हफ्ते के भीतर पाबंदियों को लेकर जारी आदेशों की समीक्षा की जानी चाहिए। पाबंदियों में नेताओं के आने-जाने पर रोक, इंटरनेट पर बैन आदि शामिल हैं। अदालत ने कहा था कि इंटरनेट पर अनिश्चितकाल के लिए प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है। अदालत ने इंटरनेट के इस्तेमाल को अभिव्यक्ति के अधिकार का हिस्सा मानते हुए कहा था कि जरूरी सेवाओं के लिए इंटरनेट शुरू किया जाना चाहिए। 

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