Talaq-E-Hasan: मुसलमानों की 'तलाक-ए-हसन' को चुनौती वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में आज होगी सुनवाई, जानें- क्या है यह प्रथा

तलाक-ए-हसन की प्रथा की वैधता पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की अवकाशकालीन पीठ ने याचिकाकर्ता बेनजीर हीना की ओर से पेश अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की इस दलील पर गौर किया कि याचिका पर तत्काल सुनवाई की जरूरत है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Publish:Fri, 17 Jun 2022 11:24 AM (IST) Updated:Fri, 17 Jun 2022 11:50 AM (IST)
Talaq-E-Hasan: मुसलमानों की 'तलाक-ए-हसन' को चुनौती वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में आज होगी सुनवाई, जानें- क्या है यह प्रथा
तलाक-ए-हसन' प्रथा की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट में होगी सुनवाई (फाइल फोटो)

नई दिल्ली, एजेंसी। मुसलमानों में 'तलाक-ए-हसन' की प्रथा की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को सुनवाई होगी। 'तलाक-ए-हसन' मुसलमानों में प्रचलित 'तीन तलाक' के विभिन्न प्रारूपों में से एक है। इस प्रथा के तहत मुस्लिम व्यक्ति अपनी पत्नी को तीन महीने तक हर महीने एक बार 'तलाक' बोलकर तलाक दे सकता है। नई याचिका में इस प्रथा को चुनौती दी गई है। न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की अवकाशकालीन पीठ ने याचिकाकर्ता बेनजीर हीना की ओर से पेश अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की इस दलील पर गौर किया कि याचिका पर तत्काल सुनवाई की जरूरत है। वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय के माध्यम से दायर याचिका में यह कहते हुए इस प्रथा को असंवैधानिक करार देने की मांग की गई है कि यह अतार्किक, मनमाना और समानता, जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार सहित विभिन्न मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

कल तीसरा 'तलाक' बोलेगा पति

उपाध्याय ने तत्काल सुनवाई की मांग करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के पति की ओर से 19 जून को बोला जाना वाला तीसरा 'तलाक' इस (तलाक-ए-हसन की) प्रक्रिया को पूरा कर देगा। पीठ ने याचिका की त्वरित सुनवाई के लिए शुक्रवार की तारीख मुकर्रर की। याचिका में लिंग और धर्म-तटस्थ प्रक्रिया और तलाक के आधार पर दिशा-निर्देश भी मांगे गए हैं।

जानें- क्या है तलाक-ए-हसन

तलाक-ए-हसन में मुस्लिम पति तीन अलग-अलग मौकों पर पत्नी को तलाक मौखिक रूप से कहकर या लिखकर दे सकता है। इसमें तीसरी बार तलाक कहने से पहले तक शादी मान्य मानी जाती है और जैसे ही तीसरी बार तलाक कहा गया शादी को खत्म मान लिया जाता है। इसमें इद्दत का समय महत्वपूर्ण होता है जो 90 दिन या तीन महीने का होता है। शरीयत के मुताबिक एक बार में तलाक न हो, इसलिए तलाक का यह फॉर्मेट है। इसके बाद पति-पत्नी दोबारा शादी कर सकते हैं लेकिन पत्नी के मामले में हलाला करना पड़ता है। इस्लाम के जानकार कहते हैं कि तलाक की व्यवस्था इसलिए बनाई गई थी कि अगर पुरुष और महिला खुश नहीं हैं तो वे शादी खत्म कर सके। याचिकाकर्ता बेनजीर परेशान इसीलिए हैं कि तीसरी बार पति ने तीन महीने के भीतर तलाक कह दिया तो उनका एकतरफा तलाक हो जाएगा। खास बात यह है कि इस्लामी धार्मिक कानूनों में बिना कोर्ट जाए तलाक को मान्यता दी गई है। पुरुष तलाक-ए-हसन के तहत तलाक दे सकते हैं जबकि महिलाओं के लिए इसे 'खुला' कहा जाता है।

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