महज दुष्कर्म पी‍ड़‍िता के बयान पर आरोपित को दोषी नहीं ठहरा सकते, सुप्रीम कोर्ट ने दी व्‍यवस्‍था

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दुष्‍कर्म के मामलों में महज पी‍ड़‍िता के बयान को आधार बनाकर किसी आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। जाने अदालत ने क्‍या व्‍यवस्‍था दी है...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Sat, 15 Feb 2020 08:42 PM (IST) Updated:Sat, 15 Feb 2020 08:42 PM (IST)
महज दुष्कर्म पी‍ड़‍िता के बयान पर आरोपित को दोषी नहीं ठहरा सकते, सुप्रीम कोर्ट ने दी व्‍यवस्‍था
महज दुष्कर्म पी‍ड़‍िता के बयान पर आरोपित को दोषी नहीं ठहरा सकते, सुप्रीम कोर्ट ने दी व्‍यवस्‍था

नई दिल्ली, एएनआइ। सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि महज दुष्कर्म पीडि़ता के बयान के आधार पर आरोपित को तब तक अपराधी नहीं ठहराया जा सकता, जब तक उसका बयान भरोसेमंद, मुकम्मल और वास्तविक गुणवत्ता का न हो। जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने दोहराया कि वास्तविक गवाह बहुत ही भरोसेमंद और क्षमता वाला होना चाहिए, जिसकी गवाही अकाट्य हो।

पीठ ने यह टिप्पणी पटना के मखदुमपुर के एक व्यक्ति को दुष्कर्म के आरोपों से बरी करते हुए की। व्यक्ति पर उसकी भाभी ने दुष्कर्म का आरोप लगाया था। महिला ने कहा था कि 16 सितंबर, 2011 की रात को उसके देवर ने उसके साथ दुष्कर्म किया था। उसकी शिकायत पर एफआइआर दर्ज की गई थी। निचली अदालत ने आरोपित को दोषी ठहराते हुए 10 साल कैद की सजा सुनाई थी। हाई कोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा था।

पीठ के समक्ष बचाव पक्ष के वकील ने कहा कि पीडि़ता के बयान के अलावा इसमें कोई और साक्ष्य नहीं है। चिकित्सकीय प्रमाण भी आरोप की पुष्टि नहीं करते। आरोप को साबित करने के लिए अन्य कोई स्वतंत्र गवाह या साक्ष्य भी नहीं हैं। पीठ ने कहा कि सामान्य तौर पर दुष्कर्म के मामले में पीडि़ता की गवाही आरोप साबित करने के लिए पर्याप्त है। लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सरकी है कि किसी आरोपी को झूठे मामले में फंसाया भी जा सकता है।

उल्‍लेखनीय है कि अभी कल ही सुप्रीम कोर्ट ने फांसी के मामलों में अपील पर सुनवाई के दिशा निर्देश जारी किए। इस गाइडलाइन में फांसी के मामलों में छह महीने के भीतर सुनवाई करने की समयसीमा तय की है। सुप्रीम कोर्ट के तय दिशा निर्देशों में कहा गया है कि जिन मामलों में हाई कोर्ट ने फांसी की सजा पर मुहर लगा दी हो और हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ दाखिल अपील को सुप्रीम कोर्ट ने विचारार्थ स्वीकार कर लिया हो तो उन याचिकाओं को लीव ग्रांट होने के छह महीने के भीतर तीन न्यायाधीशों की पीठ के सामने सुनवाई पर लगाया जाएगा। 

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