निकाह हलाला पर सुप्रीम कोर्ट का केंद्र को नोटिस, आइए जानें क्या है पूरा मामला

सुप्रीम कोर्ट ने निकाह हलाला और बहुविवाह मामलों में सुनवाई करते हुए कानून मंत्रालय को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। आइए जानें क्या है पूरा मामला...

By Digpal SinghEdited By: Publish:Mon, 26 Mar 2018 05:02 PM (IST) Updated:Mon, 26 Mar 2018 05:48 PM (IST)
निकाह हलाला पर सुप्रीम कोर्ट का केंद्र को नोटिस, आइए जानें क्या है पूरा मामला
निकाह हलाला पर सुप्रीम कोर्ट का केंद्र को नोटिस, आइए जानें क्या है पूरा मामला

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। पिछले साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए एक साथ तीन तलाक को प्रतिबंधित कर दिया था। उस फैसले को मुस्लिम महिलाओं के हक में एक बड़ा फैसला माना गया था। तीन तलाक पर सुनवाई समाप्त करते हुए पांच न्यायाधीशों वाली पीठ ने निकाह हलाला और बहुविवाह जैसे मुद्दों को खुला रखा था। अब सुप्रीम कोर्ट ने इन मामलों में सुनवाई करते हुए कानून मंत्रालय को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। कोर्ट ने कहा कि बहुपत्नी प्रथा और निकाह हलाला मामले में दायर याचिकाओं पर संविधान पीठ सुनवाई करेगी।

सुप्रीम कोर्ट में चार याचिकाएं...
गौरतलब है कि मुस्लिमों में निकाह हलाला और बहुविवाह को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चार याचिकाएं दाखिल की गई थीं। इन पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रही है। इन्हीं मामलों में शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार के कानून मंत्रालय से जवाब मांगा है। एक साथ तीन तलाक को सुप्रीम कोर्ट से अपराध घोषित किए जाने के बाद केंद्र सरकार पिछले साल दिसंबर में एक कानून भी लेकर आयी। निकाह हलाला और बहुविवाह को महिलाओं के अधिकारों के खिलाफ माना जाता रहा है। मुस्लिम महिला अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना था कि मुस्लिम महिलाओं को इंसाफ दिलाने का मकसद तब तक पूरा नहीं हो सकता, जब तक प्रस्तावित कानून में निकाह हलाला, बहुविवाह और बच्चों के संरक्षण जैसे मुद्दे को शामिल नहीं किया जाता।

क्या हुआ कोर्ट में
जैसा कि हमने ऊपर बताया कि सुप्रीम कोर्ट में निकाह हलाला व बहुविवाह को लेकर चार याचिकाएं दाखिल हुई थीं। इनमें नफीसा खान सहित चारों याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से इन दोनों प्रथाओं पर रोक लगाने और इन्हें असंवैधानिक करार दिए जाने की मांग की थी। नफीसा ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराएं देश के सभी नागरिकों पर एक समान तरीके से लागू होनी चाहिए। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि तीन तलाक को आईपीसी की धारा 498ए के तहत क्रूरता माना जाता है। यही नहीं बहुविवाह को भी धारा 494 के तहत एक अपराध माना गया है। इन प्रथाओं पर रोक लगाई जानी चाहिए, क्योंकि कानून के तहत ये दोनों अपराध की श्रेणी में आते हैं।

अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका
दिल्ली भाजपा नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने भी इस मामले में याचिका दायर की थी। अपनी याचिका में उन्होंने कहा, निकाह हलाला और बहुविवाह अनुच्छेद- 14 कानून के समक्ष समानता, (15) धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव पर रोक और (21) (जीवन जीने का अधिकार) तथा लोक व्यवस्था, नैतिकता एवं स्वास्थ्य के तहत दिए गए मौलिक अधिकारों के लिए नुकसानदेह है। ऐसे में इन प्रथाओं पर रोक लगाई जानी चाहिए।

तीन तलाक पर रोक और सुप्रीम कोर्ट की सलाह
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल अगस्त में तीन तलाक को असंवैधानिक करार देते हुए केंद्र सरकार से 6 महीने के अंदर एक कानून लाने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का मुस्लिम महिलाओं ने दिल खोलकर स्वागत किया था। हालांकि मुस्लिम संगठन, जिन पर ज्यादातर पुरुषों का वर्चस्व है ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले से नाखुशी जाहिर की थी। भारत के चीफ इमाम और अखिल भारतीय इमाम संगठन के अध्‍यक्ष डॉक्‍टर उमेर अहमद इलियासी ने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा था कि निकाह के दौरान गवाह और वकील की मौजूदगी जरूरी होती है उसी तरह से तलाक के वक्‍त भी इस तरह के गवाह और वकील की मौजूदगी जरूर होनी चाहिए। उन्‍होंने यह भी कहा कि इस्‍लाम में मुस्लिम महिलाओं को भी अपने शौहर को तलाक देने का अधिकार है।

क्या होता है निकाह हलाला?
निकाह हलाला मुस्लिम समाज में पत्नी को तलाक देने के बाद उससे फिर से निकाह करने के लिए एक प्रथा है।दोनों में फिर से निकाह की रजामंदी होने के बाद महिला को किसी अन्य पुरुष से शादी करनी पड़ती है। इस दौरान महिला को दूसरे निकाह से बने पति से शारीरिक संबंध बनाने जरूरी होते हैं। इसके बाद जब दूसरा पति भी महिला को तलाक दे दे, तब वह अपने पहले पति से फिर से निकाह कर सकती है। गौरतलब है कि कई मौलवी निकाह हलाला की दुकान चला रहे थे। पिछले साल कई टीवी चैनलों ने ऐसे मौलवियों का पर्दाफाश भी किया था।

बहुविवाह भी एक समस्या
मुस्लिम समुदाय में पुरुषों को कानून के तहत एक से ज्यादा महिलाओं के शादी करने की छूट है। इसकी बदौलत मुस्लिम व्यक्ति चाहे तो एक से ज्यादा पत्नियां रख सकता है। कई महिला संगठन इसे महिलाओं के अधिकारों के खिलाफ बताते हैं। जबकि धर्मगुरु और पुरुषवादी सोच वाले लोग बहुविवाह कानून का न सिर्फ समर्थन करते हैं बल्कि इसे धार्मिक मामला भी बताने से बाज नहीं आते।

ऐसे तो तीन तलाक का कानून रह जाएगा अधूरा...
तीन तलाक को सुप्रीम कोर्ट द्वारा गैरकानूनी घोषित किया गया है, केंद्र सरकार ने भी इसको लेकर कानून बना दिया है। हालांकि, कई मुस्लिम महिला संगठनों का कहना है कि सिर्फ तीन तलाक पर रोक लगाना काफी नहीं होगा। तीन तलाक की कुप्रथा के खिलाफ लंबी मुहिम चलाने वाले संगठन ‘भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन’ (बीएमएमए) की सह-संस्थापक जकिया सोमन कहती हैं- मामला सिर्फ तीन तलाक तक सीमित नहीं है और हमारी लड़ाई किसी को सजा दिलाने की नहीं है, बल्कि मुस्लिम महिलाओं को इंसाफ दिलाने की है।

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