स्वतंत्रता सेनानी की पारिवारिक पेंशन पर तलाकशुदा बेटी का हक तय करेगा सुप्रीम कोर्ट

हिमाचल प्रदेश की रहने वाली 56 वर्षीय तुलसी देवी ने हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के पिछले साल के फैसले को चुनौती दी है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Publish:Sat, 30 May 2020 06:58 PM (IST) Updated:Sat, 30 May 2020 07:03 PM (IST)
स्वतंत्रता सेनानी की पारिवारिक पेंशन पर तलाकशुदा बेटी का हक तय करेगा सुप्रीम कोर्ट
स्वतंत्रता सेनानी की पारिवारिक पेंशन पर तलाकशुदा बेटी का हक तय करेगा सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली, प्रेट्र। स्वतंत्रता सेनानी की पारिवारिक पेंशन पर उसकी अविवाहित या विधवा बेटी की तरह तलाकशुदा बेटी का हक है या नहीं, इसका फैसला अब सुप्रीम कोर्ट करेगा।

इस मसले पर देश के दो हाई कोर्ट के फैसले एक-दूसरे के विपरीत हैं। एक ने जहां तलाकशुदा बेटी के हक में फैसला सुनाया है, तो दूसरे ने उसके खिलाफ। इस तरह यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है।

हिमाचल प्रदेश की रहने वाली 56 वर्षीय तुलसी देवी ने हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के पिछले साल के फैसले को चुनौती दी है। हाई कोर्ट ने स्वतंत्रता सेनानी की पारिवारिक पेंशन पर उनके दावे को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि इस तरह का कोई नियम नहीं है।

जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एमएम शंतनागौदर और जस्टिस विनीत शरन की पीठ ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए याचिका को स्वीकार करते हुए केंद्र को नोटिस भेजा है जुलाई के अंत तक जवाब देने को कहा है।

सुनवाई के दौरान तुलसी देवी के वकील दुष्यंत पराशर ने कहा कि हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने उनकी मुवक्किल को तलाकशुदा बेटी होने के नाते स्वतंत्रता सैनिक सम्मान पेंशन पर निर्भर नहीं मानकर गलत किया है, जो उनके पिता की मौत के बाद उनकी दिवंगत मां को मिल रहा था।

पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट में भी इस तरह का मामला आ चुका है सामने

उन्होंने कहा कि 2016 में पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट के सामने भी खजानी देवी का इसी तरह का मामला सामने आया था। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में तलाकशुदा बेटी को भी अविवाहित या विधवा बेटी की तरह स्वतंत्रता सेनानी पारिवारिक पेंशन योजना का पात्र माना था।

केंद्र सरकार ने पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने 27 सितंबर, 2019 को केंद्र सरकार की याचिका खारिज करते हुए हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था। शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के फैसले को प्रगतिशील और सामाजिक रूप से रचनात्मक बताया था।

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