संसदीय समिति ने नोटबंदी पर आरबीआइ गवर्नर उर्जित पटेल से किए तीखे सवाल

बैठक के बाद एक सदस्य ने कहा कि आरबीआइ के अधिकारी नोटबंदी के मुद्दे पर बचाव की मुद्रा में दिखे।

By Rajesh KumarEdited By: Publish:Wed, 18 Jan 2017 08:05 PM (IST) Updated:Wed, 18 Jan 2017 10:40 PM (IST)
संसदीय समिति ने नोटबंदी पर आरबीआइ गवर्नर उर्जित पटेल से किए तीखे सवाल
संसदीय समिति ने नोटबंदी पर आरबीआइ गवर्नर उर्जित पटेल से किए तीखे सवाल

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल को संसदीय समिति की बैठक में तीखे सवालों से दो-चार होना पड़ा। संसद की वित्त मामलों संबंधी समिति के सदस्यों ने जब उनसे पूछा कि नोटबंदी के फैसले के बाद हालात कब तक सामान्य हो जाएंगे तो इसके जवाब में वह कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए और ना ही यह बता पाए कि स्थिति सामान्य होने में अभी कितना वक्त लगेगा।

हालांकि उन्होंने इतना जरूर बताया कि 500 रुपये और 1000 रुपये के पुराने नोट बंद होने के बाद अब तक 9.2 लाख करोड़ रुपये की मुद्रा सिस्टम में डाल दी है जो बंद किए गए नोट्स की लगभग 60 प्रतिशत है।

सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाली वित्त मामलों संबंधी संसद की स्थाई समिति की बैठक में पटेल के साथ-साथ आरबीआइ के डिप्टी गवर्नर आर गांधी और एस एस मुंद्रा भी उपस्थित थे। सूत्रों के मुताबिक आरबीआइ गवर्नर से जब पूछा गया कि 500 रुपये और 1000 रुपये के बंद किए गए पुराने नोट में से कितने वापस आ चुके हैं, इसकी भी एक निश्चित संख्या वह नहीं दे पाए। बताया जाता है कि उन्होंने इस सवाल के जवाब में बस इतना कहा कि आरबीआइ अब भी इसकी गणना कर रहा है।

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सूत्रों ने बताया कि समिति की बैठक में जब सांसद गवर्नर से तीखे सवाल पूछ रहे थे तब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कई अन्य सांसदों ने कहा कि एक संस्था के तौर पर आरबीआइ का सम्मान किया जाना चाहिए। असल में दिग्विजय सिंह जैसे कांग्रेसी सांसद नकदी निकासी की सीमा हटाने के संबंध में पटेल से स्पष्ट उत्तर चाहते थे और वे लगातार कड़े प्रश्न पूछ रहे थे तभी पूर्व पीएम मनमोहन सिंह और अन्य ने उन्हें रोका।

हालांकि आरबीआइ गवर्नर ने समिति को बताया कि 500 रुपये और 1000 रुपये के पुराने नोट बंद किए जाने के संबंध में आरबीआइ और सरकार 2016 के शुरु से ही विचार विमर्श कर रहे थे। आरबीआइ पुराने नोट बंद करने सरकार के फैसले के लक्ष्य को लेकर सहमत था।

सूत्रों ने कहा कि नोटबंदी के मुद्दे पर समिति के सभी सदस्य अपने सवाल पूरे नहीं कर सके, इसलिए आम बजट के बाद एक बार फिर आरबीआइ गवर्नर और वित्त मंत्रालय के अधिकारियों को बुलाने का फैसला किया है। बैठक के बाद एक सदस्य ने कहा कि आरबीआइ के अधिकारी नोटबंदी के मुद्दे पर बचाव की मुद्रा में दिखे। खुद गवर्नर मुख्य सवालों के जवाब नहीं दे सके। सदस्य उनसे जानना चाहते थे कि बैंकों के पास कितना पैसा वापस आया है और बैंकिंग ऑपरेशन की स्थिति सामान्य होने में कितना वक्त लगेगा।

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बैठक में वित्त मंत्रालय के अधिकारी भी मौजूद थे। सूत्रों ने कहा कि कुछ सदस्यों ने इस तरह के सवाल भी किए कि नोटबंदी का फैसला सरकार ने किया या आरबीआइ ने। इसके अलावा आरबीआइ की स्वायत्ता के बारे में भी सवाल पूछे गए। यह भी पूछा गया कि नोटबंदी के बाद पहले कालेधन की चर्चा की गयी, उसके बाद आतंकी फंडिंग, फिर जाली मुद्रा और बाद में डिजिटल पेमेंट्स को बढ़ावा देने की बात कही गयी, ऐसा क्यों हुआ।

वित्त मंत्रालय के आर्थिक कार्य विभाग के सचिव शक्तिकांत दास ने समिति के समक्ष एक प्रजेंटेशन दिया। कुछ सदस्यों ने दास के साथ-साथ राजस्व सचिव हसमुख अढिया और बैंकिंग सचिव अंजुली चिब दुग्गल से भी सवाल पूछे। इसके अलावा आइसीआइसीआइ बैंक की चंदा कोचर और पंजाब नेशनल बैंक की ऊषा अनंतसुब्रमण्यम भी समिति के समक्ष उपस्थित हुए।

उल्लेखनीय है कि आरबीआइ गवर्नर 20 जनवरी को संसद की लोक लेखा समिति के समक्ष भी उपस्थित होंगे।

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