टीचर्स डे: बतौर कुलपति वेतन से भी था डॉ. राधाकृष्णन को परहेज

डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन के सम्‍मान में ही शिक्षक दिवस मनाया जाता है, जिन्‍होंने गुलामी के दौर से लेकर मुल्क की आजादी तक का सफर शिक्षा को समर्पित किया था।

By Pratibha Kumari Edited By: Publish:Tue, 05 Sep 2017 09:45 AM (IST) Updated:Tue, 05 Sep 2017 09:47 AM (IST)
टीचर्स डे: बतौर कुलपति वेतन से भी था डॉ. राधाकृष्णन को परहेज
टीचर्स डे: बतौर कुलपति वेतन से भी था डॉ. राधाकृष्णन को परहेज

अभिषेक शर्मा, वाराणसी। भारत के दूसरे राष्ट्रपति के तौर पर देश को शिक्षा के क्षेत्र में ऊचाइयां प्रदान करने वाले डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन का काशी से गहरा रिश्ता रहा है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में बतौर कुलपति उनकी स्मृतियों से जुड़े दस्तावेज उनकी काबिलियत व योगदान को सराहते नहीं थकते। शिक्षा के प्रति समर्पण का भाव ऐसा था कि बतौर कुलपति वेतन लेने से भी परहेज रखा।

आजादी से पहले ही शिक्षा के बड़े केंद्र के तौर पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय की महत्ता जगजाहिर हो चुकी थी। इसके स्थापना व संचालन के दायित्वों के साथ पं. महामना मदन मोहन मालवीय जी के गिरते स्वास्थ्य के बीच जब डा. राधाकृष्णन ने विश्वविद्यालय की कमान बतौर कुलपति संभाली, तब देश गुलाम था। 1939 से 1948 तक वह विश्वविद्यालय के कुलपति के तौर पर कार्यरत रहे।

इससे पूर्व वह कलकत्ता विवि में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर पद के साथ आक्सफोर्ड विवि में भी पूर्वीय दर्शन के प्रोफेसर पद पर सेवाएं दे रहे थे। बाद में तीन जगहों पर दायित्व निर्वहन के दबाव को देखते हुए उन्होंने कलकत्ता विवि से त्यागपत्र दे दिया और आक्सफोर्ड विवि संग बीएचयू की जिम्मेदारियों के निर्वहन में रत हो गए। उनके कार्यकाल के ही दौरान सन 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में बीएचयू के छात्रों की हिस्सेदारी की मंशा भांप ब्रिटिश सरकार ने विश्वविद्यालय बंद कराने का प्रयास भी किया। ऐसे में राधा कृष्णन ने प्रयास कर बीएचयू को बचाने की बुद्धिमत्तापूर्ण कोशिश की और ब्रिटिश सरकार की मंशा को सफल नहीं होने दिया।

उनका मानना था कि यह राष्ट्रीय संस्था है लिहाजा यहां नि:स्वार्थ सेवा ही सच्ची राष्ट्रसेवा है। वाराणसी में शैक्षिक योगदान सहित जीवन में उन्होंने चार दशक बतौर शिक्षक अपने दायित्वों का सफलतापूर्वक निर्वहन किया।

महामना की बगिया में स्मृतियां

महामना की बगिया कहे जाने वाले बीएचयू में आज भी सर्वपल्ली राधा कृष्णन की स्मृतियों को संजोया और सहेजा गया है। भारत कला भवन, राधाकृष्णन सभागार सहित विभिन्न विभागों में उनके चित्र और उनसे संबंधित दस्तावेजों के संरक्षण संग एक छात्रवास भी उनके नाम पर है।

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