शंकररमण हत्याकांड: ये था पूरा मामला, शंकराचार्य पर लगे थे गंभीर आरोप

कांचिकामकोटि पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती पर श्रीवर्धराज स्वामी मंदिरके प्रबंधक शंकररमन की हत्या की साजिश रचने का आरोप है। केस में हत्या करने की वजह यह बताई गई कि मंदिर के अंदर जो गलत काम किए जा रहे थे, कहीं उसका खुलासा न हो जाए। उनके ऊपर यह आरोप भी लगे कि उनके महिलाओं के साथ संबंध भी थे।

By Edited By: Publish:Wed, 27 Nov 2013 10:35 AM (IST) Updated:Wed, 27 Nov 2013 12:44 PM (IST)
शंकररमण हत्याकांड: ये था पूरा मामला, शंकराचार्य पर लगे थे गंभीर आरोप

नई दिल्ली। कांचिकामकोटि पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती पर श्रीवर्धराज स्वामी मंदिर के प्रबंधक शंकररमण की हत्या की साजिश रचने का आरोप था। अदालत ने इस मामले में शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती समेत सभी आरोपियों को बरी कर दिया है। केस में हत्या करने की वजह यह बताई गई थी कि मंदिर के अंदर जो गलत काम किए जा रहे थे, कहीं उसका खुलासा न हो जाए। उनके ऊपर यह आरोप भी लगे थे कि उनके महिलाओं के साथ संबंध भी थे।

तस्वीरों में: शंकररमण हत्याकांड से शंकराचार्य हुए बरी, लगे थे गंभीर आरोप

एक महिला लेखक अनुराधा रमण ने बताया था कि 1992 में उन्होंने अपने आश्रम में एक पत्रिका प्रकाशित करने के लिए चर्चा करने के लिए बुलाया था, लेकिन अंत में उन्होंने सेक्स की इच्छा जाहिर की थी। लेकिन महिला किसी तरह से बचकर चली आई थी।

जयेंद्र सरवस्ती का जन्म 18 जुलाई 1935 को हुआ था। उन्हें पहले सुब्रमण्यम अय्यर के नाम से जाना जाता था। उन्हें 22 मार्च 1954 को चंद्रशेखरानंद सरस्वती के बाद 69वां शंकराचार्य नामित किया गया।

पढ़ें:कांची शंकराचार्य ने किया सत्ता परिवर्तन का आह्वान3

शंकररमण हत्याकांड में कब क्या हुआ?

सितंबर 2004: कांचीपुरम, तमिलनाडु में शंकररमण की हत्या। शंकररमन मंदिर के प्रबंधक थे।

11 नवंबर 2004: जयेंद्र सरस्वती को शंकररमण की हत्या की साजिश रचने के आरोप में आंध्र प्रदेश में गिरफ्तार किया गया।

29 नवंबर 2004: जमानत अर्जी सुनवाई के लिए दाखिल।

8 दिसंबर 2004: जमानत अर्जी खारिज।

3 जनवरी 2005: सुप्रीम कोर्ट ने प्रॉसीक्यूशन से जयेंद्र के आइआइसीआइ बैंक पैसे के लेन-देन संबंधी साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए कहा।

6 जनवरी 2005: सुप्रीम कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर।

10 जनवरी: 2005: पुनरीक्षण याचिका पर फैसला। सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दिया कि प्रॉसीक्यूशन इस बात का सुबूत प्रस्तुत करने में असफल रहा कि हत्यारों को जयेंद्र के खाते से पैसे निकाल कर दिए गए। इसके साथ हत्या में सह आरोपी बनाए गए दो अभियुक्तों ने यह कहा कि उन्हें अपराध कुबूल करने के लिए टार्चर किया गया था। एक के हाथ तोड़ा गया था और दूसरे के दांत। इसके साथ सुप्रीम कोर्ट ने चश्मदीद गवाह को पेश करने के लिए कहा। लेकिन प्रासीक्यूशन यह भी नहीं कर पाया।

26 फरवरी 2005: सुप्रीम कोर्ट ने मामले को सेशन कोर्ट में ट्रांसफर किया।

6 अगस्त 2005: सेशंस कोर्ट ने सह अभियुक्त विजयेंद्र सरस्वती को जमानत देने से इन्कार किया।

नवंबर 2005 से नवंबर 2013: कुल 187 गवाह पेश किए गए, जिसमें से प्रासीक्यूशन और डिफेंस कौंसिल ने फिर से इक्जामिन किया। गवाही के दौरान 82 गवाह और एक लोन एप्रूवर रवि सुब्रमण्यम मुकर गए। कुल चार जजों ने सुनवाई की। चिन्नापंडी, जी कृष्णराजा, टी रामस्वामी और सीएस मुरुगन शामिल रहे।

अगस्त 2011: मद्रास हाइकोर्ट ने ट्रायल पेटीशनर की प्रार्थना पर इस बात के लएि रोका कि आरोपी मामले को प्रभावित कर रहे हैं।

नवंबर 2011: जिला जज ने रजिस्ट्रार जनरल (विजिलेंस) को रिपोर्ट सौंपी।

फरवरी 2012: हाइकोर्ट ने टीएस रामास्वामी को बदलकर सीएस मुरुगन को मुख्य जज नियुक्त किया।

अगस्त 2012: लोकल कोर्ट ने अॅथारिटीज को घटना से जुड़े ऑडियो और वीडियो कैसेट्स आनंद शर्मा को सौंपने के लिए कहा। जिसपर मद्रास हाइकोर्ट ने एम कांतिवरम की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए आनंद शर्मा को साक्ष्य सौंपने से मना कर दिया।

मार्च 2013: एम कांतिवरम की हत्या, जो पेटिशिनर्स में से एक थे।

27 नवंबर 2013: प्रिंसिपल डिस्ट्रिक्ट एंड सेशंस जज सीएस मुरुगन ने अपना फैसला देते हुए शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती समेत सभी 24 आरोपियों को बरी कर दिया।

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर

chat bot
आपका साथी