बुरी शक्तियों से बचाते शैतान, हंताकोई परंपरा से तैयार ये आकृतियां कला से ज्यादा विश्वास को प्रदर्शित करती हैं..

द्वीप के निवासियों को क्या चीजें नई और अनोखी लगती थीं जैसे जहाज कंपास जेब-घड़ियां दूरबीन और लिफाफे आदि। इसके साथ ही हंताकोई आकृतियों में यह संकरता केवल सांस्कृतिक समावेशन की सरल घटना नहीं थी बल्कि इनकी बनावट की राजनीतिक महत्ता भी थी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sat, 20 Aug 2022 07:38 AM (IST) Updated:Sat, 20 Aug 2022 07:38 AM (IST)
बुरी शक्तियों से बचाते शैतान, हंताकोई परंपरा से तैयार ये आकृतियां कला से ज्यादा विश्वास को प्रदर्शित करती हैं..
बुरी शक्तियों से बचाते शैतान, फौटो सौजन्य- द वेलकम कलेक्शन

शिवानी कसूमरा। जरूरी नहीं कि हर बार खूबसूरत चीजों, कलाओं या प्रतीकों को ही पहचान मिले, कई बार कुछ अजीबो-गरीब या डरावनी दिखने वाली कलाकृतियों को भी प्रसिद्धि मिलती है। ऐसी ही है निकोबार द्वीप समूह के कुल देवता स्केयर-डेविल्स या ‘कुल के डरावने शैतान’ के नाम से मशहूर आकृतियां। शिवानी कसूमरा बता रही हैं कि हंताकोई परंपरा से तैयार ये आकृतियां कला से ज्यादा विश्वास को प्रदर्शित करती हैं...

वे डरावनी दिखती हैं मगर पूजनीय हैं। यह तमाम आकृतियां पहचान हैं पूर्वी हिंद महासागर में स्थित निकोबार द्वीप समूह की ‘हंताकोई’ परंपरा की। दरअसल, निकोबार द्वीप समूह के मूल निवासी निकोबारी समुदाय के लोग तटीय गांवों में रहते थे और जीवन-निर्वाह के संसाधनों को जुटाने के लिए समय-समय पर शिकार अभियानों एवं खोजयात्राओं पर निकलते थे। इनके आध्यात्मिक ब्रह्मांड विज्ञान में आकर्षण और प्रतिकर्षण के नियम हैं, जो इनका मार्गदर्शन करते हैं, केवल धार्मिक जीवन में ही नहीं बल्कि दैनिक कार्यों के संचालन में भी। इसलिए, इन शिकार अभियानों और खोजयात्राओं के लिए नौकाओं को अच्छी तरह रंगों से सजाया जाता था और उन पर सुंदर नक्काशी की जाती थी ताकि समुद्र की अच्छी शक्तियां आकर्षित हों और बुरी शक्तियां दूर रहें। हंताकोई, स्केयर-डेविल्स या ‘डरावने शैतान’ के निर्माण में भी यही धारणा अपनाई गई। ‘मेनलुआना’ के नाम से पहचाने जाने वाले आध्यात्मिक उपचारक इन्हें बुरी शक्तियों से लड़ने के लिए बनाते थे।

इन आकृतियों को दो प्रकार से वर्गीकृत किया गया: मानव आकृतियां, जिन्हें ‘करेउ’ के रूप में जाना जाता है और दूसरी: पशुरूपी आकृतियां। इस समुदाय के ब्रह्मांड विज्ञान के अनुसार, करेउ आकृतियां ‘इविका’ या परोपकारी पूर्वजों का प्रतिनिधित्व करती हैं और इन्हें अक्सर ‘विपोट’ या बुरी आत्माओं को भगाने के लिए डरावनी और क्रियाशील मुद्राओं में बनाया जाता है। मेनलुआना करेउ आकृतियां तब तराशते हैं, जब कोई गंभीर बीमारी या दुर्घटना का मामला होता है। ये आकृतियां मानवीय और प्रेत दुनिया को एक-दूसरे से जोड़ती हैं।

हंताकोई एक प्रशस्त परंपरा है, जो म्यांमार, मलेशिया और श्रीलंका के व्यापारियों के साथ सालों के व्यापारिक और राजनीतिक संपर्क के चलते विकसित हुई। इस परंपरा को बनाने में ईसाई मिशनरी और जहाजों के अवशेषों ने भी बड़ी भूमिका निभाई। इन आकृतियों के माध्यम से हमें व्यापार और वाणिज्य के प्रचार-प्रसार के साथ-साथ दुनिया के साथ निकोबारी समाज के मेल-जोल की अनूठी झलक मिलती है। कुछ आकृतियों के सिरों पर मलायन हेलमेट पाए गए हैं, जिनको ठोड़ी पर बांधा जाता है और जिनका ऊपरी सिरा नुकीला होता है। ये हेलमेट निकोबार पर मलय प्रायद्वीप की भौतिकवादी संस्कृतियों के प्रभाव और संबंध को दर्शाते हैं।

भारतीय उपमहाद्वीप में यूरोपीय लोगों के आगमन के साथ आकृतियों में यूरोपीय परिधानों का सम्मिलन भी दिखने लगा, जिसमें टोपी, कोट और पैंट जैसी चीजें शामिल हैं। कुछ आकृतियों में चेहरों को सफेद रंग से रंजित किया गया, जो द्वीप पर मौजूद गोरे यूरोपीय चेहरों के प्रति संदेह की ओर इशारा करता है। निकोबार द्वीपों को पहली बार वर्ष 1756 में डेनमार्क द्वारा उपनिवेश बनाया गया था। इसके बाद 1869 में इन्हें अंग्रेजों को बेचा गया और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इन पर कुछ समय के लिए जापानियों द्वारा भी कब्जा किया गया। जापानी कब्जे के दौरान करेउ आकृतियों पर हेलमेट पहने जापानी सैनिकों को दर्शाया जाने लगा।

इन नए तरीकों व सामग्रियों के इस्तेमाल से मालूम पड़ता है कि द्वीप के निवासियों को क्या चीजें नई और अनोखी लगती थीं, जैसे जहाज, कंपास, जेब-घड़ियां, दूरबीन और लिफाफे आदि। इसके साथ ही हंताकोई आकृतियों में यह संकरता केवल सांस्कृतिक समावेशन की सरल घटना नहीं थी, बल्कि इनकी बनावट की राजनीतिक महत्ता भी थी। वे लोग विदेशी आधिपत्य और घुसपैठ का आसन्न खतरा महसूस कर पा रहे थे, जिन्होंने अपने ऊपर दमनकारी व्यापार संबंधों को जबरदस्ती लागू होते और अपनी जमीन पर औपनिवेशिक अधिकारियों की अनचाही उपस्थिति देखी थी। इस प्रकार, निकोबारी विश्वदृष्टि का केंद्र हंताकोई एक ऐसी व्यापक श्रेणी बन गया, जिसमें अन्य सांस्कृतिक टोटेम भी शामिल हो गए। इसके बाद जहाजों पर विभिन्न राष्ट्रों के झंडों को उनके हंताकोई के रूप में देखा गया और विदेशियों के सामान का समावेशन सामाजिक अनुष्ठान और अनुकरणात्मक जादू में एक जटिल प्रक्रिया के तहत होने लगा। इस तरह से नई तरीके की आकृतियां बनने लगीं, जो इन अजीब ताकतों के दबाव को पहचान सकें और उन्हे ध्वस्त कर सकें।

(सौजन्य https://map-academy.io)

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