चीफ जस्टिस बोबडे की अगुआई वाली संविधान पीठ करेगी सबरीमाला मामले की सुनवाई

सबरीमाला वाले मामले पर यह पीठ 13 जनवरी को सुनवाई करेगी। यह पीठ मुस्लिम और पारसी धर्म की महिलाओं के धार्मिक स्थल में प्रवेश के मुद्दे पर भी विचार करेगी।

By Dhyanendra SinghEdited By: Publish:Tue, 07 Jan 2020 07:05 PM (IST) Updated:Tue, 07 Jan 2020 10:22 PM (IST)
चीफ जस्टिस बोबडे की अगुआई वाली संविधान पीठ करेगी सबरीमाला मामले की सुनवाई
चीफ जस्टिस बोबडे की अगुआई वाली संविधान पीठ करेगी सबरीमाला मामले की सुनवाई

नई दिल्ली, जेएनएन। सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश तथा मुस्लिम व पारसी महिलाओं से भेदभाव के मामलों की सुनवाई के लिए गठित संविधान पीठ में जजों को नियुक्त कर दिया है। संविधान पीठ की अध्यक्षता चीफ जस्टिस एसए बोबडे करेंगे और मामलों की सुनवाई 13 जनवरी से शुरू होगी।

#Sabarimala केरल के सबरीमामाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश मामले में पुनर्विचार याचिकाओं पर 9 जजो की जो पीठ करेगी सुनवाई उसमे चीफ जस्टिस एस ए बोबडे, आर भानुमति, अशोक भूषण, एल नागेश्वर राव, एम शान्तनगौडर, एस अब्दुल नजीर, आर एस रेड्डी,बीआर गवई और सूर्यकांत हैं।@JagranNews — Mala Dixit (@mdixitjagran) January 7, 2020

सोमवार को जारी किया गया था गठन संबंधी नोटिस

संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस आर. भानुमति, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एल. नागेश्वर राव, जस्टिस एमएम शांतनागौदर, जस्टिस एसए नजीर, जस्टिस सुभाष रेड्डी, जस्टिस बीआर गवई और सूर्य कांत शामिल हैं। इस संविधान पीठ का कोई भी सदस्य पूर्व की पीठ में शामिल नहीं था। शीर्ष अदालत ने संविधान पीठ के गठन संबंधी नोटिस सोमवार को ही जारी किया था, लेकिन जजों के नामों की घोषणा मंगलवार को की गई।

उल्लेखनीय है कि वकीलों के एक संगठन ने याचिका दाखिल कर सभी उम्र की महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश दिए जाने संबंधी 28 सितंबर 2018 के ऐतिहासिक फैसले पर विचार करने का आग्रह किया है। पिछले साल 14 नवंबर को पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने वर्ष 2018 में 3:2 के बहुमत से सुनाए गए सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश संबंधी फैसले को सात सदस्यीय पीठ के समक्ष भेज दिया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि धार्मिक स्थलों में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी पर छिड़ी बहस सिर्फ सबरीमाला मंदिर तक ही सीमित नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा था कि ऐसे प्रतिबंध दूसरे धर्मो में भी हैं।

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