सहारनपुर दंगा: नासमझ नौकरशाही, बेलगाम बलवाई

गुरुद्वारा-अंबाला रोड से शुरू हुई और फिर पूरे शहर को अपने चपेट में लेने वाले दंगे की वजह की पड़ताल होती रहेगी। लेकिन सहारनपुर के प्रशासन, पुलिस और खुफिया तंत्र की नाकामी की जांच की कोई जरूरत नहीं है। हिंसा और उपद्रव जिस तरह से पूरे शहर में फैला उससे साफ है कि जिले का पूरा अमला हद दर्जे का

By Edited By: Publish:Sun, 27 Jul 2014 08:14 AM (IST) Updated:Sun, 27 Jul 2014 08:14 AM (IST)
सहारनपुर दंगा: नासमझ नौकरशाही, बेलगाम बलवाई

सहारनपुर, [संजीव जैन]। गुरुद्वारा-अंबाला रोड से शुरू हुई और फिर पूरे शहर को अपने चपेट में लेने वाले दंगे की वजह की पड़ताल होती रहेगी। लेकिन सहारनपुर के प्रशासन, पुलिस और खुफिया तंत्र की नाकामी की जांच की कोई जरूरत नहीं है। हिंसा और उपद्रव जिस तरह से पूरे शहर में फैला उससे साफ है कि जिले का पूरा अमला हद दर्जे का अनुभवहीन और नासमझ है।

सिख समुदाय के लोग गुरुद्वारे के भवन का निर्माण कर रहे थे दूसरा पक्ष इस भूमि को कब्रिस्तान की भूमि बताकर उसका विरोध कर रहा था। पुलिस-प्रशासन इस विवाद की संवेदनशीलता का जरा भी अंदाजा नहीं लगा सका। जबकि विवाद पुराना था और मसला हाईकोर्ट तक पहुंच चुका था। हिंसा शुरू होने के बाद भी घंटों तक हालात पुलिस के नियंत्रण से बाहर रहे। बवाली बेलगाम थे और पुलिस बेबस। पुलिस-प्रशासन के अफसरों को मौके से दौड़ा तक लिया गया। जिस स्थान पर निर्माण हो रहा था, उसके लिए सहारनपुर विकास प्राधिकरण से अनुमति नहीं थी। अगर संवेदनशीलता को एक क्षण के लिए भूल भी जाए तो तकनीकी तौर पर भी निर्माण कैसे हो रहा था, इसका जवाब किसी अफसर के पास नही है।

कुतुबशेर थाने में डीएम व एसएसपी अफसरों व गणमान्य लोगों के साथ बैठकर विवाद को सुलझाने का प्रयास कर रहे थे। कहा जा रहा है कि दूसरी ओर अफसरों के साथ इस बैठक में बैठे दो नेताओं के इशारे पर बवाल शुरू हो गया। कमिश्नर, डीआइजी की मौजूदगी में भी दंगाइयों ने पथराव किया। अंबाला रोड, रायवाला, नुमायश कैंप, गुरूद्वारा रोड, नेहरू नगर आदि स्थानों पर लूटपाट व आगजनी होती रही। हाथ में रिवाल्वर और माउजर लेकर पुलिस के सामने से ही दंगाई मोटरसाइकिल से निकलते रहे। सड़क पर चलते हुए लोगों के नाम पूछ कर उन पर गोलियां दागी गईं। लेकिन पुलिस अब तक तमाशबीन थी और अपनी जान बचाने की जुगत में लगी थी। इससे पुलिस के जज्बे और प्रशिक्षण का भी पता चलता है। बवाल और उपद्रवी बढ़ते जा रहे थे,लेकिन पुलिस व प्रशासनिक आला अधिकारी फोर्स की तादाद नहीं बढ़ा पा रहे थे। कमिश्नर तनवीर जफर अली ने जब हालात बेकाबू देखे तो उन्होंने डीएम को कफ्यरू लगाने के लिए कहा। इस आदेश पालन में ही आधा घंटा लग गया। जब गुरूद्वारा रोड व अंबाला रोड की आग अन्य क्षेत्रों में पहुंची तो डीएम ने कुतुबपुर, मंडी व सदर थाना क्षेत्र में क‌र्फ्यू लगाने की घोषणा की। कमिश्नर के बाद मंत्री राजेन्द्र राणा ने डीएम से बातचीत की और पूरे शहर में कफ्यरू लगा दिया गया। 11 बजे से सायं तीन बजे तक पीड़ितों ने डीएम का नंबर मिलाया, पर वह रिसीव नही हुआ। इसके बाद सरकारी मोबाइल ही बंद कर दिया। पत्रकार वार्ता में डीएम की सफाई थी कि भीड़ में होने के कारण फोन नहीं उठाये। सवाल उठता है कि आपात स्थिति में ही लोगों को मदद की जरूरत थी, लोग भी भीड़ और बलवे में घिरे होने के कारण फोन कर रहे थे।

फेल हुआ दंगा एक्शन प्लान

शनिवार को जिस तरह गुरुद्वारा रोड व अंबाला रोड समेत शहर केकई हिस्सों में बवाल हुआ, उसमें पुलिस प्रशासन का दंगा एक्शन प्लान फेल नजर आया। यह स्थिति तब है जब तीन दिन बाद ईद है। शहर में पुलिस के अलावा 2 जोनल मजिस्ट्रेट व 6 सेक्टर मजिस्ट्रेट शिफ्ट वार तैनात किए गए हैं। पीएसी और पैरा मिलिट्री कंपनी भी चुनाव के मद्देनजर सहारनपुर आ चुकी हैं, लेकिन फोर्स के आने मे लेटलतीफी ने दंगा नियंत्रण की पोल खोल दी। कंट्रोल रूम को सक्त्रिय कर जिला पुलिस को उससे जोड़ने, धारा 1 को सख्ती से लागू करने, ट्रैफिक डायवर्ट करने, पुलिस लाइन में घंटा बजाकर अतिरिक्त पुलिस को सक्रिय करने, अफसरों के आदेश पर पुलिस बल, टीयर गैस, स्क्वॉयड, रबर बुलेट, पीएसी व केंद्रीय बलों को संबंधित स्थानों पर रवाना करने, वज्र वाहन, केन वाहन, खुफिया विभाग से पल पल की रिपोर्ट लेने आदि कार्य होने थे पर शनिवार को सबकुछ हवा-हवाई नजर आया।

मुजफ्फरनगर से मंगाने पड़े ड्यूटी चार्ट

सहारनपुर सांप्रदायिक हिंसा के लिहाज से सदैव संवेदनशील रहा है। लेकिन अंबाला रोड पर हुई हिंसा में पुलिस-प्रशासन के दंगा नियंत्रण की पोल खुल गई। अधिकारियों के अनुभव का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें यह तक नहीं समझ में आ रहा था कि फोर्स और अधिकारियों की तैनाती कैसे की जाए। इसके लिए ड्यूटी चार्ट हाल में दंगे के त्रसदी से जूझे मुजफ्फरनगर से आननफानन में मंगाने पड़े।

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