अगर आप महिलाओं को पुरुषों से कमजोर समझते हैं तो यह खबर जरूर पढ़िए
ब्रिटेन में किए गए शोध के बाद उन लोगों की आंखें खुल जानी चाहिए तो महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले शारीरिक रूप से कमतर समझते हैं।
नई दिल्ली (जागरण स्पेशल)। महिलाएं जीवन के हर क्षेत्र में पुरुषों को कड़ी टक्कर दे रही है। ऑटो चलाने से लेकर हवाई जहाज उड़ाने तक के काम को वे बखूबी अंजाम दे रही हैं, लेकिन इसके बावजूद दकियानूसी सोच वाले लोगों को लगता है कि वे पुरुषों के मुकाबले शारीरिक रूप से कमजोर होती हैं। यह धारणा समाज में सदियों से जड़ जमाए बैठी है। बात चाहें भारत की हो या अमेरिका की, हर जगह महिलाओं को कमतर समझने वाले लोग मिल जाएंगे। बहरहाल, अब समय आ गया है कि ऐसे लोग अपनी धारणा को बदल लें। एक ताजा शोध में ऐसे ही लोगों की जड़बुद्धि पर कड़ा प्रहार किया गया है।
कमतर नहीं हैं महिलाएं
ब्रिटेन के ग्लासगो शहर में सोसाइटी फॉर एंडोक्राइनोलॉजी के सालाना सम्मेलन में पेश किए गए एक शोधपत्र के अनुसार महिलाएं किसी भी मायने में पुरुषों से कमतर नहीं है। इस शोध के तहत उन महिलाओं का अध्ययन किया गया जो ट्रांस-अंटार्कटिक अभियान में शामिल हुई थीं। शोधकर्ताओं ने पाया कि अत्यंत कठिन परिस्थितियों में भी महिलाओं ने पुरुषों के बराबर शारीरिक क्षमता का प्रदर्शन किया और इसकी वजह से उनकी सेहत पर भी कोई प्रतिकूल प्रभाव दर्ज नहीं किया गया। अगर महिलाओं को सही ट्रेनिंग दी जाए तो वे भी कठिन से कठिन काम को पुरुषों की ही तरह कारगर तरीके से अंजाम दे सकती हैं।
भारी वजन के साथ 1056 मील की ट्रेकिंग
इस अध्ययन के तहत शोधकर्ताओं ने इस साल जनवरी में अंटार्कटिक अभियान पर निकली छह महिला सैनिकों की यात्रा की निगरानी की। इन महिलाओं ने निर्धारित 62 दिन में अपना अभियान पूरा कर लिया। इस अभियान में इन महिलाओं को तेज हवाओं और हड्डियां जमा देने वाली ठंड के बीच पीठ पर 80 किलोग्राम के उपकरण लादकर 1056 मील की ट्रेकिंग करनी थी।
अभियान से पहले कड़ी ट्रेनिंग
अभियान पर निकलने से पहले इन सभी महिला सैनिकों को व्यापक तौर पर प्रशिक्षण दिया गया। डॉक्टरों की टीम ने अभियान से पहले इन महिलाओं की सेहत के जुड़े सभी मानकों के आंकड़े भी इकट्ठा किए गए ताकि अभियान के बाद उनमें आने वाले बदलावों को रेखांकित किया जा सके। अभियान के बाद शोधकर्ताओं ने पाया कि महिलाओं की सेहत से जुड़े सभी मानक जस के तस पाए गए या फिर उनमें मामूली गिरावट देखी गई जिसकी कुछ दिनों के अंदर ही भरपाई भी हो गई। यही नहीं, अभियान के दो हफ्ते बाद भी इन महिलाओं की शीरीरिक क्षमता बरकरार रही।
चर्बी कम हुई लेकिन मांसपेशियों पर असर नहीं
इस अभियान में शामिल मेजर नैटली टेलर के अनुसार शारीरिक दृष्टि से हमने हालात का सही तरीके से सामना किया। हमारी हड्डियां उतनी ही मजबूत थी जितनी अभियान पर निकलने से पहले थीं। अलबत्ता हमारे हॉरमोन के स्तर में थोड़ी गिरावट दर्ज की गई लेकिन दो हफ्ते के अंदर ही हमने दोबारा वही स्तर हासिल कर लिया। नैटली ने स्वीकार किया कि अभियान के बाद दल में शामिल सभी महिलाओं की चर्बी कम हो गई लेकिन मांसपेशियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
महिलाओं को लेकर धारणा बदलने का समय
इस अध्ययन का नेतृत्व यूनिवर्सिटी ऑफ ग्लासगो के डॉ. रॉबर्ट गिफर्ड ने किया था। उनके साथ यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग और रॉयल सेंटर फॉर डिफेंस के सहकर्मी भी शामिल थे। डॉ. गिफर्ड के अनुसार उनका अध्ययन कठिन परिस्थितियों में महिलाओं के शरीर पर पड़ने वाले असर को लेकर प्रचलित धारणा को खारिज करता है। जीव विज्ञानियों का मानना है कि इस शोध के बाद खतरनाक और तनाव भरे माहौल में महिलाओं के काम करने पर रोक की वकालत करने वालों को अपनी सोच बदल लेनी चाहिए जो यह मानते हैं कि कठिन परिस्थितियों में महिलाओं को शारीरिक नुकसान हो सकता है।