बस्तर में नक्सलियों के बीच आपसी टकराव के आसार बढ़े, खुफिया रिपोर्ट में हुआ खुलासा

2010 में नक्सलियों ने अपनी रणनीति में बदलाव किया और स्थानीय नेतृत्व को मौका देना शुरू किया।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Publish:Thu, 24 Jan 2019 07:45 PM (IST) Updated:Thu, 24 Jan 2019 07:45 PM (IST)
बस्तर में नक्सलियों के बीच आपसी टकराव के आसार बढ़े, खुफिया रिपोर्ट में हुआ खुलासा
बस्तर में नक्सलियों के बीच आपसी टकराव के आसार बढ़े, खुफिया रिपोर्ट में हुआ खुलासा

रायपुर, नईदुनिया राज्य ब्यूरो। बस्तर में नक्सल संगठन में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। अभी अंदर से जो रिपोर्ट आ रही है उससे सुरक्षा बलों की बांछे खिल गई हैं। दरअसल नक्सल संगठन में दरार की सूचना मिल रही है। इस दरार की वजह है नक्सल कमांडर हिड़मा का प्रमोशन। हिड़मा बस्तर का स्थानीय आदिवासी है जबकि नक्सल संगठन में बड़े पदों पर हमेशा आंध्रप्रदेश और तेलंगाना के नक्सली काबिज होते रहे। 

बस्तर के आदिवासी नक्सली फोर्स में सिर्फ लड़ाई के लिए ही रखे जाते थे। 2010 में नक्सलियों ने अपनी रणनीति में बदलाव किया और स्थानीय नेतृत्व को मौका देना शुरू किया। हिड़मा का यहीं से उदय हुआ। वह ऐसा कमांडर है जिसकी कोई तस्वीर फोर्स के पास नहीं है। हिड़मा सुकमा-बीजापुर इलाके में सक्रिय नक्सलियों की पहली बटालियन का कमांडर है। वह साउथ सब जोनल कमेटी का भी हेड है।

अब उसे केंद्रीय पालित ब्यूरो में लिए जाने की सूचना है। यही नक्सलियों के बीच दरार की वजह बताई जा रही है। खुफिया सूत्रों की मानें तो हिड़मा के प्रमोशन से आंध्र के नक्सल कमांडरों में असंतोष है। उन्हें लगता है कि हिड़मा को वामपंथी क्रांति और राजनीति के बारे में उतनी जानकारी नहीं है कि उसे बुद्धिजीवी माना जाए। वह लड़ाका भले ही बड़ा है। इस मुद्दे पर लगातार असंतोष से नक्सलियों के बीच आपसी संघर्ष शुरू हो सकता है। पुलिस इस पर नजर बनाए हुए है।

गांजा की खेती में जुटे स्थानीय नक्सली

खुफिया रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि जगरगुंडा इलाके में नक्सली गांजे की खेती कर रहे हैं। बड़े नक्सली नेताओं और छोटे कैडर के बीच तालमेल का अभाव है। छोटे नक्सली अपने नेताओं की बात नहीं मान रहे हैं और मनमानी उगाही की जा रही है। पैसे के वितरण को लेकर भी आपस में मतभेद की खबरें हैं। इन स्थितियों में यह आसार बन गए हैं कि नक्सली गुटों में बदलकर आपस में लड़ाई शुरू कर सकते हैं। पुलिस इन सूचनाओं के आधार पर नजर बनाए हुए है। अगर नक्सल संगठन में दरार आई तो इसका सीधा फायदा फोर्स को मिलेगा।

बस्तर में अब तक संगठित रहा है नक्सलवाद

बस्तर में नक्सली क्रांति करने नहीं आए थे। नक्सलबाड़ी और तेलंगाना के वारंगल इलाके में जब फोर्स का दबाव बढ़ा तब नक्सली बस्तर के जंगलों में छिपने आए थे। यहां उन्होंने स्थाई ठिकाना बनाया और बड़ी फोर्स खड़ी की। बस्तर में नक्सली बेहद अनुशासित और संगठित रहे हैं। पदानुक्रम के मुताबिक आदेश का पालन करने की परंपरा रही है। यही वजह है कि यहां चालीस साल से हरसंभव प्रयास करने के बाद भी नक्सलवाद खत्म नहीं किया जा सका है। अब जबकि नक्सलियों में फूट की खबरें हैं तो इसका फायदा फोर्स को मिल सकता है।

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