पराली से एक तरफ प्रदूषण तो एक तरफ किसानों के कमाई का बना जरिया

प्रशंसनीय पराली को एकत्रित करके उसका पशु चारे या मशरूम उगाने के कार्य में करते हैं इस्तेमाल

By Srishti VermaEdited By: Publish:Fri, 17 Nov 2017 10:14 AM (IST) Updated:Fri, 17 Nov 2017 10:14 AM (IST)
पराली से एक तरफ प्रदूषण तो एक तरफ किसानों के कमाई का बना जरिया
पराली से एक तरफ प्रदूषण तो एक तरफ किसानों के कमाई का बना जरिया

बाहरी दिल्ली (नवीन गौतम)। हरियाणा व पंजाब में जलाई जा रही धान की पराली से भले ही लोगों का दम घुट रहा हो मगर दिल्ली देहात के अधिकांश किसान पराली को जलाने के बजाय उससे पैसा व पुण्य अर्जित कर रहे हैं। यहां के किसान धान की पराली को एकत्रित करके उसको चारा काटने की मशीन से काटकर पशु चारे या मशरूम उगाने के कार्य में इस्तेमाल करते हैं। बहुत से किसान पराली को औद्योगिक इकाइयों में बेच देते हैं जो सामान की पैकिंग के काम में इस्तेमाल की जाती है।

दिल्ली देहात में धान की फसल उत्तर पश्चिमी दिल्ली में ज्यादा लगाई जाती है। बवाना, नांगल ठाकरान, दरियापुर, हरेवली, नया बांस, होलंबी, खेड़ा खुर्द, बुराड़ी आदि प्रमुख ऐसे गांव हैं जहां पहले ज्वार की पैदावार अधिक होती थी, लेकिन समय के साथ धान की पैदावार पर अधिक जोर दिया जाने लगा। यहां के किसान हार्वेस्टर कंबाइन से धान की फसल को नहीं कटवाते अपितु वह इसे मजदूरों के द्वारा हाथ से जमीन से सटाकर कटवाते हैं। उसके पश्चात दो-तीन दिन तक खेत में ही सुखाने के बाद हाथों से ही अनाज को पौधों से झाड़ के अलग करते हैं। हार्वेस्टर कंबाइन से फसल काटने पर चावल पर दबाव आने के कारण दस से पन्द्रह प्रतिशत दाने टूट जाते हैं। दिल्ली देहात के बवाना, सुल्तानपुर डबास तथा हरेवली में तीन बड़ी गोशालाएं भी हैं। जहां चारे के लिए कटी हुई पराली को खरीदकर गायों को खिलाया जाता है, इसलिए बहुत से किसान नि:शुल्क ही इस चारे को गोशालाओं में दान कर देते हैं।

इसके अलावा पराली को काट कर चारा बनाने के लिए इस सीजन में राजस्थान से किसान अपने ट्रैक्टर और मशीन लेकर यहां आते हैं। वे किसानों से या तो पराली खरीद कर एक जगह इकट्ठा कर लेते हैं या किसानों के लिए ही पराली को किराया लेकर चारे के रूप में काटते हैं, जिसे किसान अपने पशुओं को खिलाने के लिए भी इस्तेमाल करते हैं। बवाना के किसान हरि प्रकाश सहरावत ने बताया कि उन्होंने अपने खेत में लगभग 8 एकड़ में धान की फसल उगाई थी। जिसे मजदूरों द्वारा हाथ से कटवा कर तथा पराली को राजस्थान से आए हुए किसानों को प्रति एकड़ दो हजार रुपये में बेच दिया। जिससे धान की कटाई-झड़ाई का लगभग आधा खर्चा निकल जाता है। सहरावत जैसे अधिकांश किसानों का मानना है कि पराली जलाने के मामले वहीं ज्यादा होते है जहां हार्वेस्टर कंबाइन से धान की कटाई होती है।

पराली कारण होती तो चंडीगढ़ होता सबसे प्रदूषित शहर
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़: स्मॉग से निपटने को हरियाणा के साथ बातचीत कर लौटे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने निशाना साधा है। विज ने चुटकी ली कि सारी धुएं वाली हवा दिल्ली ही क्यों जाती हैं? फिर खुद ही जवाब दिया कि चंडीगढ़ हरियाणा और पंजाब के बीच में है, लेकिन वह तो कभी प्रदूषित नहीं हुआ। अगर पराली ही प्रदूषण का कारण होती तो सबसे पहले प्रदूषित होने वाला शहर चंडीगढ़ होता। दिल्ली में हमेशा रहने वाले प्रदूषण के लिए कौन जिम्मेदार है? केजरीवाल आग लगने पर कुआं खोदते हैं। विज ने कहा कि पराली सिर्फ दस-पंद्रह दिन के लिए जलती होगी, लेकिन दिल्ली में प्रदूषण सारा साल रहता है। इसलिए दिल्ली में प्रदूषण की समस्या सिर्फ पराली नहीं है।

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