Analysis: चीन के साथ संबंधों को नई दिशा देने के लिए मोदी सरकार की व्यापक रणनीति

निश्चित रूप से नरेंद्र मोदी और शी चिनफिंग के बीच यह दो दिवसीय शिखर बैठक दोनों पक्षों के राजनीतिक ज्ञान और विश्वास को बढ़ाएगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Fri, 27 Apr 2018 12:59 PM (IST) Updated:Fri, 27 Apr 2018 01:54 PM (IST)
Analysis: चीन के साथ संबंधों को नई दिशा देने के लिए मोदी सरकार की व्यापक रणनीति
Analysis: चीन के साथ संबंधों को नई दिशा देने के लिए मोदी सरकार की व्यापक रणनीति

[राजीव रंजन चतुर्वेदी]। मध्य चीन के हुबेई प्रांत की राजधानी वुहान में 27-28 अप्रैल को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ अनौपचारिक बैठक के लिए चीन के दो-दिवसीय दौरे पर हैं। शी और मोदी के बीच आखिरी बैठक नौवीं ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के बाद पिछले सितंबर में हुई थी। डोकलाम में हुए गतिरोध और सीमा पर अप्रत्याशित तनाव के बीच दोनों देशों के आपसी संबंधों में सामान्य स्थिति बहाल करने में सितंबर में हुई वार्ता ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। दोनों देशों के राजनयिकों और संबंधित अधिकारियों ने शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व के दिशानिर्देशों के तहत मीडिया की चकाचौंध से दूर रहकर परदे के पीछे इस शीर्ष बैठक की भूमिका तैयार की है। मोदी सरकार के नीतियों का खासकर विदेश नीति की आलोचना करने में मुखरित लोगों के लिए यह कदम अत्यंत आश्चर्यजनक लग रहा है, लेकिन चीनी राष्ट्रपति शी के साथ प्रधानमंत्री मोदी के इस शिखर वार्ता का दोनों देशों के संबंधों के साथ-साथ बदलते वैश्विकपरिवेश के लिए भी व्यापक महत्व है।

सर्वप्रथम, चीन के साथ तमाम मतभेदों के बावजूद मोदी ने उच्चतम राजनीतिक स्तर पर संपर्क और संवाद के जरिये दोनों देशों के बीच भागीदारी और सहयोग को प्रगाढ़ करने का पुरजोर प्रयत्न किया है। चीन के साथ संबंधों को नई दिशा देने के लिए मोदी सरकार ने एक व्यापक राजनीतिक ढांचे का विकास किया है। यह अनौपचारिक बैठक दोनों नेताओं के बीच परस्पर विश्वास और आपसी समझ को गहरा बनाने में मदद करेगी। साथ ही बदलते वैश्विक परिवेश में दोनों देशों के मध्य उपजे मतभेदों को कम करने में यह वार्ता संजीवनी का काम करेगी। शीर्ष स्तर पर इस मन की बात का उद्देश्य घरेलू और विदेशी नीति के संदर्भ में एक दूसरे के दृष्टिकोण को समझना और मौजूदा तथा संभावित गलतफहमियों को दूर करना भी है। आशा है कि मोदी और शी की शिखर वार्ता चीन-भारत संबंधों पर महत्वपूर्ण निर्णय लेगी और दोनों देशों को नए लक्ष्यों को स्थापित करने और द्विपक्षीय संबंधों के लिए नई संभावनाओं को खोलने के लिए एक नए प्रारूप से मार्गदर्शन करेगी।

द्वितीय, मोदी सरकार पार-क्षेत्रीय (ट्रांसरीजनल) सहयोग, जैसे बीसीआइएम (बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार) सरीखे पहल के माध्यम से ऐतिहासिक संपर्कों को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रही है। चीन के महत्वपूर्ण बेल्ट एंड रोड पहल पर भारत से मतभेद के चलते और कुछ अन्य घटनाक्रमों से बीसीआइएम कॉरिडोर का विकास प्रभावित हुआ था। ऐसी उम्मीद हैकि क्षेत्रीय विकास को गति देने के लिए बीसीआइएम पर चर्चा कर मतभेदों को दूर करने का प्रयास होगा।

तीसरा, चीन के साथ संबंधों में मोदी सरकार ने बदलाव के स्पष्ट संकेत दिए हैं। जहां एक ओर संप्रभुता के मसले पर भारत सरकार ने अपनी स्पष्ट नीति को रेखांकित किया और भारतीय हितों की सुरक्षा की अपनी प्रतिबद्धता दिखाई, वहीं वीजा उदारीकरण और चीन के साथ बढ़ते आर्थिक एवं वाणिज्यिक संबंध के द्वारा आर्थिक विकास और सहयोग के प्रति अपना समर्थन दिखाया। चीन के साथ संबंधों में सही संतुलन बनाना इस सरकार की प्राथमिकता है। व्यापार और निवेश पर व्यापक चर्चा और प्रमुख चुनौतियों के हल की दृष्टि से भी यह वार्ता महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। हाल ही में दोनों देशों के बीच हुए संयुक्त आर्थिक मंच की बैठक में विभिन्न मुद्दों पर मतभेदों को दूर करने के उपायों पर चर्चा हुई।

भारत से संबंधित विशेष व्यापार नियमों के कारण चीन में भारतीय व्यापार के सीमित अवसर हैं। इसलिए चर्चा में सेवा क्षेत्र और अन्य वस्तुओं के ऊपर भेदभावपूर्ण नियमों में बदलाव को अहमियत दिया जाना लाजिमी है। भारत में चीनी निवेश को बढ़ावा देने के लिए, खासकर आधारभूत संरचना के विकास और हाईस्पीड रेल परियोजनाओं के क्षेत्र में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश में किए गए आर्थिक सुधारों और व्यापार और निवेश को आकर्षक बनाने के लिए उठाए गए कदमों को रेखांकित कर सकते हैं।

अंतत: क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा एवं शांति को बढ़ावा देने और दुनिया की गंभीर चुनौतियों से निजात पाने में भारत का बढ़ता योगदान सराहनीय है। मोदी सरकार बड़े पैमाने पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय और मानवता के हित के विभिन्न मुद्दों पर एक नेतृत्व की भूमिका निभा रही है। आतंकवाद के खिलाफ भारत के रुख, अंतरराष्ट्रीय योग दिवस, अंतरराष्ट्रीय सोलर अलायन्स जैसे कई उदहारण हैं जहां भारत की सक्रियता स्पष्ट है। आतंकवाद के मुद्दे पर चीन के ढुलमुल और भारत विरोधी रवैये ने संबंधों में किरकिरी का काम किया। इसी तरह परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह यानी एनएसजी की सदस्यता के मुद्दे पर भी चीन के अड़ंगे ने दोनों देशों के रिश्तों में खटास घोल मनमुटाव को बढ़ाया है।

चीन को यह बात समझ आ गई है कि भारत के साथ संबंधों के लिए सीमा पर शांति और स्थिरता बनाए रखना एक जरूरी शर्त है। हालांकि डोकलाम मुद्दे से सीमा पर बढ़े तनाव और तमाम कयासों के बीच मामले को शांतिपूर्ण ढंग से राजनीतिक सुझबूझ और राजनयिक तरीकों से संभाला गया था। निश्चित रूप से मोदी और शी के बीच यह दो दिवसीय शिखर बैठक दोनों पक्षों के राजनीतिक ज्ञान और विश्वास को बढ़ावा देने का काम करेगा और मतभेदों के प्रबंधन को सुदृढ़ करेगा तथा द्विपक्षीय और वैश्विक मामलों पर आपसी सहयोग को मजबूती प्रदान करेगा।

निश्चित रूप से नरेंद्र मोदी और शी चिनफिंग के बीच यह दो दिवसीय शिखर बैठक दोनों पक्षों के राजनीतिक ज्ञान और विश्वास को बढ़ाएगा, मतभेदों के प्रबंधन को सुदृढ़ करेगा और द्विपक्षीय तथा वैश्विक मामलों पर आपसी सहयोग को मजबूती प्रदान करेगा।

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