करियप्पा से लेकर विंग कमांडर अभिनंदन तक युद्धबंदियों के जज्बे को सलाम

यह पहला मौका नहीं है जब पाकिस्तान ने भारतीय वायुसेना के जवानों को बंदी बनाया हो। तमाम वीर सपूत ऐसे रहे हैं जिन्हें जेनेवा समझौते के तहत पाक ने रिहा किया।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sat, 02 Mar 2019 09:28 AM (IST) Updated:Sat, 02 Mar 2019 12:12 PM (IST)
करियप्पा से लेकर विंग कमांडर अभिनंदन तक युद्धबंदियों के जज्बे को सलाम
करियप्पा से लेकर विंग कमांडर अभिनंदन तक युद्धबंदियों के जज्बे को सलाम

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। आज देश का एक-एक नागरिक पाकिस्तान द्वारा बनाए गए युद्धबंदी (प्रिजनर ऑफ वॉर) विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान के साहस को सलाम कर रहा है। वाघा बॉर्डर पर हर किसी ने पलकें बिछाकर खुले दिल से उनका स्वागत किया। हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब पाकिस्तान ने भारतीय वायुसेना के जवानों को बंदी बनाया हो। तमाम वीर सपूत ऐसे रहे हैं, जिन्हें जेनेवा समझौते के तहत पाक ने रिहा किया।

एयर मार्शल (रिटा.) के.सी करियप्पा
के.सी करियप्पा को 1965 में हुए भारत-पाक युद्ध के दौरान सीमा पार जाने पर पाक ने 22 सितंबर 1965 को युद्धबंदी बना लिया था। प्रिजनर ऑफ वॉर सेल में रखने से पहले उन्हें आठ सप्ताह तक एकांत में रखा गया था। बाद में पाक ने उन्हें रिहा कर दिया।

एयर मार्शल (रिटा.) बृजपाल सिंह सिकंद
भारत-पाक युद्ध 1965 के दौरान तत्कालीन स्क्वाड्रन लीडर बृजपाल सिंह को पाक सीमा में पकड़ लिया गया था। युद्ध के दौरान वो एक जीनाट विमान उड़ा रहे थे। बाद में जेनेवा संधि के तहत उन्हें पाकिस्तान ने रिहा कर दिया।

एवाई मार्शल (रिटा.) आदित्य विक्रम पेठिया
रिटायर्ड एयर वाइस मार्शल आदित्य विक्रम पेठिया 1971 में युद्ध के दौरान पाकिस्तान में युद्ध बंदी रह चुके हैं। वह पांच महीने युद्ध बंदी रहे। उन्हें जो यातनाएं दी गयीं, उसे बयां करते हुए आज भी उनकी आंखों में गुस्सा उतर आता है।

लेफ्टिनेंट नचिकेता
कारगिल युद्ध के दौरान 27 मई 1999 को नचिकेता मिग-27 से दुश्मनों के ठिकानों पर हमला कर रहे थे। तभी उनके विमान का इंजन बंद हो गया। विमान से कूदकर वह जैसे ही पैराशूट से जिस जगह पर उतरे वहां मौजूद पाक सेना ने उन्हें पकड़ लिया था।

कौन होते हैं युद्धबंदी?
युद्ध के दौरान अगर कोई सैनिक शत्रु देश की सीमा में दाखिल हो जाता है और उसे गिरफ्तार किया जाता है तो वह युद्धबंदी माना जाता है।

क्या है जेनेवा संधि
युद्धबंदियों (प्रिजनर ऑफ वॉर) के अधिकारों को बरकरार रखने के जेनेवा समझौते में कई नियम दिए गए हैं। जेनेवा समझौते में चार संधियां और तीन

अतिरिक्त प्रोटोकॉल (मसौदे) शामिल हैं, जिसका मकसद युद्ध के वक्त मानवीय मूल्यों को बनाए रखने के लिए कानून तैयार करना है। पहली संधि 1864 में हुई थी। इसके बाद दूसरी और तीसरी संधि 1906 और 1929 में हुई। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1949 में 194 देशों ने मिलकर चौथी संधि की थी। जेनेवा समझौते में युद्ध के दौरान गिरफ्तार सैनिकों और घायल लोगों के साथ कैसा बर्ताव करना है, इसको लेकर दिशा निर्देश दिए गए हैं। इसमें साफ तौर बताया गया है कि युद्धबंदियों के साथ बर्बरतापूर्ण व्यवहार नहीं होना चाहिए। उनके साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए। साथ ही सैनिकों को कानूनी सुविधा भी मुहैया करानी होगी। जेनेवा संधि के तहत युद्धबंदियों को डराया-धमकाया नहीं जा सकता। इसके अलावा उन्हें अपमानित नहीं किया जा सकता। युद्ध के बाद युद्धबंदियों को वापस लौटाना होता है। युद्धबंदियों से सिर्फ उनके नाम, सैन्य पद, नंबर और यूनिट के बारे में पूछा जा सकता है।

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