टीकों का प्रभाव कम नहीं करता SARS-CoV-2 वायरस का नया वैरिएंट ओमिक्रोन

ओमिक्रोन वैरिएंट को डब्ल्यूएचओ ने वैरिएंट आफ कंसर्न की श्रेणी में रखा है। इसका अर्थ है कि यह वैरिएंट ज्यादा संक्रामक और घातक हो सकता है। अभी इस बारे में वैज्ञानिक नतीजे तो नहीं मिले हैं लेकिन फिलहाल इससे संभलकर रहने की जरूरत है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sat, 04 Dec 2021 09:11 AM (IST) Updated:Sat, 04 Dec 2021 09:11 AM (IST)
टीकों का प्रभाव कम नहीं करता SARS-CoV-2 वायरस का नया वैरिएंट ओमिक्रोन
भारत में भी इस वैरिएंट की पुष्टि हो चुकी है।

नई दिल्‍ली, प्रेट्र। कोरोना महामारी का कारण बनने वाले सार्स-कोव-2 वायरस के नए वैरिएंट ओमिक्रोन को लेकर हर तरफ आशंका का दौर है। इस वैरिएंट में जितने ज्यादा म्युटेशन पाए गए हैं, उससे इसकी संक्रमण क्षमता बहुत ज्यादा होने का अनुमान लगाया जा रहा है। साथ ही यह डर भी है कि नया वैरिएंट मौजूदा टीकों के प्रभाव को भी कम कर सकता है। भारत में भी इस वैरिएंट की पुष्टि हो चुकी है। इस बीच केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कुछ प्रश्न-उत्तर के माध्यम से लोगों की शंका का समाधान करने का प्रयास किया है। इसमें कहा गया है कि अभी ऐसा कोई प्रमाण नहीं है, जिससे यह माना जाए कि यह वैरिएंट टीके का प्रभाव कम कर सकता है।

तीसरी लहर की कितनी आशंका है?: अभी स्पष्ट नहीं है कि यह वायरस कितनी तेजी से फैलता है और कितना गंभीर है। हालांकि भारत में तेजी से टीकाकरण हो रहा है। सीरो सर्वे के मुताबिक, बहुत बड़ी आबादी डेल्टा वैरिएंट से संक्रमित होकर ठीक हो चुकी है। ऐसे में भारत में स्थिति कम गंभीर होने का अनुमान है। वैज्ञानिक प्रमाण अभी मिलने बाकी हैं। उपलब्ध टीके इस पर कितने प्रभावी हैं? मौजूदा टीकों के ओमिक्रोन पर प्रभावी नहीं होने का कोई प्रमाण अभी नहीं मिला है। कुछ म्युटेशन को देखते हुए यह अनुमान है कि प्रभाव थोड़ा कम हो सकता है। हालांकि शरीर में बनी एंटीबाडी और सेल्युलर इम्युनिटी भी वायरस के खिलाफ सुरक्षा का काम करती है और इनका प्रभाव बने रहने का अनुमान है। इसलिए सभी लोगों को जल्द से जल्द टीका लगवाना चाहिए।

मौजूदा तरीके ओमिक्रोन की जांच में कितने कारगर हैं?: शरीर में वायरस की मौजूदगी का पता लगाने के लिए आरटी- पीसीआर टेस्ट में वायरस के कुछ विशेष जीन की जांच की जाती है। इनमें स्पाइक (एस), एनवलप्ड (ई) और न्यूक्लिओकैपसिड (एन) जीन शामिल हैं। ओमिक्रोन के स्पाइक में बहुत ज्यादा बदलाव देखा

गया है। इसलिए कुछ मामलों में एस-जीन पकड़ में नहीं आएगा। इसे एस-जीन ड्राप आउट कहा जाता है। जांच के दौरान एस-जीन ड्राप आउट को ओमिक्रोन की पहचान के तौर पर प्रयोग किया जा सकता है। हालांकि पुष्टि के लिए जीन की जरूरत होती है।

कितना सतर्क रहने की जरूरत है?: इस वैरिएंट को डब्ल्यूएचओ ने वैरिएंट आफ कंसर्न की श्रेणी में रखा है। इसका अर्थ है कि यह वैरिएंट ज्यादा संक्रामक और घातक हो सकता है। अभी इस बारे में वैज्ञानिक नतीजे तो नहीं मिले हैं, लेकिन फिलहाल इससे संभलकर रहने की जरूरत है।

बचाव के लिए कौन से कदम उठाने चाहिए?: वायरस के किसी भी वैरिएंट से बचाव के मामले में शारीरिक दूरी का पालन करना और मास्क लगाना कारगर है। साथ ही हाथों की साफ-सफाई का भी पूरा ध्यान रखना चाहिए। जिन लोगों ने अब तक टीका नहीं लगवाया है, उन्हें जल्द से जल्द टीका लगवाना चाहिए। अब तक के प्रमाण बताते हैं कि टीका कोरोना संक्रमण को गंभीर होने से रोकता है। टीका लगवा चुके लोगों के अस्पताल में भर्ती होने के मामले कम पाए गए हैं।

दोबारा संक्रमण का खतरा तीन गुना कर सकता है नया वैरिएंट: इस बीच, दक्षिणी अफ्रीकी विज्ञानियों ने अपने एक शुरुआती शोध में पाया है कि बीटा और डेल्टा की तुलना में ओमिक्रोन दोबारा संक्रमण का खतरा तीन गुना तक बढ़ा देता है। ओमिक्रोन पहले के संक्रमण से शरीर में बनी एंटीबाडी को चकमा देने में काफी हद तक सक्षम पाया गया है। लोगों की लापरवाही को देखते हुए यह तथ्य और भी चिंता बढ़ाने वाला है। आनलाइन सर्वे फर्म लोकल सर्किल्स के मुताबिक, भारत में बहुत कम लोग ही अब मास्क लेकर बाहर निकल रहे हैं। ओमिक्रोन के मामले आने के बाद भी बमुश्किल दो प्रतिशत लोगों को लगता है कि मास्क पहनने से बचाव हो सकता है। तिहाई लोगों का कहना है कि उनके क्षेत्र में लोग मास्क नहीं लगा रहे हैं।

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