14 साल में बना सिग्नेचर ब्रिज, देश-दुनिया में इससे कम समय में हो गए बड़े-बड़े निर्माण

स्टैचू ऑफ यूनिटी सबसे कम वक्त में बनने वाली दुनिया की पहली प्रतिमा है, जबकि दिल्ली के सिग्नेचर ब्रिज को बनने में 14 साल लग गए और खर्च चार गुना बढ़ गया।

By JP YadavEdited By: Publish:Mon, 05 Nov 2018 11:44 AM (IST) Updated:Mon, 05 Nov 2018 12:08 PM (IST)
14 साल में बना सिग्नेचर ब्रिज, देश-दुनिया में इससे कम समय में हो गए बड़े-बड़े निर्माण
14 साल में बना सिग्नेचर ब्रिज, देश-दुनिया में इससे कम समय में हो गए बड़े-बड़े निर्माण

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। भारत में सरकारों की लेटलतीफी के चलते जनहित से जुड़े प्रोजेक्ट्स का पूरा न होना कोई नई बात नहीं है, लेकिन महज कुछ साल में पूरा होने वाले प्रोजेक्ट में 14 साल लग जाएं तो यह किसी अजूबे से कम नहीं है। लेकिन यह अजूबा दिल्ली में बने महंगे 'सिग्नेचर ब्रिज' के साथ हुआ है। 1997 में इसकी परिकल्पना की गई थी और सात साल बाद यानी 2004 में इस सिग्नेचर ब्रिज का प्रोजेक्ट का तैयार किया गया था। फिर तीन साल बाद सन् 2007 में इस प्रोजेक्ट को तत्कालीन दिल्ली सरकार ने मंजूरी दी। इस प्रोजक्ट को सन् 2010 में होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स के समय पूरा होना था, लेकिन यह पूरा हुआ 8 साल बाद यानी 2018 में। कुलमिलाकर इस प्रोजेक्ट के निर्माण में 14 साल से ज्यादा का समय लग गया।

इस दौरान लंबा समय बीतने से इस पर खर्च भी बढ़ा। इस परियोजना पर शुरू में 464 करोड़ की धनराशि निर्धारित की गई थी, लेकिन कुछ बदलाव के बाद योजना की लागत 2007 में दिल्ली सरकार ने 1100 करोड़ रुपये कर दी थी। अब इस परियोजना की राशि 1518.37 करोड़ रुपये पहुंच गई। ब्रिज करीब 700 मीटर लंबा है, जिसमें दोनों ओर चार-चार लेन हैं। यह 35.2 मीटर चौड़ा है। कुलमिलाकर डेढ़ दशक के दौरान इसका खर्च तकरीबन चार गुना बढ़ गया।

सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में बड़े पुल और प्रोजेक्ट बनाए हैं, जिन्होंने दुनिया भर में साख कमाई है। इस दौरान किसी प्रोजेक्ट में कम समय लगा तो किसी प्रोजेक्ट में उम्मीद से ज्यादा समय लगा। आइए ऐसे प्रोजेक्ट पर नजर डालते हैं, जिन पर समय भी ज्यादा लगा और पैसा भी। वहीं, कुछ प्रोजेक्ट निर्धारित समय में ही पूरे हो गए। 

एशिया की सबसे लंबी टनल भारत में

भारत के जम्मू-श्रीनगर राज्य के हाईवे पर एशिया की सबसे लंबी चनैनी-नाशरी टनल का निर्माण हुआ है। 9.2 किमी लंबी इस सुरंग को बनाने में 2500 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। इस सुरंग से हर मौसम में जम्मू और कश्मीर एक दूसरे से जुड़े रहते हैं, यानि बर्फबारी के दौरान भी जम्मू और श्रीनगर मार्ग अब अवरुद्ध नहीं रहता।

टनल की विशेषता

 जम्मू से श्रीनगर की दूरी 30 किलोमीटर कम हुई। दोनों में से किसी भी शहर में पहुंचने में अब 2.30 घंटे कम लग रहे हैं।   चेनानी से नाशरी की दूरी वैसे तो 41 किलोमीटर है, लेकिन इस टनल के शुरू होने से यह दूरी सिर्फ 10.9 किलोमीटर रह गई है। खास बात ये है कि घाटी में एवलांच या स्नोफॉल के दौरान भी इस टनल के ऑपरेशन पर कोई दिक्कत नहीं है। सुरंग से हर साल करीब 99 करोड़ रुपए के फ्यूल की बचत हो रही है।   इसके ऑपरेशन की जिम्मेदारी नेशनल हाईवे अथॉरिटी यानि NHAI संभाल रही है।   पर्यावरण को विशेष ध्यान रखा गया है। टनल के बाहर केवल स्वच्छ हवा ही जाएगी ताकि पर्यावरण प्रदूषित न हो। टनल के आने और जाने का एक ही रास्ता है। बारह हजार टन स्टील और पैंसठ लाख सीमेंट की बोरियां इस्तेमाल हुई हैं।

भारत का सबसे लंबा पुल

भारत का सबसे लंबा पुल ढोला सादिया पुल है। यह ब्रह्मपुत्र की एक सहायक नदी 'लोहित' पर बना हुआ है। यह पुल असम के ढोला और अरुणाचल प्रदेश के सादिया शहर को जोड़ता है। इस पुल के बनने की शुरुआत 2011 में हुई थी, जिसकी निर्माण लागत 2056 करोड़ रुपए आई है। इस पुल का निर्माण होने के कारण अरुणाचल प्रदेश और असम की बीच की दूरी में 165 किलोमीटर का अंतर आया है, जबकि इसके बन जाने के कारण इन दोनों राज्यों के बीच की दूरी तय करने में 5 घंटे का समय कम लगता है। इसे बनाने में साढ़े चार साल का ही समय लगा।

जानें- खूबी  ढोला-सादिया पुल की लंबाई 9.15 किमी है। इस लिहाज से यह बांद्रा-वर्ली सी-लिंक से भी 30% ज्यादा लंबा है। पुल बहुत ही मजबूत है जो सेना के टैंकों के भार को संभालने की क्षमता भी रखता है भारतीय सेना के 60 टन वजनी टैंक भी आसानी से निकल सकते हैं। भारत अब आसानी से अपने टैंक इस पुल के जरिए अरुणाचल प्रदेश की सीमा तक ले जा सकता है जिसके कारण भारत-चीन के पूर्वोत्तर में रक्षा जरूरतों को इसकी सेवा प्रदान की जा सके । चीन की सीमा से इस पुल की हवाई दूरी 100 किमी से भी कम है यह पुल असम की राजधानी दिसपुर से 540 किमी और अरुणाचल की राजधानी ईटानगर से 300 किमी दूर है। तेजपुर के करीब कलाईभोमोरा पुल के बाद ब्रह्मपुत्र पर अगले 375 किमी तक कोई दूसरा पुल नहीं है।  अभी तक इस इलाके में नदी के आरपार के सारे कारोबार नावों के जरिये ही होते रहे हैं। साल 2011 इसे बनाने का काम शुरू हुआ और इसकी लागत 950 करोड़ रुपये है।
 

चीन ने नौ साल में बनाया सबसे लंबा पुल

चीन-हांगकांग के बीच बना दुनिया का सबसे लंबा समुद्री पुल पिछले महीने 24 अक्टूबर को आम जनता के लिए खोला गया। 55 किलोमीटर लंबे इस पुल का नाम हांगकांग-झुहैइ-मकाउ है। पर्ल रिवर ईस्टूरी पर स्थित बने इस पुल का निर्माण दिसंबर 2009 में शुरू हुआ था। 55 किमी लंबा यह केबल ब्रिज और टनल कई शहरों को आपस में जोड़ता है। इस पुल से हांगकांग और चीन के झुहैइ शहर के बीच की दूरी तीन घंटे से घटकर सिर्फ 30 मिनट रह गई है। यह पुल हांगकांग अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट को सीधा जोड़ता है। जानकारी के मुताबिक, यह पुल पर्ल रिवर एस्चुरी के लिंगदिंग्यांग जल क्षेत्र में स्थित है। 20 अरब डॉलर (लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपये) की इस परियोजना को 9 साल में पूरा किया गया है।

जानें खूबियां पुल के निर्माण में चार लाख टन स्टील का इस्तेमाल किया गया है, जो 60 एफिल टावर्स बनाने के लिए पर्याप्त होगा। तीन तारों की सीरीज से इस पुल को तैयार किया गया है। पुल निर्माण में पानी के नीचे बनी 6.7 किलोमीटर लंबी सुरंग का निर्माण भी किया गया जो दो कृत्रिम द्वीपों को जोड़ती है। इस पुल में डुअल थ्री लेन है, जो समुद्र के ऊपर 22.9 किलोमीटर है जबकि 6.7 किलोमीटर समुद्र के नीचे सुरंगनुमा शक्ल में है। पुल की गहराई 44 मीटर तक है। पुल का बाकी हिस्सा जमीन पर बना है। सुरंग के दोनों तरफ दो कृत्रिम द्वीप हैं। ये दोनों 10 लाख वर्ग फुट के ज्यादा इलाके में बने हैं। इस पुल के निर्माण में जो स्टील लगा है वो भूकंप रोधी है और उस पर रिक्टर स्कैल पर 8 की तीव्रता वाले भूकंप का भी कोई असर नहीं होगा।

स्टैचू ऑफ यूनिटी

'स्टैचू ऑफ यूनिटी' प्रतिमा इस दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है। इसकी ऊंचाई 182 मीटर है, जबकि स्टैचू ऑफ़ लिबर्टी 93 मीटर की है। 'स्टैचू ऑफ यूनिटी' प्रोजेक्ट पर तकरीबन 2900 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं और इस बनाने में 42 महीने का समय लगा है। ये प्रोजेक्ट मई 2015 में शुरू हुआ था। इस मूर्ति को राम वी सुतार ने डिज़ाइन किया है, जिन्हें पद्मभूषण सम्मान भी मिला है। 'स्टैचू ऑफ यूनिटी' गुजरात में वडोदरा से 90 किलोमीटर की दूरी पर है। सरदार सरोवर बांध के पास इस जगह का नाम साधु बेट द्वीप है और ये प्रतिमा नर्मदा नदी के बीच बनी हुई है।

जानिये खूबियां प्रतिमा का बेस ही 25 मीटर ऊंचा है, जिसमें प्रदर्शनी हॉल है। प्रतिमा के लिए लेजर लाइटिंग की व्यवस्था की गई है। प्रतिमा के आसपास फूलों का गार्डन भी है, जिसे वैली ऑफ फ्लॉवर्स नाम दिया गया है। यहां सालभर रंग-बिरंगे फूलों के नजारों और उनकी खुशबू का मजा ले सकेंगे। सरदार पटेल की इस स्टैचू की ऊंचाई 182 मीटर है। इस स्टैचू की ऊंचाई 182 मीटर है, जो दुनिया की सबसे उंची है। स्टैचू में कंधे 140 फीट के हैं, यानी इंडिया गेट से भी 5 फीट ज्यादा है। सरदार पटेल की प्रतिमा के होठ, आंखों और जैकेट के बटन की ऊंचाई किसी इंसान के कद के बराबर है। यहां पर 6.5 की तीव्रता के भूकंप से लेकर 220 किमी/घंटे की रफ्तार के तूफान में भी अटल रहेंगे प्रतिमा के रूप में सरदार पटेल। स्टेचू ऑफ यूनिटी सबसे कम वक्त में बनने वाली दुनिया की पहली प्रतिमा है। यह प्रतिमा करीब 7 किमी दूर से दिखाई देती है। प्रतिमा में ऊपर पहुंचकर सरदार सरोवर बांध और नर्मदा के 17 किमी लंबे तट पर फैली फूलों की वैली को देखा जा सकेगा।

दिल्ली मेट्रो

दिल्ली में मेट्रो और सिग्नेचर ब्रिज की परिकल्पना एक-दो साल के अंतराल में की गई। जहां एक ओर मेट्रो तीन राज्यों में 313 किलोमीटर में फर्राटा भर रही है, वहीं सिग्नेजर ब्रिज बनने में 14 साल का वक्त लग गया। वर्तमान में दिल्ली मेट्रो नेटवर्क 229 स्टेशनों के साथ 314 किमी तक फैल गया है। इसके साथ ही यह 300 किमी का स्तर पार कर, दुनिया की शीर्ष मेट्रो प्रणाली में शामिल हो गई है। इस सूची में लंदन, बीजिंग, शंघाई, न्यूयॉर्क की मेट्रो पहले ही शामिल है।

चीन में बना है दुनिया का सबसे बड़ा पुल

पूर्वी चीन के शैनडॉन्ग राज्य में दुनिया का सबसे लंबा पुल बना है। और यह पुल 42 किमी लंबा है। इस पुल से करीब 30 हजार वाहन रोज निकलते हैं। यह ब्रिज दुनिया का सबसे लंबा ब्रिज है। इस पर 6 लेन का रास्ता बनाया गया है। यह शैनडॉन्ग राज्य के किंगडाओ शहर को हुआंगडाओ जिले से जोड़ता है। इस ब्रिज को बनाने में तकरीबन 8.6 बिलियन यूएस डॉलर का खर्च आया है। यह मात्र 4 सालों में बनकर तैयार हो गया था। इस ब्रिज में करीब 10 हजार वर्करों ने लगातार दिन-रात काम करके इसका तेजी से निर्माण किया।

खूबी इस पुल का वजन 4 लाख 50 हजार टन है और यह 5200 पिलर्स पर खड़ा किया गया है। इससे पहले अमेरिका के लुसियाना स्टेट के 37 किलोमीटर लंबे पुल को पानी पर बने सबसे लंबे पुल का दर्जा हासिल था। यह इतना मजबूत है कि 8 मैग्नीट्यूड का भूकंप भी इसे नहीं गिरा पाएगा। दुनिया का सबसे लंबा रेल पुल भी चीन में ही है। शंघाई के पास स्थित दयांग-कुंशन रेल ब्रिज की लंबाई 164 किमी है।

 

बुर्ज खलीफा, दुबई

828 मीटर ऊंची यह इमारत दुबई में बनी है। इसमें कुल 160 मंजिल हैं। इस इमारत को बनाने में 1.5 ब‍िलिन डॉलर खर्च हुए हैं। बुर्ज खलीफा दुनिया की सबसे ऊंची इमारत है। यह इमारत विश्‍व के सबसे महंगे निर्माणों में से एक है।

खूबियां बुर्ज खलीफा को 2004 से 2010 के बीच बनवाया, इसे बनाने में 6 साल का समय लगा था। बुर्ज खलीफा के मालिक का नाम ईमार है। बुर्ज खलीफा को बनाने में 8 अरब डॉलर खर्च हुए थे। बुर्ज खलीफा आइफिल टावर की तुलना में 3 गुना ज्यादा ऊंचा है। बुर्ज खलीफा की ऊंचाई 828 मीटर (2716.5 फिट है)। बुर्ज खलीफा कुल 163 मंजिला इमारत है। इसमें 304 होटल और 900 अपार्टमेंटस है। बुर्ज खलीफा में 58 लिफ्ट और 2957 पार्किंग की जगह मौजूद है। बुर्ज खलीफा को पहले बुर्ज दुबई के नाम से जाना जाता था बाद में यहां के राष्ट्रपति खलीफा बिन जायेद अल नहृान के सम्मान में इसका नाम बुर्ज खलीफा रख दिया गया। बुर्ज खलीफा बनने के समय करीबन 12000 मजदूर दिन रात काम करते थे। इसे बनाने में एक लाख हाथियों के बराबर कंक्रीट और पांच A380 हवाई जहाज के बराबर एलुमिनियम लगा है। बुर्ज खलीफा में एक समय में लगभग 35000 लोगों के रहने की व्यवस्था है। बुर्ज खलीफा इतना बड़ा है कि आप 95 किलोमीटर दूर से भी इसको देख सकते हैं। यहां तक कि इस की चोटी से पड़ोसी देश ईरान को भी देखा जा सकता है।

हीथ्रो टर्मिनल 2, लंदन

लंदन में बने हीथ्रो एयरपोर्ट टर्मिनल 2 को क्‍वींस टर्मिनल भी कहा जाता है। तकनीति और कला के इस शानदार टर्मिनल को बनाने में 3.4 बिलियन डॉलर खर्च हुए। हीथ्रो की पहली बिल्डिंग को 1995 में यात्रियों के लिए खोल दिया गया था। क्‍वीन एलीजाबेथ द्वतीय के द्वारा जून 2014 में इसका शुभारंभ किया था।

ओकलैंड बे ब्रिज, सेन सेन फ्रेंसिसको

यूएस के सेन फ्रेंसिसको में बना ओकलैंड बे ब्रिज दुनिया के सबसे महंगे पुल निर्माण में शामिल है। इसे बनाने में 6.5 बिलियन डॉलर का खर्च आया था। यह अभी तक का सबसे महंगा पुल निर्माण है। इंजीनियर्स ने दावा किया है कि आने वाले 1500 सालों तक इस पुल को कोई भी नुकसान नही होगा।

क्रासरेल लंदन

क्रॉस रेल यूरोप में बना बड़ा कंस्‍ट्रेक्‍शन प्रोजेक्‍ट है। इसे लंदन और हीथ्रो एयरपोर्ट के बीच में उन्‍हें जोड़ने के लिए बनाया जा रहा है। इसके बनने में कुल 21.6 बिलियन की लागत आ रही है। यह अभी भी निमार्णधीन है।

इंटरनेशनल एयरपोर्ट हांगकांग

हांगकांग में बना यह सबसे बड़ा एयरपोर्ट है। यहां से 190 देशों में उड़ने वाली 100 उड़ानों को नियंत्रित किया जाता है। इसे बनाने में 29 बिलियन डॉलर का खर्च आया था। यह दुनिया का सबसे बड़ा कार्गो गेटवे भी है।

हिंकली प्‍वाइंट सी न्‍यूक्लियर पावर स्‍टेशन, इंग्‍लैंड

ब्रिटिश सरकार ने इस पावर प्रोजेक्‍ट को पास किया है। यह न्‍यूक्लियर पावर स्‍टेशन 3200 एमडब्‍लूई न्‍यूक्लियर पावर सटेशन के साथ दो यूरोपियन प्रेशराइज्‍ड रियेक्‍टर के साथ इंग्‍लैंड के आसपास बनेगा। इसे बनाने में 35 बिलियन डॉलर की लागत आएगी। 2020 तक यह एनर्जी देना भी शुरू कर सकता है।

गारगन लिक्‍वीफाइड नेचुरल गैस प्‍लांट, आस्‍ट्रेलिया

आस्‍ट्रेलिया के समुंद्र में शेवरन नाम की कंपनी ने आस्‍ट्रेलिया के नॉर्थवेस्‍ट कोस्‍ट में एक आइलैंड पर गारगान गैस प्‍लांट बना है। यह प्‍लांट 15 मिलियन टन गैस क्षमता रखता है। कंपनी मार्च 2016 से प्रोडेक्‍शन का काम शुरू कर देगी। यह प्‍लांट साठ सालों तक चलेगा। इस प्‍लांट को बनाने में 54 बिलियन डॉलर का खर्च आया है।

इंटरनेशनल स्‍पेस स्‍टेशन

अंतरिक्ष में बना इंटरनेशल स्‍पेस स्‍टेशन अभी तक के सबसे महंगे निमार्णों में से एक है। इसे बनाने में 110 बिलियन डॉलर का खर्च आया। यह एक फुटबॉल के मैदान जितना बड़ा है। यह एक सैटेलाइट है। यह पृथ्‍वी के चारों ओर चक्‍कर लगाता है।

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