पुराने नेताओं की गिरफ्तारी और सरेंडर से नक्सलियों में नेतृत्व का संकट, इलाज के अभाव में दम तोड़ रहे कई सदस्य

पोलित ब्यूरो और सेंट्रल कमेटी के सदस्यों में दहशत का आलम यह है कि वे अपने ही कैडर से सीधे मिलने से बच रहे हैं और केवल चुनिंदा नक्सलियों को ही उनसे मिलने दिया जाता है। (फाइल फोटो)

By Jagran NewsEdited By: Publish:Thu, 30 Mar 2023 07:57 PM (IST) Updated:Thu, 30 Mar 2023 07:57 PM (IST)
पुराने नेताओं की गिरफ्तारी और सरेंडर से नक्सलियों में नेतृत्व का संकट, इलाज के अभाव में दम तोड़ रहे कई सदस्य
पुराने नेताओं की गिरफ्तारी और सरेंडर से नक्सलियों में नेतृत्व का संकट

नई दिल्ली, नीलू रंजन। सुरक्षा बलों के लगातार कसते शिकंजे के बीच नक्सलियों के सामने नेतृत्व का संकट खड़ा हो गया है। पिछले दो सालों के भीतर सीपीआई (माओवादी) के शीर्ष संगठन पोलित ब्यूरो और सेंट्रल कमेटी के छह सदस्यों को सुरक्षा बलों ने गिरफ्तार कर लिया है, दो ने आत्मसमर्पण कर दिया है, एक की मुठभेड़ में मौत हो गई है और जंगल में इलाज के अभाव में बीमारी से तीन सदस्यों की मौत हो गई है।

पोलित ब्यूरो और सेंट्रल कमेटी के सदस्यों में दहशत का आलम यह है कि वे अपने ही कैडर से सीधे मिलने से बच रहे हैं और केवल चुनिंदा नक्सलियों को ही उनसे मिलने दिया जाता है। ध्यान देने की बात है कि सीपीआई (माओवादी) में पोलित ब्यूरो शीर्ष संगठन है और इसके नीचे सेंट्रल कमेटी आता है।

पोलित ब्यूरो में होते थे 14 सदस्य

पोलित ब्यूरो के लिए फैसले को सेंट्रल कमेटी के सदस्य नीचे कैडर तक पहुंचाते हैं और उन पर अमल सुनिश्चित करते हैं। 2004 में एमसीसी और पीपुल्स वॉर ग्रुप को सीपीआई (माओवादी) के गठन के समय पोलित ब्यूरो में 14 और सेंट्रल कमेटी में 33 सदस्य थे।

मुपल्ला लक्ष्मण राव उर्फ गणपति के नेतृत्व में सीपीआई (माओवादी) ने नेपाल से तमिलनाडु तक रेड कोरिडोर स्थापित कर लिया था और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसे आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा करार दिया था, लेकिन 2019 तक आते-आते बीमारी और याददाश्त खोने की वजह से गणपति को महासचिव के पद से हटाकर नमबल्ला केसव राव को कमान सौंपी गई, लेकिन 2019 के बाद सुरक्षा बलों के ऑपरेशन के कारण न सिर्फ नक्सलियों का इलाका सिमटता गया, बल्कि नए नेतृत्व का संकट भी खड़ा हो गया।

सेंट्रल कमेटी में हैं 11 सदस्य

सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, आज की तारीख में पोलित ब्यूरो में सिर्फ सात सदस्य हैं और सेंट्रल कमेटी में 11 सदस्य हैं। यही नहीं, उनकी औसत आयु 60 साल से ऊपर की है और अधिकांश गंभीर बीमारी से ग्रस्त हैं। सुरक्षा बलों के दवाब के कारण वे इलाज के लिए बाहर तक नहीं जा सकते हैं।

इलाज के अभाव में इन लोगों की हुई मौत

इलाज के अभाव में सेंट्रल कमेटी के सदस्य अक्कीराजू हरगोपाल उर्फ आरके, रावुला श्रीनिवास रमन्ना उर्फ नरेंद्र और हरीभूषण उर्फ अपा नारायण की छत्तीसगढ़ के जंगलों में मौत हो चुकी है। इसके अलावा सेंट्रल कमेटी के दो सदस्य जिंगू नरसिम्हा रेड्डी उर्फ जमपन्ना उर्फ जेपी उर्फ जयाल उर्फ जेआर और ओग्गू सत्वाजी उर्फ बुरियारी उर्फ सुधाकर उर्प किरण उर्फ सौरभ उर्फ शरत ने बदलते हालात को देखते हुए सुरक्षा बलों के आत्मसमर्पण करना बेहतर समझा।

सुरक्षा एजेंसी के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सुरक्षा बलों के बढ़ते वर्चस्व का अंदाजा पोलित ब्यूरो और सेंट्रल कमेटी के सदस्यों की गिरफ्तारी से लगाया जा सकता है। 2021 में सुरक्षा बलों ने पोलित ब्यूरो के सदस्य प्रशांत बोस उर्फ किशन दा को पश्चिम बंगाल से गिरफ्तार कर लिया था। इसके एक साल बाद ही पश्चिम बंगाल में काम करने वाले सेंट्रल कमेटी के सदस्य रंजीत बोस उर्फ कंचन दा को असम से गिरफ्तार किया गया।

इसके अलावा पिछले दो सालों में सेंट्रल कमेटी के चार सदस्यों शीला मरांडी, बीजी कृष्णमूर्ति, मिथिलेश मेहता और विजय कुमार आर्य को गिरफ्तार किया जा चुका है। जिनमें मिथिलेश मेहता बिहार के औरंगाबाद और विजय कुमार आर्य गया में सक्रिय था।

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